जुलाई-सितंबर तिमाही में वाणिज्यिक बैंकों (Commercial Banks) को ट्रेडिंग नुकसान हो सकता है क्योंकि सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल सख्त हुआ है, जो अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में हुई तीव्र बढ़ोतरी को ट्रैक करता है। बेंचमार्क 10 वषीय अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड का प्रतिफल इस अवधि में 73 आधार अंक बढ़ा है।
बेंचमार्क 10 वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों का प्रतिफल तिमाही के दौरान 10 आधार अंक चढ़ा है और शुक्रवार को 7.22 फीसदी पर टिका। 5 वर्षीय प्रतिभूतियों का प्रतिफल 15 आधार अंक सख्त हुआ है जबकि 14 साल वाले बॉन्ड का प्रतिफल 11 आधार अंक चढ़ा है।
एक निजी बैंक के ट्रेजरी प्रमुख ने कहा, इस आधार पर कि तिमाही में लोगों ने कैसे पोजीशन ली या उन्होंने ट्रेडिंग की, इस बात की संभावना है कि कुछ बैंक ट्रेडिंग नुकसान दर्ज कर सकते हैं। अनुमानित तौर पर उनका मार्क टु मार्केट नुकसान प्रावधान के लिहाज से ज्यादा होगा।
अधिकारी ने कहा, हमने देखा है कि पिछले तीन कारोबारी सत्रों में यह कितना खराब हुआ है। हमें कुछ तकलीफ सहनी होगी क्योंकि बॉन्ड प्रतिफल बढ़ रहा है। वास्तविकता यह भी है कि अमेरिकी प्रतिफल नरम नहीं हो रहा, जो देसी प्रतिफल पर काफी दबाव बनाए हुए है।
वैश्विक कारकों का दूसरी तिमाही के दौरान सहयोग नहीं मिला क्योंकि दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरें बढ़ाई, जिसकीवज महंगाई का दबाव था और अनुमान के मुताबिक आंकड़ों में उस हद तक बदलाव नहीं हुआ।
आईडीबीआई बैंक के कार्यकारी निदेशक व ट्रेजरी प्रमुख अरुण बंसल ने कहा, प्रतिफल में बढ़ोतरी केंद्रीय बैंकों के रुख के मुताबिक हुई। पहले लोग आरबीआई की तरफ से ब्याज दरों में 33 आधार अंक या 25 आधार अंको की कटौती की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन यह आगे के लिए टल गया। हमने बॉन्ड प्रतिफल में बढ़ोतरी हाल में भारतीय बॉन्ड को शामिल किए जाने के बावजूद देखने को मिली है।
बेंचमार्क प्रतिफल पहली तिमाही में 19 आधार अंक फिसला था, जिसका कारण मौद्रिक नीति समिति की तरफसे रीपो दरों को 6 अप्रैल की बैठक में 6.5 फीसदी के स्तर पर अपरिवर्तित रखने का फैसला था। देसी ब्याज दरें तय करने वाली समिति ने दरों में बढ़ोतरी के चक्र पर लगाम लगातार छह बार इजाफे के बाद लगाया, जिसमें मई 2022 के बाद से 250 आधार अंकों का इजाफा हुआ है।
करुर वैश्य बैंक के ट्रेजरी प्रमुख वीआरसी रेड्डी ने कहा, वैश्विक स्तर पर काफी अनिश्चितताएं हैं, जहां ब्याज दरें सर्वोच्च स्तर पर हैं और यह नहीं पता कि कितने लंबे समय तक यह टिकेगा, इससे अमेरिकी लॉन्ग टर्म प्रतिफल ऊंचा हो रहा है और अमेरिकी डॉलर को मजबूती प्रदान कर रहा है।
देश में स्थिति सहज है, महंगाई सितंबर के आखिर में छह फीसदी से नीचे आने की उम्मीद है और मुद्रा भी स्थिर हो सकती है। अमेरिका के लिए चिंता की बात कच्चे तेल की कीमतों में पिछले कुछ दिनों से हो रही बढ़ोतरी है। तिमाही के दौरान अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 1.2 फीसदी टूटा, लेकिन आरबीआई के हस्तक्षेप से इसे अन्य एशियाई मुद्राओं के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करने में मदद मिली।
एक अन्य निजी बैंक के ट्रेजरी प्रमुख ने कहा, मुझे लगता है कि अमेरिकी ट्रेजरी के वजह से हमें काफी परेशानी अभी झेलनी है। साथ ही जिस तरह से ब्रेंट क्रूड प्रतिक्रिया जता रहा है, आरबीआई डॉलर की बिकवाली कर रहा है, ताकि रुपये की गिरावट पर लगाम लगे। 19 सितंबर को डॉलर के मुकाबले रुपया अब तक के निचले स्तर 83.27 को छू गया था।