केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री द्वारा की गई सीमा शुल्क में कटौती की घोषणा से चीन की इस्पात मिलों को फायदा हो सकता है। इस्पात की बढ़ती कीमतों के कारण सरकार को एमएसएमई के फायदे के लिए अद्र्ध-निर्मित उत्पादों से लेकर इस्पात की चादरों और लंबे उत्पादों के सीमा शुल्क में 2.5 से 5.5 प्रतिशत तक की कटौती करने का फैसला करना पड़ा है। हालांकि इसका एक अनपेक्षित लाभार्थी भी हो सकता है और वह है चीन। इसके अलावा यह कटौती कीमतों पर लगाम लगाने में विफल रही है, क्योंकि इस शुल्क कटौती की घोषणा के बाद इस्पात मिलों ने इस्पात की चादरों के दामों में प्रति टन 1,500 रुपये तक का इजाफा किया है। इस्पात विनिर्माताओं के अनुसार जब तक अंतरराष्ट्रीय दाम मजबूत रहेंगे, तब तक घरेलू दामों पर इसका असर नहीं पड़ेगा। एएम/एनएस इंडिया के मुय विपणन अधिकारी रंजन धर ने बताया 'इस्पात के दाम अंतरराष्ट्रीय दामों से जुड़े होते हैं, जो वैश्विक कारकों के कारण बढ़ रहे हैं। आयात शुल्क में किसी कटौती से दामों में कमी नहीं आएगी, बल्कि गैर-एफटीए वाले देशों के निर्यातकों को ही लाभ होगा (क्योंकि एफटीए (मुक्त व्यापार समझौता) पहले ही शून्य शुल्क पर है)। हमारी अर्थव्यवस्था के बजाय कुछ प्रतिस्पर्धी देश लाभ उठाने के लिए तैयार हैं।' गैर-एफटीए वाले इन देशों में सबसे बड़ा लाभार्थी चीन हो सकता है। जैसा कि इक्रा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष जयंत रॉय ने कहा कि चीन गैर-एफटीए वाले देशों में भारत को इस्पात निर्यात करने वाले प्रमुख निर्यातकों में से एक है। वर्ष 2019-20 में चीन से आयात 12.06 लाख टन रहा। यह काफी ज्यादा हुआ करता था, लेकिन एंटी-डंपिंग शुल्क समेत कई उपाय किए जाने से पिछले चार से पांच सालों के दौरान इसमें कमी लाने में मदद मिली है। वर्ष 2016-17 में चीन से आयात 21.54 लाख टन था। अलबत्ता बजट में चीन से विभिन्न इस्पात उत्पादों के आयात पर एंटी-डंपिंग शुल्क और प्रतिकारी शुल्क को अस्थायी रूप से निरस्त करने की घोषणा की गई थी। आयात में एफटीए देशों की हिस्सेदारी अधिक है। वर्ष 2019-20 में कोरिया से आयात 26.86 लाख टन रहा और जापान से 10.18 लाख टन। जब तक वैश्विक दाम अधिक रहते हैं, तब तक घरेलू कंपनियां मूल्य दबाव से बची रह सकती हैं। लेकिन अगर चीन के दामों में गिरावट जारी रहती है, तो इसका असर घरेलू दामों पर भी पड़ेगा। पिछले एक महीने के दौरान चीन के दामों में करीब 80 डॉलर प्रति टन तक की गिरावट आई है। चीन के नव वर्ष से पहले मंदी के कारण ऐसा हुआ है। एक निर्माता के मुताबिक शुल्क के मौजूदा स्तर के कारण घरेलू और आयातित लागत निकट आ जाएगी। रॉय ने कहा कि घरेलू दामों को आयातित लागत से आंका जाता है। अगर चीन के दाम कम होते हैं, तो भारत के दामों पर दबाव पड़ेगा। भले ही यह रुख दिखना जारी है, लेकिन चीन के इस्पात कारोबार में कुछ सामान्य स्थिति नजर आई है। सालाना आधार पर सात महीन की चार प्रतिशत तक की गिरावट के बाद चीन के मासिक इस्पात निर्यात में पहली बार इजाफा हुआ है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय दामों में नरमी आने के बावजूद इस बात की संभावना है कि जोरदार मांग की वजह से घरेलू इस्पात के दामों में मजबूती बनी रहेगी। पहले भी ऐसा हुआ है कि जब अंतरराष्ट्रीय दामों में नरमी के बावजूद मजबूत घरेलू मांग के कारण दाम अधिक रहे।
