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हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ताकत की बिसात

भारत की तरह ही वियतनाम भी चीन के साथ संवेदनशील जमीनी सीमा साझा करता है और दक्षिण चीन सागर में चीन के समुद्री सीमा के दावे को विरोध करता है।

Last Updated- September 21, 2023 | 9:14 PM IST
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इस क्षेत्र में चीन से मुकाबले के लिए अमेरिका अपने सहयोगियों को प्रोत्साहित कर रहा है। इससे भारत की सामरिक स्वायत्तता कसौटी के दौर में है। बता रहे हैं श्याम सरन

नई दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन के अंतिम दिन 10 सितंबर को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन सरकारी यात्रा पर हनोई रवाना हो गए। दोनों देशों ने 2013 में की गई अपनी व्यापक साझेदारी को विस्तार देते हुए इसे व्यापक सामरिक साझेदारी तक बढ़ाया। यात्रा के दौरान और बाद में जो प्रेस ब्रीफिंग हुई, उससे स्पष्ट है कि अमेरिका वियतनाम को सैन्य सामान उपलब्ध कराने का इच्छुक है। इसे वियतनाम की रूस से आपूर्ति पर मौजूदा निर्भरता कम करने में मदद के रूप में उचित बताया गया।

भारत की तरह ही वियतनाम भी चीन के साथ संवेदनशील जमीनी सीमा साझा करता है और दक्षिण चीन सागर में चीन के समुद्री सीमा के दावे को विरोध करता है। यह ताजा घटनाक्रम अमेरिका के उन मजबूत प्रयासों का हिस्सा है जिसके तहत वह हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के ताकतवर और अक्सर आक्रामक व्यवहार का जवाब देने के लिए अपने गठबंधनों और साझेदारियों को सहारा देता है। हालांकि संयुक्त बयान को लेकर वियतनाम सतर्क रहा और उसने ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं किया जिससे चीन भड़क जाए।

उदाहरण के लिए बयान में न तो ताइवान का जिक्र था और न ही 2016 के संयुक्त राष्ट्र के पंचाट के फैसले का जो फिलिपींस के पक्ष में आया था और जिसमें दक्षिण चीन सागर में चीन के दावे को खारिज कर दिया गया था। यह इस अवार्ड पर भारत की स्थिति में हाल में आए परिवर्तन से विपरीत है जो पहले महज ‘नोट’ करने तक सीमित थी, उसका भारत फिलिपींस संयुक्त बयान में इस साल जून में स्पष्ट रूप से समर्थन किया गया।

बयान का प्रासंगिक पैरा है, ‘उन्होंने (मंत्रियों ने) विवादों के शांतिपूर्ण समाधान और अंतरराष्ट्रीय कानून की पालना की जरूरत पर जोर दिया, खास तौर पर इस सिलसिले में समुद्र पर कानून के बारे में संयुक्त राष्ट्र संधि और दक्षिण चीन सागर में 2016 के पंचाट के फैसले को लेकर।’ वियतनाम सतर्क रहा है लेकिन अमेरिका के साथ बढ़ते संबंध स्पष्ट रूप से चीन के खिलाफ हैं और इसी रूप में माने जाएंगे।

फिलिपींस के राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर के नए शासन के दौरान अमेरिका के साथ 1951 से चले आ रहे उसके सैन्य गठजोड़ में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है। अमेरिका ने कई वर्षों की बाधाओं के बाद न केवल फिलिपींस के महत्त्वपूर्ण सैनिक अड्डों तक फिर से पहुंच हासिल कर ली है बल्कि उसे हाल में उसके चार अतिरिक्त सैनिक अड्डों तक पहुंच दी गई है।

मई 2023 में 1951 की संधि को लेकर नए दिशा निर्देश जारी किए गए थे जिनमें फिलिपींस की सुरक्षा, जिसमें विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) भी शामिल हैं, के सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए अमेरिकी प्रतिबद्धताओं को ज्यादा विशिष्ट तौर पर बताया गया है। अब ईईजेड में अमेरिका-फिलिपींस की संयुक्त गश्त का भी प्रावधान है। इससे अमेरिका और चीन के सैन्य और तटरक्षक पोतों के बीच सीधा टकराव बढ़ सकता है।

अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति के लिहाज से सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम सफलतापूर्वक त्रिपक्षीय सुरक्षा ढांचा बनाना है जिसमें अमेरिका के अलावा दो महत्त्वपूर्ण सैन्य साथी जापान और दक्षिण कोरिया शामिल हैं। अमेरिका लंबे समय से दोनों सहयोगी देशों को साथ लाकर वास्तविक रूप से त्रिपक्षीय और समन्वित गठजोड़ बनाने के लिए काम करता आ रहा है लेकिन इसमें दोनों देशों के भीतर गहराई तक बैठी शत्रुता बाधा बनी जो 1910 से 1945 के दौरान कोरिया पर जापान के उपनिवेशवादी राज के तल्ख इतिहास से जुड़ी हुई है।

वैमनस्य की यह भावना आगे भी बनी रहेगी लेकिन चीन और अब परमाणु हथियार संपन्न उत्तर कोरिया से बढ़ते सुरक्षा खतरे ने उनकी आपसी शत्रुता को खामोश कर दिया है। हाल में संपन्न उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन की रूस यात्रा और दोनों देशों के बीच बढ़ते सैन्य गठजोड़ की संभावना से टोक्यो और सोल के डर में इजाफा ही होगा।

अमेरिका की पहल पर कैंप डेविड में जून में अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के नेताओं की बैठक हुई और उन्होंने कैंप डेविड सिद्धांतों को अंगीकार किया जिनमें हर साल त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन, नेताओं के बीच हॉटलाइन, खुफिया सूचनाओं की साझेदारी और सालाना सैन्य अभ्यास शामिल है। यह महत्त्वपूर्ण बात है कि तीनों देश ताइवान की खाड़ी में हालात को क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा पर असर डालने वाला मानते हैं।

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक येल ने ताइवान के मसले को ठीक उसी तरह ‘वैश्विक मसला’ बताया है जैसे उत्तर कोरिया है। ताइवान पर दक्षिण कोरिया की अभी तक चली आ रही सतर्क स्थिति में यह बहुत महत्त्वपूर्ण बदलाव है।

अमेरिका हिंद-प्रशांत में बहुस्तरीय सुरक्षा ढांचा बना रहा है। इसके सबसे निचले स्तर पर वियतनाम और दक्षिण एशिया के सिंगापुर और थाईलैंड जैसे कुछ देशों से साझेदारी है। इसके अगले स्तर पर क्वाड है जिसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।

क्वाड में भारत की स्थिति विशिष्ट है क्योंकि वह साथी नहीं बल्कि दूसरे अन्य सभी देशों से उसकी सामरिक साझेदारी है। यह अभी तक पूरी तरह बहु स्तरीय नहीं बनी है, सिवाय इसके कि सालाना मलाबार नौसेना अभ्यास के। इसके अगले स्तर पर अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान के बीच त्रिपक्षीय सैन्य गठजोड़ को रखा जा सकता है। और शीर्ष स्तर पर ऑकस को रख सकते हैं जो अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच महत्त्वपूर्ण सैन्य साझेदारी है। इसकी महत्त्वपूर्ण बात ऑस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बी ताकत के रूप में सक्षम बनाने के लिए प्रतिबद्धता है। इसके लिए हिंद प्रशांत में अमेरिका और ब्रिटेन की नौसैनिक ताकत साथ साथ काम कर रही है।

अमेरिका के नेतृत्व में इस क्षेत्र में सुरक्षा ढांचे में एशियाई देशों को कमजोर कड़ी के रूप में देखा जा सकता है। लाओस और कंबोडिया जैसे कुछ देश हैं जो पूरी तरह चीन के साथ नहीं है। दूसरों को चीन की नाराजगी का डर है क्योंकि वह उनका सबसे महत्त्वपूर्ण आर्थिक साझेदार है।

हालांकि भविष्य की संभावनाओं के कुछ संकेत भी हैं। एशियाई देश पहली बार अपना नौसैनिक अभ्यास इसी महीने नातुना द्वीप समूह में कर रहे हैं जो इंडोनेशिया के ईईजेड के भीतर आता है लेकिन यह चीन की कुख्यात नाइन-डैश लाइन में आता है जिनके जरिये चीन समूचे दक्षिण चीन सागर को अपना बताता है। संभवत: आसियान देशों का इस क्षेत्र में चीन के बढ़ चढ़ कर किए गए क्षेत्रीय दावों के खिलाफ यह पहला प्रतिकार है।

अमेरिकी हिंद प्रशांत रणनीति में भारत इच्छुक साझेदार बन रहा है। उसने तीन बुनियादी समझौतों को पहले ही पूरा कर लिया है जो दोनों देशों की सशस्त्र सेनाओं के बीच ऊंचे दर्जे का सैन्य सामान उपलब्ध कराते हैं। साथ ही अब दोनों के बीच दो नए मास्टर शिप रिपेयर समझौते हैं। एक, अमेरिकी नौसेना और चेन्नई में कट्टूपल्ली स्थित लार्सन ऐंड टुब्रो शिपयार्ड के बीच और दूसरा, हाल में अगस्त में मझगांव डॉक के साथ हुआ है। अमेरिकी नौसेना के पोत मरम्मत और रिफिटमेंट के लिए इन बंदरगाहों पर पहले ही आते रहे हैं। इन सुविधाओं को क्वाड के अन्य सदस्यों तक उपलब्ध कराना तुलनात्मक रूप से आसान होगा।

जहां ये घटनाक्रम चीन से बढ़ रहे सुरक्षा खतरे की धारणा से जुड़े हुए हैं, वहीं इसके भारत की सामरिक स्वायत्तता पर ज्यादा गहरे असर होंगे। ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने की संभावना से मौजूदा हर धारणा अनिश्चितता में बदल सकती है। क्या हमारी सुरक्षा के गणित में इन संभावनाओं को शामिल किया गया है?

(लेखक पूर्व विदेश सचिव और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में मानद फेलो हैं)

First Published - September 21, 2023 | 9:14 PM IST

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