बीजिंग द्वारा रेयर अर्थ एलिमेंट्स के निर्यात पर सख्त प्रतिबंध लगाए जाने के बाद भारत के लिए एक बड़ा अवसर खुल गया है। अब देश की बैटरी मटीरियल रीसाइक्लिंग कंपनियां और ई-वेस्ट प्रोसेसर्स पुराने मैग्नेट और बैटरियों से नियोडिमियम, टर्बियम और अन्य कीमती तत्व निकालने की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ा रही हैं।
भारत की सबसे बड़ी ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग कंपनी Attero Recycling ने ऐलान किया है कि वह अगले 12 महीनों में पुराने मैग्नेट से नियोडिमियम की निकासी को 1 टन प्रति माह से बढ़ाकर 10 टन प्रति माह करेगी। वहीं Lohum Cleantech भी साल 2026-27 (FY27) तक अपनी सालाना क्षमता को 3,000-5,000 टन तक बढ़ाने की योजना पर काम कर रही है।
क्या है चीन का प्रतिबंध और उसका असर?
चीन ने 4 अप्रैल को समेरियम, गैडोलिनियम, टर्बियम, डिस्प्रोसियम, लुटेटियम, स्कैंडियम और इट्रियम जैसे महत्वपूर्ण रेयर अर्थ तत्वों और मैग्नेट के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी। अब इनका निर्यात रक्षा लाइसेंस से ही संभव होगा, जिससे भारत जैसे देशों के लिए आपूर्ति में बड़ी रुकावट आ गई है।
ALSO READ: Tata Group मृतक के परिवार को देगा 1 करोड़ का मुआवजा, घायलों का इलाज भी कराएगा
भारत की रीसाइक्लिंग कंपनियां कैसे भरेंगी खाली जगह?
Attero के CEO नितिन गुप्ता के अनुसार, “रेयर अर्थ मैग्नेट में लगभग 80% नियोडिमियम होता है। हम इसे स्केलेबल मॉडल के तहत रीसायकल कर रहे हैं और हमारी योजना इसे दस गुना बढ़ाने की है।”
Lohum के CEO रजत वर्मा ने बताया, “देश में फिलहाल मैग्नेट की मांग 5,000-6,000 टन सालाना है, लेकिन रीसाइक्लिंग से सिर्फ 400-500 टन ही निकाला जा पा रहा है। हम वैश्विक स्क्रैप स्रोतों से भी माल मंगाएंगे ताकि घरेलू मांग पूरी की जा सके।”
Lohum अब एक नया रीसाइक्लिंग प्लांट लगाने की तैयारी में है जिसकी वार्षिक क्षमता 3,000 से 5,000 टन होगी — जो देश की कुल मांग का लगभग 50% होगा।
‘अर्बन माइनिंग’ की ओर बढ़ता भारत
मेटल और खनन कंपनियां अब एंड-ऑफ-लाइफ प्रोडक्ट्स यानी उपयोग हो चुके उपकरणों से खनिज पुनः प्राप्त करने के मॉडल पर काम कर रही हैं। इसे ‘अर्बन माइनिंग’ कहा जा रहा है। Attero जैसे खिलाड़ी सौर पैनलों से जर्मेनियम और सेलेनियम निकालने की प्रक्रिया में भी लगे हैं और इस क्षमता को 20,000 टन प्रति वर्ष तक बढ़ाने की योजना है।
Kearney के एनर्जी और प्रोसेस इंडस्ट्रीज़ के पार्टनर निशांत निश्चल ने आगाह किया कि फिलहाल रीसाइक्लिंग के लिए पर्याप्त एंड-ऑफ-लाइफ स्क्रैप उपलब्ध नहीं है। “अगले 5 वर्षों में जब उत्पादों का जीवनचक्र समाप्त होगा, तब स्थिति में सुधार आ सकता है,” उन्होंने कहा।
नितिन गुप्ता ने कहा, “हमें रीसाइक्लिंग के साथ-साथ घरेलू खनन नीति पर भी काम करना होगा। हमारे पास खुद के खनिज संसाधन हैं, लेकिन नीतियां अभी भी कोयला और लौह अयस्क तक सीमित हैं।”
गुप्ता ने चीन का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां दो दशक पहले रेयर अर्थ तत्वों को रणनीतिक प्राथमिकता दी गई थी। चीन ने न सिर्फ घरेलू खनन को बढ़ावा दिया, बल्कि वैश्विक परिसंपत्तियों में निवेश कर अपनी शोधन क्षमता भी मजबूत की। भारत को भी अब इसी राह पर चलना होगा।
रेयर अर्थ संकट के बीच Maruti ने कहा- ऑपरेशंस पर नहीं पड़ा कोई असर