भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास क्रिकेट प्रेमी हैं और वह चाहते हैं कि बैंकिंग और गैर-बैंकिंग वित्तीय क्षेत्रों के मैदान पर बल्लेबाजी करने उतरे लोग और इस क्षेत्र के हितधारक मशहूर बल्लेबाज राहुल द्रविड़ की तरह लंबी पारी खेलें। पिछले हफ्ते मुंबई में बिज़नेस स्टैंडर्ड के बीएफएसआई सम्मेलन में देश के वित्तीय क्षेत्र के लिए उनका यही संदेश था।
द्रविड़ को अक्सर उनके साथी खिलाड़ी ‘मिस्टर डिपेंडेबल’ और ‘द वॉल’ कहा करते थे जो उनकी तीन खूबियों, प्रतिबद्धता, निरंतरता और अपनी खास गुणवत्ता बनाए रखने के माद्दे को दर्शाता है जो सफलता के लिए बेहद आवश्यक गुण हैं।
उन्होंने अपनी पहचान, कड़ी मेहनत, कभी हार न मानने वाली भावना और सभी बाधाओं का सामना धैर्य और शांति से करने के बलबूते बनाई। सम्मेलन के समापन के मौके पर गवर्नर ने करीब 70 मिनट की अपनी बातचीत के दौरान कुछ संवेदनशील मुद्दों पर भी बात की और यह भी बताया कि बैंकिंग नियामक उन्हें किस तरह देखता है।
मसलन आरबीआई बैंकों के कारोबारी मॉडल पर करीब से नजर रख रहा है। कुछ बैंकर और क्षेत्र के विश्लेषक इस बात को लेकर भी अक्सर हैरान होते रहते हैं कि क्या यह नियामक का काम है और क्या इस काम को बैंकरों पर नहीं छोड़ दिया जाना चाहिए?
गवर्नर का जवाब स्पष्ट है: आरबीआई कारोबारी मॉडल की बारीकियों के स्तर पर नहीं पहुंचता है लेकिन यह इस बात का मूल्यांकन निरंतर ही करता है कि क्या यह मॉडल टिकाऊ है।
उदाहरण के तौर पर यदि कोई बैंक सिर्फ कॉरपोरेट ऋण और असुरक्षित ऋण पर निर्भर है तो यह अपने लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। इसमें आवास ऋण, वाहन ऋण आदि जैसे ऋण उत्पाद भी होने चाहिए ताकि एक ही तरह के ऋण के जोखिम से बचा जा सके।
इसी तरह अगर कोई बैंक बड़े स्तर पर खुदरा ऋण के क्षेत्र से जुड़ा है और थोक जमाओं से मिली पूंजी का इस्तेमाल, खुदरा ऋण के क्षेत्र का समर्थन करने के लिए करता है तब उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। (यह मेरी समझ है)
भारत के बैंकिंग क्षेत्र, विशेष रूप से निजी बैंकों को प्रतिभाशाली लोगों को अपने यहां काम के लिए आकर्षित करने और उन्हें नौकरी में बनाए रखने की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इस क्षेत्र से जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि आरबीआई, बैंकरों के वेतन और भत्तों को मंजूरी देने में अधिक उदारता बरत सकता है।
उनका कहना है, ‘अगर हम अपने कर्मचारियों को अच्छा बोनस देना चाहते हैं तो उस पर कई प्रतिबंध है।’ आरबीआई गवर्नर को कर्मचारियों द्वारा नौकरी छोड़ने की समस्या के बारे में पता है और उन्होंने बैंकों का ध्यान इस ओर दिलाने के साथ ही मानव संसाधन (एचआर) के मुद्दे से निपटने का काम उन पर छोड़ दिया है।
लेकिन वह इस धारणा से सहमत नहीं हैं कि आरबीआई, बैंकरों के वेतन और भत्तों की मंजूरी देने में उदार नहीं है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कर्मचारियों का वेतन आमतौर पर भारतीय बैंक संघ की मध्यस्थता में उद्योग से जुड़े वेतन समझौते से तय होता है जबकि सरकार के मानदंड के हिसाब से प्रबंध निदेशकों और कार्यकारी निदेशकों का वेतन पैकेज तय होता है।
आरबीआई का हस्तक्षेप निजी बैंकों के पूर्णकालिक निदेशकों के पैकेज के मामले में विशेषतौर पर रहता है। लेकिन आरबीआई वेतन से जुड़े प्रस्तावित पैकेज पर केवल तभी आपत्ति करता है जब उसे लगता है कि यह बेहद छोटे या अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वाले बैंक के लिहाज से इस तरह के वेतन का पैमाना बहुत अधिक है।
सम्मेलन की शुरुआत करते हुए, अनुभवी बैंकर और भारत में खुदरा बैंकिंग के दिग्गज माने जाने वाले, के वी कामत ने बैंकिंग क्षेत्र की सेहत और उसके लचीलेपन पर जोर दिया जो पिछले पांच दशकों में सबसे अच्छा रहा है। उनके पास अच्छी पूंजी है और उद्योग के फंसे कर्ज का स्तर बहुत कम है। वे अच्छी ब्याज आमदनी भी हासिल कर रहे हैं क्योंकि ऋण लेने के स्तर में भी तेजी आई है।
उन्होंने कहा कि उनकी अध्यक्षता वाली एक समिति ने कोविड के बाद 26 क्षेत्रों के 9 लाख करोड़ रुपये के ऋणों की शर्तों और ब्याज दरों आदि में बदलाव (ऋण पुनर्गठन) की सिफारिश की थी लेकिन बैंकिंग प्रणाली ने केवल 45,000 करोड़ रुपये के ऋणों का पुनर्गठन किया क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि की राह मजबूत है।
निजी बैंकों के प्रमुखों ने एक ऐसे विषय पर चर्चा की जो सुर्खियों में रहा है कि क्या बैंकों को प्रौद्योगिकी कंपनियां बनना चाहिए? क्या तकनीकी विशेषज्ञों को उन्हें चलाना चाहिए? इसको लेकर आम राय यह है कि ऐसा नहीं होना चाहिए। बैंकों को बैंक ही बने रहना चाहिए क्योंकि इसका कारोबार सख्त नियमों के अधीन है।
प्रौद्योगिकी से परे बैंक, बैंकिंग अनुपालन, जोखिम का आकलन करने, जोखिम प्रबंधन से जुड़ा है और इस कारोबार की प्रमुख कुंजी इसको लेकर बना भरोसा है। इन्हें प्रौद्योगिकी को समझने और आगे बढ़ने के लिए इसका उपयोग करने की आवश्यकता है और यह वित्तीय प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ साझेदारी करके, तकनीकी सहायक कंपनियों का गठन करके या कुल वेतन भुगतान पर तकनीकी विशेषज्ञों को रखकर किया जा सकता है लेकिन इसके बावजूद बैंकर को नियंत्रक की भूमिका में होना चाहिए।
भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन दिनेश खारा ने कहा कि उनके बैंक को अपनी परिसंपत्तियों की गुणवत्ता को लेकर कोई चिंता नहीं है और यह किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है। संपत्ति के लिहाज से वैश्विक स्तर पर शीर्ष 50 बैंकों में शामिल एसबीआई अपने एकीकृत डिजिटल बैंकिंग मंच, योनो का दूसरा संस्करण नौ महीने में पेश करने की तैयारी कर रहा है।
एसबीआई के 48 करोड़ ग्राहकों में से 7 करोड़ योनो मंच पर हैं और एसबीआई का 97 प्रतिशत लेनदेन उसकी शाखाओं में नहीं होता है। योनो आने वाले वर्षों में ‘प्राथमिक डिजिटल बैंक’ बनने का इरादा कर रहा है। सभी बैंक जमाओं से जुड़ी प्रतिस्पर्द्धा को लेकर जागरूक हैं।
सितंबर में म्युचुअल फंड उद्योग के प्रबंधन के तहत परिसंपत्तियां बढ़कर लगभग 48 लाख करोड़ रुपये हो गईं जो बैंकिंग उद्योग के जमा आधार का एक-चौथाई है। बचत करने वालों ने अपनी अधिशेष राशि को रखने के लिए विभिन्न परिसंपत्ति विकल्पों की खोज शुरू कर दी है।
लेकिन बैंकरों को नहीं लगता कि उच्च ब्याज दरों की पेशकश ही पूंजी निवेश को आकर्षित करने का एकमात्र तरीका है। कई योजनाओं की पेशकश एक साथ करने के साथ ही बैंक को सभी वित्तीय जरूरतों के लिए एक पड़ाव वाला केंद्र बनना और ग्राहकों का खयाल रखना भी जमाएं जुटाने का प्रमुख तरीका हो सकता है। वे ग्राहकों से जुड़ाव के बारे में बात करते हैं, न कि व्यावसायिक लक्ष्यों के बारे में। लंबे समय से उपेक्षित ग्राहक आखिरकार, भारत के बैंकिंग क्षेत्र के केंद्र में आने के लिए तैयार हैं।