स्वतंत्रता दिवस के अपने सातवें भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में महिला विकास के कई पहलुओं पर जोर देते हुए कई बातें कहीं। हालांकि उन्होंने विशेष तौर पर इस बात का संकेत दिया कि उनकी सरकार ने देश में कानूनी रूप से शादी करने की महिलाओं की न्यूनतम उम्र को संशोधित करने का संकल्प लिया है। उन्होंने दिल्ली के लाल किले के प्राचीर से कहा, ‘हमने यह सुनिश्चित करने के लिए एक समिति बनाई है कि बेटियां अब कुपोषण से पीडि़त न हों और उनकी शादी सही उम्र में हो। रिपोर्ट पेश होते ही बेटियों की शादी की उम्र के बारे में उचित फैसला लिया जाएगा।’
भारत में शादियों की वास्तविक स्थिति कुछ और ही बयां करती है। केवल 1.3 फ ीसदी शादियों में ही लड़कियों की उम्र 18 साल पूरा करने से पहले ही शादी हो जाती है। हालांकि देश के नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) के आंकड़ों के मुताबिक ज्यादातर पुरुष 21 साल की उम्र पार करने के बाद ही शादी करते हैं जबकि एक-तिहाई लड़कियों की उम्र शादी के समय 21 साल से नीचे थीं। एसआरएस एक वार्षिक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण है जिसमें 80 लाख भारतीयों को शामिल किया गया था।
हालांकि दूसरे सरकारी सर्वेक्षण में एक अलग ही तस्वीर नजर आती है। भारत में उपलब्ध सबसे ताजा सर्वेक्षण आंकड़ों (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4) 2015-16, से पता चलता है कि देश में 18 वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही अब भी बाल विवाह बड़े पैमाने पर होता है। 20 से 24 साल के बीच की करीब 27 फ ीसदी महिलाओं ने 18 साल की उम्र पूरी करने से पहले ही शादी कर ली थी। यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक वैश्विक स्तर पर यह अनुपात ईरान और पाकिस्तान की तुलना में काफ ी अधिक है। विकसित देशों में पुरुषों के साथ-साथ लड़कियों की शादी के लिए कानूनी उम्र 18 वर्ष जिस सीमा को संयुक्त राष्ट्र ने निर्धारित किया है। लेकिन मोदी की यह टिप्पणी इस लिहाज से विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है कि दुनिया में एक-तिहाई बाल विवाह भारत में होते हैं। वर्ष 2015-16 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफ एचएस-4) में यह पाया गया कि 20-24 साल के आयु वर्ग की करीब 26.8 फ ीसदी लड़कियों की शादी 18 वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही हो गई थी। फि र भी 2005-06 में बाल विवाह के 50 फ ीसदी होने के मुकाबले 2015-16 में बाल विवाह कम ही हुए। इस सर्वेक्षण के वर्ष 2018-19 के संस्करण को अभी जारी किया जाना है। एनएफ एचएस-4 के तहत वर्ष 2015-16 में 5 लाख घरों को कवर किया गया।
20 वीं शताब्दी की शुरुआत में बाल विवाह बड़े पैमाने पर हुआ करता था और देश में लड़कियों की शादी काफ ी कम उम्र में कर दी जाती थी। 1930 के सारदा अधिनियम के तहत लड़कियों के लिए शादी की कानूनी उम्र 14 और लड़कों के लिए 18 साल तय की गई। राजीव सेठ और अन्य ने 2018 के एक शोधपत्र में इस बात का जिक्र किया, ‘बाल विवाह के सामाजिक निर्धारक पितृसत्तात्मक प्रणाली का संकेत देते हैं जो महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने, आजीविका के लिए कमाई करने या एक सार्थक नागरिक बनने से रोकता है।’ 1978 में बाल विवाह से जुड़े कानून ने शादी की कानूनी उम्र में बदलाव करते हुए इसे महिलाओं के लिए 18 साल और पुरुषों के लिए 21 साल कर दी। इस अधिनियम में इस उम्र से पहले होने वाली सभी शादियों को ‘बाल विवाह’ के रूप में चिह्नित किया और उसे कानून के तहत दंडनीय बनाया। एक दशक बाद 1990 में भारतीय महिलाओं के लिए शादी में प्रभावी औसत आयु बढ़कर 19.3 हो गई थी। एसआरएस के आंकड़ों के मुताबिक अब यह 2018 में और बढ़कर 22.3 हो गया है। लेकिन शादी की औसत उम्र सीमा विभिन्न राज्यों में 21 से 26 तक रहती है। इस लिहाज से जम्मू-कश्मीर में लड़कियां सभी राज्यों के मुकाबले सबसे जल्दी शादी करती हैं। आमतौर पर उत्तर के पहाड़ी राज्यों और केरल और तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले गांवों में महिलाएं देर से शादी करती हैं। बड़े ग्रामीण क्षेत्रों वाले राज्य मसलन मध्य प्रदेश में महिलाओं के लिए शादी की औसत उम्र कम है।
शहरों में जिस औसत उम्र में महिलाओं की शादी होती है वह देश के ग्रामीण इलाकों की तुलना में अधिक है। शहरी क्षेत्रों में भी जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में महिलाएं जल्दी शादी नहीं करती हैं। बाल विवाह पर 2015 के जिला स्तरीय सर्वेक्षण में बाल विवाह के कारकों का अंदाजा मिला। 2017 में प्रकाशित आकांक्षा मार्फ तिया और अन्य लोगों के शोध से पता चलता है कि मजबूत सरकारी स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा और बाल विवाह की ‘कमजोर राजनीतिक मान्यता’ को समाप्त करना महत्त्वपूर्ण है। हालांकि इसमें पुरुषों की शादी की औसत उम्र इन प्रकाशनों में उपलब्ध नहीं है। लेकिन मनमोहन सिंह की पूर्ववर्ती सरकार द्वारा गठित एक कार्यबल ने अपनी 2015 की रिपोर्ट में सिफ ारिश की थी कि शादी की कानूनन उम्र महिलाओं और पुरुषों में समान रूप से लागू होना चाहिए। 2015 में महिलाओं की स्थिति पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया, ‘शादी की उम्र के संबंध में कानूनों में एकरूपता लाने की दिशा में एक कदम बढ़ाया जाना चाहिए।’ मोदी सरकार ने मातृत्व की उम्र, मां की मृत्यु दर कम करने की अनिवार्यता और महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार से संबंधित मामलों की जांच के लिए जून 2020 में एक कार्यबल का गठन किया है जो जल्द ही रिपोर्ट सौंपने वाला है।