पिछले  साल जब लॉकडाउन हटाया गया था, तब सूरत के बाहरी इलाके किम-पिपोदरा  औद्योगिक क्षेत्र में पावरलूम इकाई चलाने वाले रसिकभाई कोटडिया के पास उन  48 में से केवल चार श्रमिक ही रह गए थे, जिन्हें वह अपने 128 करघे चलाने के  लिए काम पर रखा करते थे। हालांकि अर्थव्यवस्था को अनलॉक कर दिया गया था,  लेकिन उनकी कपड़ा इकाई और अन्य लोगों की भी हजारों इकाइयों को दोबारा काम  शुरू करने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
मई  के अंतिम सप्ताह तक सूरत के 12 लाख से 15 लाख प्रवासी श्रमिकों में से  करीब 7,00,000 श्रमिक, जो लॉकडाउन के दौरान बिना वेतन के बेहाल हो गए थे,  वापस घर लौट गए थे। सूरत के एक अन्य कपड़ा बुनाई केंद्र-लस्काना में  पावरलूम शांत पड़े हुए थे। कुल 55,000 करघों में से केवल 2,000 में ही बहुत  धीमी गति से सफेद कपड़े का उत्पादन हो रहा था।
लेकिन  पंगु करने वाली श्रमिकों की कमी ही एकमात्र दिक्कत नहीं थी। बढ़ते घाटे का  सामना करने वाले कपड़ा इकाइयों के मालिक बचे हुए कुछेक श्रमिकों को  कोविड-19 से पहले के उनके वेतन प्रति महीना 15,000 से 18,000 रुपये के एक  भाग का भुगतान कर रहे थे।
ऐसा  तब था। आज गुजरात का कपड़ा केंद्र जबरदस्त सुधार का प्रत्यक्षदर्शी है।  सूरत का लगभग 70,000 करोड़ रुपये का सिंथेटिक कपड़ा उद्योग जिसमें लॉकडाउन  के दौरान ठहराव आ गया था, एक बार भी सक्रिय हो रहा है।
उदाहरण  के लिए कोटडिया ने अपनी इकाई में न केवल और मशीनेें ही शामिल की हैं,  बल्कि अपने श्रमिकों की संख्या भी बढ़ाकर 60 कर दी है, जो इस वैश्विक  महामारी से पहले 48 थी। कोटडिया कहते हैं कि कुछेक महीने से कारोबार की  रफ्तार काफी धीमी थी। हालांकि दीवाली के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा  है। सूरत में कोटडिया की इकाई उन गिनी-चुनी इकाइयों में से एक है जिनके पास  वाटर जैक्वार्ड मशीनें हैं जिनसे रंगीन डिजाइनर कपड़ा बनता है।
इस  पुनरुद्धार से श्रमिकों को भी फायदा हो रहा है। सूरत में उधना-मगडल्ला रोड  पर स्थित एक पावरलूम में काम करने वाले 36 वर्षीय पीताबर बेहड़ा और उनके  दो भाई दिवंगत पिता द्वारा छोड़े गए 10 लाख रुपये से अधिक का पुराना कर्ज  उतारने में सफल रहे हैं।
बेहड़ा  के वेतन में इजाफा हुआ है और वह अपने परिवार की आमदनी तीन गुना करने में  सफल रहे हैं। वह कहते हैं ‘जब लॉकडाउन हुआ, तो मैंने सोचा कि मेरी जिंदगी  खत्म हो गई है और मुझे ओडिशा के गंजम में अपने घर लौटना पड़ेगा। लेकिन यहां  के सुधार से न केवल मुझे अपने भाइयों के लिए नौकरी दिलाने में ही मदद  मिली, बल्कि मेरे पिता का कर्ज भी चुकता हो गया।’
उद्योग  के सूत्रों का अनुमान है कि 4,00,000 से 5,00,000 प्रवासी श्रमिकों को  सूरत कीकपड़ा बुनाई इकाइयों में, 3,00,000 से 4,00,000 को कपड़ा प्रसंस्करण  इकाइयों में रोजगार मिला हुआ है और अन्य 2,00,000 को थोक बिक्री वाले  बाजारों में कपड़ा व्यापारियों द्वारा रोजगार दिया गया है। सूरत में लगभग  450 कपड़ा प्रसंस्करण इकाइयां और 6,00,000 से ज्यादा पावरलूम हैं।
पावरलूम  क्षेत्र उधना-मगडल्ला रोड पर डीएम टेक्स्टाइल के मयूर चेवली जैसे इकाई  मालिकों का अनुमान है कि पिछले साल उन्हें चार से छह महीने के कारोबार का  नुकसान उठाना पड़ा है। चेवली ने भी अपने कारोबार में विस्तार किया है।
इनका  कहना है कि हालांकि दीवाली के बाद खुदरा बाजार में सुधार से हम जैसे इकाई  मालिक जितना हो सके, उतना व्यापार पाने के लिए बेकरार थे। इसलिए हम  श्रमिकों को अधिक वेतन पर वापस बुलाने का निवेदन करने लगे।
सामान्य  समय में सूरत के कपड़ा श्रमिक अन्य उद्योगों में काम करने वाले अपने  साथियों की तुलना में बेहतर रहते हैं, क्योंकि वे प्रति इकाई दर के आधार पर  कमाते हैं। इसका मतलब यह है कि वे जिस सफेद कपड़े का उत्पादन करते हैं,  उसके लिए उन्हें प्रति मीटर दो से पांच रुपये तक का भुगतान किया जाता है।  औसत मासिक वेतन के रूप में यह 15,000 रुपये से 20,000 रुपये तक बैठता है।  कोटडिया कहते हैं कि हालांकि पिछली दीवाली से उनका औसत वेतन बढ़कर 20,000  रुपये से 25,000 रुपये तक हो चुका है।
सूरत  के पक्ष में एक और बात रही है और वह यह है कि देश के अन्य कपड़ा क्षेत्रों  से अलग, उद्योग में यहा सिंथेटिक कपड़ा, परिधान और साड़ी विनिर्माता हैं  तथा निम्र और मध्य आय समूहों की मांग पूरी कर रहे हैं। यही वह खंड है जिसने  त्योहारी सत्र के बाद से खुदरा बाजार में वापसी की है।
हालांकि  केवल धागा विनिर्माताओं ने ही सबसे ज्यादा कमाई की है, लेकिन सिंथेटिक  धागे के दाम 90 से 95 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 130 से 135 रुपये  प्रति  किलोग्राम होने से पिछले वर्ष की तुलना में 45 प्रतिशत का भारी  इजाफा हुआ है। इसके बाद कपड़ा मूल्य शृंखला की इकाइयां दामों में उतना  इजाफा नहीं कर पाई हैं, जिससे उनके लाभ में कमी आ रही है, अन्यथा वे इससे  कमाई कर सकते थे। दीवाली के बाद से कपड़े की कीमतों में केवल 10 से 15  प्रतिशत का ही इजाफा हुआ है।
ऐसा  नहीं है कि केवल सूरत के कपड़ा उद्योग में ही दोबारा तेजी आई है। इसका  प्रसिद्ध हीरा उद्योग भी पिछले साल के राजस्व स्तर को छू रहा है और अपने  कारोबार का विस्तार कर रहा है। हीरा कारोबारी अर्जन बाबलिया को लीजिए। सूरत  के कतारगाम में एक व्यावसायिक इमारत की दूसरी मंजिल पर 2,000 वर्ग फुट से  भी कम की हीरा तराश इकाई से निकलकर उन्होंने हाल ही में बगल वाली इमारत में  एक पूरी मंजिल किराये पर ली है। दीवाली के बाद से उन्होंने अपने  कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ाकर 75 कर दी है, जबकि वैश्विक महामारी से  पहले कर्मचारियों की संख्या 50 से भी कम थी। अब उनके कर्मचारी कोविड से  पहले के वेतन की तुलना में कम से कम 20 प्रतिशत अधिक कमा रहे हैं।
बाबलिया  कहते हैं कि जब लॉकडाउन खत्म हुआ, तब हमारे ऊपर बढ़ते स्टॉक और रद्द हुए  ऑर्डरों की समस्या थी। अलबत्ता चूंकि विदेशी बाजार खुलने शुरू हो गए हैं और  ग्राहकों ने महसूस किया है कि हम ऑर्डर पूरे कर सकते हैं, इसलिए चीजें  सुधरनी शुरू हो गई हैं।
दुनिया  के 10 हीरों में से नौ हीरे सूरत में तराशे जाते हैं और मोटे तौर पर यहां  6,000 हीरा तराश इकाइयां 7,00,000 से ज्यादा श्रमिकों को रोजगार प्रदान  करती हैं, जिनका सालाना कुल कारोबार 24 अरब डॉलर या 1.7 लाख करोड़ रुपये  रहता है।
उद्योग के दिग्गज  तथा रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद के क्षेत्रीय अध्यक्ष दिनेश  नवाडिया के अनुसार लॉकडाउन के बाद से सूरत के हीरा उद्योग ने काफी वक्त से  लंबित पड़े दो अरब डॉलर से अधिक के स्टॉक पर करते हुए न केवल इजाफा किया  है, बल्कि पिछले नवंबर से मांग और निर्यात में भी तेजी नजर आई है।
नवंबर  और दिसंबर 2020 के दौरान तराशे हीरों का निर्यात 12,000 करोड़ रुपये से  अधिक का रहा, जो वर्ष 2019 की इसी अवधि में मोटे तौर पर लगभग 8,000 करोड़  रुपये से 9,000 करोड़ रुपये तक रहा था।