उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अपने फैसले में कहा कि कांग्रेस-जनता दल(एस) सरकार के 15 बागी विधायकों को विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इससे मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी की अगुआई वाली राज्य सरकार के गिरने के पूरे आसार नजर आ रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय पीठ ने बुधवार को अपने अंतरिम आदेश में कहा कि विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश 15 विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लेने में उतना समय लेने के लिए स्वतंत्र हैं, जितना वह उचित मानते हैं। हालांकि अदालत ने कहा कि इन विधायकों को सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, जिससे कुमारस्वामी सरकार के लिए खतरे की घंटी बज गई है। पीठ ने अपने तीन पृष्ठ के आदेश में कहा, 'हम यह भी स्पष्ट करते हैं कि अगले आदेश तक विधानसभा के 15 सदस्यों को सत्र की चल रही कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा और उन्हें एक विकल्प दिया जाना चाहिए कि वे कार्यवाही में शामिल होना चाहते हैं या इससे अलग रहना चाहते हैं। हम तद्नुसार आदेश दे रहे हैं।' बागी विधायकों की याचिका पर आदेश पारित करते हुए पीठ ने कहा कि इस समय आवश्यकता हमारे सामने किए गए परस्पर विरोधी अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में संवैधानिक संतुलन बनाए रखने की है। पीठ ने कहा कि वर्तमान राज्य सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव, जैसा हमें बताया गया कि यह 18 जुलाई, 2019 को लाया जाएगा, जैसी समयबद्ध कार्यवाही को ध्यान में रखते हुए इस तरह की अंतरिम व्यवस्था आवश्यक हो गई है। पीठ ने कहा कि इन परिस्थितियों में अंतरिम आदेश के माध्यम से परस्पर विरोधी दावों में संतुलन बनाने की आवश्यकता है और हमारा मानना है कि अध्यक्ष को सदन के 15 सदस्यों के इस्तीफे के अनुरोध पर एक समय सीमा के भीतर निर्णय लेने की अनुमति दी जानी चाहिए जिसे वह उचित समझते हैं। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में आगे कहा, 'पेश मामले में हमारा यह भी मानना है कि इस विषय पर निर्णय करते समय अध्यक्ष की विवेकशीलता को इस न्यायालय के किसी निर्देश या टिप्पणी से बाधित नहीं करना चाहिए और अध्यक्ष को संविधान के अनुच्छेद 190 और कर्नाटक विधानसभा की कार्यवाही के संचालन और प्रक्रिया नियमों के नियम 202 के अनुसार इस पर फैसला लेने के लिए स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए।' पीठ ने अपने आदेश में कहा कि उसके समक्ष मुद्दा यह है कि क्या 10वीं अनुसूची के अंतर्गत दायर अयोग्यता की याचिका से पहले विधायकों द्वारा दिए गए त्यागपत्रों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में प्राथमिकता दी जानी चाहिए या दोनों को एक साथ कार्यवाही के लिए लेना चाहिए या अयोग्यता के विषय पर त्यागपत्र के अनुरोध से पहले लिया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि पेश मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हमारा मानना है कि इन सवालों का जवाब कार्यवाही के बाद में चरण में दिया जाना चाहिए। करीब 10 दिन पहले 16 विधायकों के इस्तीफा देने से पहले कांग्रेस-जद (एस) सरकार के कुल 117 विधायक थे। इन 16 विधायकों में से 13 कांग्रेस और 3 जद (एस) के हैं। दो अन्य निर्दलीय विधायकों- एस शंकर और एच नागेश ने भी गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया है। अब इस गठबंधन सरकार के पास 99 विधायक बचे हैं। गुरुवार को राज्य विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश होगा, जिसमें कुमारस्वामी को अपनी 14 महीने पुराने सरकार को गिरने के बचाने के लिए कड़ी जद्दोजहद करनी होगी। विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पास 225 सदस्यीय विधानसभा में 107 विधायक हैं। उच्चतम न्यायालय का यह फैसला 10 बागी विधायकों की याचिका पर आया है। ये विधायक सरकार से इस्तीफा देने के बाद मुंबई के होटल में ठहरे हुए हैं। इन विधायकों ने शीर्ष अदालत में अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि विधानसभा अध्यक्ष उनके इस्तीफे को स्वीकार न कर अपना संवैधानिक कत्र्तव्य पूरा नहीं कर रहे हैं। हालांकि विधानसभा के अध्यक्ष ने इन आरोपों को खारिज किया। उन्होंने कहा कि वे इन इस्तीफों को स्वीकार करने से पहले उनकी सत्यता जांचेंगे। शीर्ष अदालत के आदेश का बागी विधायकों ने स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि वह किसी भी कीमत पर अपने इस्तीफे वापस नहीं लेंगे। विधानसभा अध्यक्ष कुमार ने कहा कि वह संवैधानिक सिद्धांतों के हिसाब से काम करेंगे। कांग्रेस ने बुधवार को कहा कि कर्नाटक के सियासी संकट पर उच्चतम न्यायालय के फैसले ने व्हिप को अमान्य करार दे दिया है और उन विधायकों को पूर्ण संरक्षण दे दिया है, जिन्होंने जनादेश के साथ विश्वासघात किया। उसने कहा कि उच्चतम न्यायालय के इस फैसले ने बेहद खराब न्यायिक मिसाल पेश की है। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने शीर्ष अदालत के फैसले पर असंतोष जताया। उन्होंने कहा कि इस फैसले ने जनादेश के साथ छल करने वाले विधायकों को दंंडित करने वाली संविधान की 10वीं अनसूची को निष्प्रभावी कर दिया है। कर्नाटक भाजपा प्रमुख बी एस येदियुरप्पा ने सियासी संकट पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह असंतुष्ट विधायकों के लिए नैतिक जीत है। इन विधायकों के इस्तीफे के कारण सत्तारूढ़-कांग्रेस गठबंधन सरकार गिरने के कगार पर पहुंच गई है। येदियुरप्पा ने कहा कि राजनीतिक दल 15 असंतुष्ट विधायकों को व्हिप जारी नहीं कर सकते, जिन्होंने अपनी विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और उन्हें सदन की कार्यवाही में भाग लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
