उदारीकरण के बाद विदेशी पेशकश निचले स्तर पर | सचिन मामबटा / मुंबई January 16, 2022 | | | | |
तीन साल से भी अधिक समय के बाद से अब तक किसी भी भारतीय कंपनी ने प्रत्यक्ष विदेशी इक्विटी पूंजी बाजार की पेशकश नहीं की है, जिससे देश के उदारीकरण के बाद से यह सबसे लंबा अंतराल पैदा हो गया है।
बाजार पर नजर रखने वाली प्राइम डेटाबेस के आंकड़ों से पता चलता है कि जुलाई 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बजट प्रस्तुति के बाद से - जब भारत ने पूंजी बाजारों के संबंध में नियमों में ढील देनी शुरू की थी, जिससे कंपनियों के लिए कारोबार करना आसान हो गया था, जिसमें प्रतिभूतियां जारी करना भी शामिल था - 30 वर्षों में विदेशी बाजारों में 31.7 अरब डॉलर मूल्य के 329 इक्विटी निर्गम हुए हैं। लेकिन पिछले तीन वर्षों में एक भी निर्गम नहीं दिखाई दिया है।
कहा जा रहा है कि डिजिटल भुगतान प्रदाता पाइन लैब्स अमेरिका में 50 करोड़ डॉलर की आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (आईपीओ) की योजना बना रही है। यह कंपनी सिंगापुर स्थित है, लेकिन इसके निवेशकों में भारतीय स्टेट बैंक भी शामिल है।
विदेश निर्गम इसलिए भी ध्यान दिए जाने का केंद्र रहे हैं, क्योंकि समाचारों ने इस बात का संकेत दिया है कि सरकार स्टार्टअप को सीधे विदेश में सूचीबद्ध करने की अनुमति देने के अनुरोधों पर विचार कर रही है। अलबत्ता इस बात की संभावना नहीं है कि यह प्रस्ताव आगामी केंद्रीय बजट का हिस्सा होगा। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने वर्ष 2018 में विदेशी सूचीबद्धता के लिए रूपरेखा तैयार करने के वास्ते एक समिति का गठन किया था।
इसने व्यवस्था को उदार बनाने की वकालत की थी और उन 10 क्षेत्रों की पहचान की थी, जहां इस तरह की सूचीबद्धता की अनुमति दी जा सकती थी। इनमें अमेरिका, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन, हॉन्गकॉन्ग, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा और स्विट्जरलैंड शामिल थे।
सेबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि किसी विदेश शेयर बाजार में सूचीबद्धता से भारत में शुरू की गई ऐसी कंपनियों की उनके वैश्विक प्रतिस्पर्धियों की सापेक्ष प्रतिस्पर्धा में बढ़ जाएगी। इससे वे उन लाभों को प्राप्त करने में समक्ष होगीं, वर्तमान में जिनका लाभ उनकी अंतरराष्ट्रीय समकक्षों द्वारा प्राप्त किया जा रहा है, चाहे पूंजी (कम लागत सहित) तक पहुंच के संदर्भ में हो या फिर अन्य रणनीतिक लाभों के संदर्भ में।
अलबत्ता अन्य पेशकश ज्यादा लचीली साबित हुई हैं। उदाहरण के लिए विदेशों में ऋण की पेशकश जारी है। भारतीय कंपनियों ने वर्ष 2021 में 26 ऋण पेशकशों के जरिये 14.2 अरब डॉलर जुटाए, जबकि वर्ष 2020 में 17 फर्मों ने 8.4 अरब डॉलर जुटाए थे। वर्ष 1992 के बाद से दर्ज सर्वाधिक संख्या वर्ष 2019 में रही, जब 46 निर्गमों ने 18.2 अरब डॉलर जुटाए थे।
परिवर्तनीय उपकरणों का उपयोग भी इक्विटी की तुलना में अधिक लोकप्रिय रहा। वर्ष 2021 में दो ऐसे निर्गम थे, जिन्होंने 31.5 करोड़ डॉलर जुटाए। एक अन्य निर्गम ने वर्ष 2020 में एक अरब डॉलर जुटाए थे।
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