पाकिस्तान और सऊदी अरब ने एक बड़ा रक्षा समझौता किया है। इस समझौते के तहत अगर किसी एक देश पर हमला होता है, तो उसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। यह समझौता सऊदी अरब की राजधानी रियाद में हुआ। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस पर दस्तखत किए। पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर भी इस मौके पर मौजूद थे। यह समझौता दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग को और मजबूत करेगा। लेकिन भारत के लिए यह खबर चिंता की बात है। आइए, समझते हैं कि इस समझौते के पीछे क्या है और इसका भारत पर क्या असर हो सकता है।
यह समझौता दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग बढ़ाने के लिए है। इसमें संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण, खुफिया जानकारी साझा करना और सैन्य अभ्यास शामिल हैं। सऊदी अरब का कहना है कि यह समझौता क्षेत्र में शांति लाने की दिशा में एक कदम है। लेकिन माना जा रहा है कि खाड़ी क्षेत्र में बढ़ते तनाव की वजह से सऊदी अरब अपनी सुरक्षा को और मजबूत करना चाहता है। हाल ही में 9 सितंबर को कतर में इजराइल के एक हवाई हमले में छह लोग मारे गए थे। इस हमले की अरब देशों ने कड़ी निंदा की थी। कतर में अरब और इस्लामिक देशों के नेताओं की आपात बैठक भी हुई। इस घटना के बाद सऊदी अरब को लगता है कि अमेरिका पर पूरी तरह निर्भर रहना ठीक नहीं है। इसलिए वह पाकिस्तान जैसे देशों के साथ सैन्य साझेदारी बढ़ा रहा है।
सऊदी अरब के एक अधिकारी ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि यह समझौता कई सालों की बातचीत का नतीजा है। इसे किसी खास देश या घटना के जवाब में नहीं देखा जाना चाहिए। लेकिन जानकारों का मानना है कि यह समझौता सऊदी अरब को पाकिस्तान की परमाणु ताकत का सहारा भी दे सकता है।
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भारत और पाकिस्तान के बीच हमेशा से तनाव रहा है। दोनों देशों के पास परमाणु हथियार हैं। ऐसे में पाकिस्तान का सऊदी अरब जैसे बड़े देश के साथ रक्षा समझौता करना भारत के लिए चिंता की बात है। इस समझौते से पाकिस्तान को न सिर्फ सऊदी अरब का राजनीतिक समर्थन मिलेगा, बल्कि आर्थिक मदद भी मिल सकती है। इससे पाकिस्तान को अपनी सेना को और मजबूत करने में मदद मिलेगी।
भारत के विदेश मंत्रालय ने इस समझौते पर सतर्क प्रतिक्रिया दी है। मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत पहले से ही इस समझौते की चर्चा के बारे में जानता था। अब सरकार इसका असर भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता पर अध्ययन करेगी।
पूर्व भारतीय राजदूत कंवल सिब्बल ने इसे सऊदी अरब की “बड़ी भूल” बताया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि सऊदी अरब ने भारत के खिलाफ शत्रुता रखने वाले परमाणु हथियारों से लैस देश के साथ समझौता किया है। इससे पाकिस्तान और उसके समर्थित आतंकी समूहों को और हिम्मत मिल सकती है। सिब्बल ने यह भी कहा कि सऊदी अरब का यह कदम भारत को खतरे के रूप में देखा जाएगा।
नई दिल्ली के सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के प्रोफेसर ब्रह्म चेल्लानी ने भी इस समझौते की आलोचना की। उन्होंने X पर लिखा कि सऊदी अरब और पाकिस्तान का यह समझौता एक “खतरनाक गठजोड़” है। सऊदी अरब को पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने आतंकवाद का सबसे बड़ा फंडर कहा था। वहीं, पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थक माना जाता है। चेल्लानी का कहना है कि इस समझौते से सऊदी अरब भारत और अमेरिका को यह संदेश दे रहा है कि वह अपनी राह खुद चुनेगा।
इस समझौते से भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC) पर भी असर पड़ सकता है। यह गलियारा सऊदी अरब से होकर गुजरता है। अब इस समझौते के बाद भारत के लिए सऊदी अरब के साथ आर्थिक और रणनीतिक रिश्तों को और गहरा करना मुश्किल हो सकता है।
इस्लामाबाद के लिए यह समझौता खाड़ी क्षेत्र के अपने सबसे बड़े सहयोगी देश के साथ रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करता है। वहीं, सऊदी अरब के लिए यह समझौता उस देश के साथ सैन्य रिश्तों को औपचारिक रूप देता है, जिसके पास इस्लामिक दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक है।
पाकिस्तान के पूर्व राजदूत जाविद हुसैन, जिन्होंने 1997 से 2003 तक ईरान में राजदूत के रूप में काम किया, ने उस खास शर्त पर हैरानी जताई, जिसमें कहा गया है कि एक देश पर हमला होने को दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। द न्यूज से बात करते हुए हुसैन ने कहा कि यह शर्त भारत और इजरायल जैसे देशों को साफ संदेश देती है कि वे पाकिस्तान या सऊदी अरब के खिलाफ कोई आक्रामक कदम न उठाएं।
यह रक्षा समझौता पाकिस्तान की सऊदी अरब पर आर्थिक निर्भरता को भी उजागर करता है। पाकिस्तान इकनॉमिक सर्वे 2024-25 के मुताबिक, इस्लामाबाद का विदेशी कर्ज करीब 87.4 अरब डॉलर है। इस वित्त वर्ष में पाकिस्तान को 23 अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज चुकाना है, जिसमें से 5 अरब डॉलर सऊदी अरब को देने हैं।
सऊदी अरब ने बार-बार अपनी जमा राशि को आगे बढ़ाकर पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर रखने में मदद की है। पिछले साल के अंत में सऊदी अरब ने 3 अरब डॉलर की जमा राशि को एक साल के लिए और बढ़ा दिया था, जो 2021 के बाद तीसरा ऐसा मौका था। इसके अलावा, जून के मध्य में देय 2 अरब डॉलर की एक और जमा राशि को भी बढ़ाए जाने की उम्मीद थी।
खाड़ी क्षेत्र में अमेरिका का प्रभाव कम होने के साथ, देश वैकल्पिक रक्षा सहयोग की तलाश में हैं। नई दिल्ली के लिए चुनौती यह होगी कि वह सऊदी अरब के साथ अपनी बढ़ती आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखे, साथ ही पाकिस्तान और सऊदी अरब के इस नए गठजोड़ से उत्पन्न होने वाले जोखिमों का सामना करे।