इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना-प्रौद्योगिकी (IT) मंत्रालय तथ्यों की जांच करने वाले विश्वसनीय फैक्ट चेकर्स के लिए एक ढांचा तैयार करने के वास्ते इंटरनेट कंपनियों के साथ मिलकर काम करेगा।
इस कदम का मकसद भ्रामक वीडियो और कृत्रिम मेधा का इस्तेमाल कर तैयार की जाने वाली असत्य सामग्री का प्रसार रोकना है। इस मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने कहा कि गुरुवार को इस संबंध में एक उच्च-स्तरीय बैठक हुई है।
सूत्रों ने कहा कि यह ढांचा स्व-नियामकीय प्रक्रियाओं और इंटरनेट कंपनियों, सरकार और तथ्यों की जांच करने वाले फैक्ट चेकर्स के बीच आपसी सहयोग से तैयार किया जाएगा। आईटी मंत्रालय ने बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ बंद कमरे में एक बैठक की।
बैठक में इस बात पर विचार किया गया कि सोशल मीडिया पर आने वाली सामग्री की वैधता की पुष्टि किस तरह की जाएगी। गूगल, मेटा, स्नैप, यूट्यूब और कू जैसी बड़ी तकनीकी कंपनियों के प्रतिनिधि इस बैठक में उपस्थित थे।
इस मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा, ‘कई सोशल मीडिया कंपनियों को उनके मंच पर प्रकाशित सामग्री की सत्यता की जांच करने में दिक्कत हो रही है।
इस समय ये कंपनियां सामग्री की सत्यता एवं वैधानिकता की जांच के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों जैसे इंटरनेट फैक्ट-चेकिंग नेटवर्क (आईएफसीएन) से अभिप्रमाणित संस्थानों पर निर्भर हैं। लिहाजा इस बैठक का मूल उद्देश्य भारत में तथ्यों की जांच करने वाले विश्वसनीय फैक्ट चेकर्स का ढांचा तैयार करना है। इन दिनों नई तकनीकों के आने के साथ ही भ्रामक सूचनाओं का प्रसार भी बढ़ता जा रहा है।’
सूचना-प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के तहत ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के लिए किसी भी तरह की सामग्री प्रकाशित करने से पहले कुछ आवश्यक नियमों का पालन करना अनिवार्य है। इस कानून की धारा 3(1) (बी) (वी) के तहत प्रावधान है कि मध्यस्थों के लिए उनके उपयोगकर्ताओं की तरफ से प्रकाशित ऐसी किसी भी सामग्री को रोकने का प्रयास करना जरूरी होगा जो असत्य या भ्रामक हो सकती हैं।
सरकार ने हाल में इन नियमों में एक संशोधन का प्रस्ताव दिया है। इस प्रस्ताव में सोशल मीडिया कंपनियों को ऐसी सामग्री हटाने का निर्देश दिया गया है जो पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) या सरकार द्वारा अधिकृत तथ्यों की जांच करने वाली संस्थाओं के द्वारा भ्रामक या असत्य करार दी गई हैं।
लोगों को गुमराह करने वाले वीडियो कृत्रिम मेधा एवं अन्य अत्याधुनिक तकनीकों की मदद से तैयार किए जाते हैं। इन वीडियो में मनगढ़ंत घटनाओं की तस्वीरें एवं सामग्री दिखाई जाती हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और मार्क जुकरबर्ग तक के भ्रामक एवं मनगढ़ंत वीडियो बन चुके हैं। सेंसिफाई के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार दिसंबर तक इंटरनेट पर 85,000 से अधिक फर्जी वीडियो तैयार किए गए थे।
इस तरह की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए ही सरकार तथ्यों की जांच के लिए एक नया ढांचा तैयार कर रही है। सूत्रों ने बताया कि नए ढांचे की मदद से सोशल मीडिया कंपनियों के लिए फर्जी सामग्री की पहचान करना अधिक आसान हो जाएगा।
सरकार के कार्यों से संबंधित सूचनाओं के साथ ही प्रस्तावित ढांचे से इंटरनेट पर सभी सामग्री की सत्यता की जांच करने में मदद मिलेगी। समझा जा रहा है कि सरकारी विभागों से जुड़े खबरों की जांच के लिए पीआईबी की इकाई तथ्यों की जांच करने वाली अधिकृत संस्था होगी।
गूगल और यूट्यूब ने पिछले साल आईएफसीएन को 1.32 करोड़ डॉलर का अनुदान देने की घोषणा की थ। आईएफसीएन पॉयंटर इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया स्टडीज की एक गैर-लाभकारी संस्था है।