इंदौर, 13 अक्तूबर .ंभाषा.ं दशहरा पर आमतौर पर रावण जलाया जाता है मगर मध्यप्रदेश में सैकड़ों लोग ऐसे भी हैं जो अपनी बरसों पुरानी मान्यताओं और किंवदंतियों के चलते इस दिन दस सिर वाले इस पौराणिक पात्र का पुतला जलाने की बजाय उसे पूजने की परंपरा निभा रहे हंै।
आम मान्यताओं के उलट ये लोग रावण को ुबुराई का प्रतीर्कं नहीं मानते, जबकि उसकी अच्छाइयों को महिमामंडित करते हुए उसे आराध्य के रूप में देखते हैं।
इंदौर का जय लंकेश मित्र मंडल पिछले चालीस साल से दशहरे पर रावण की पूजा कर रहा है। यह संगठन रावण को ुभगवान शिव का परम भक्र्तं और ुमहाविद्वार्नं मानता है।
संगठन के प्रमुख महेश गौहर ने आज ुभार्षां को बताया कि इस बार भी दशहरे पर पूरे विधि..विधान से रावण की पूजा..अर्चना की गयी। इस मौके पर ुरावण संहिर्तां के पाठ और कन्याओं के पूजन के साथ हवन और प्रसाद वितरण भी किया गया।
गौहर ने कहा, ुहमने लोगों से विनम्र अनुरोध किया है कि वे हमारे आराध्य रावण का दशहरे पर पुतला न फूंकें। इससे पर्यावरण को भी फायदा होर्गा।ं
उन्होंने बताया कि उनके संगठन ने शहर के परदेशीपुरा क्षेत्र में रावण का मंदिर भी बनवाया है, जिसमें दो महीने के भीतर दशानन की मूर्ति की प्राण..प्रतिष्ठा की जायेगी।
प्रदेश में मंदसौर, विदिशा, खरगौन, छिंदवाड़ा और उज्जैन जिलों में भी रावण को अलग..अलग रूपों मेें पूजा जाता है।
मसलन यहां से कोई 200 किलोमीटर दूर मंदसौर में किंवदंती है कि रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका इस नगर में ही था यानी रावण मंदसौर का दामाद था।
जारी भाषा हर्ष