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भारत की विकास गाथा: जनसंख्या विस्फोट या आबादी में गिरावट?

पिछले 25 वर्षों में भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। अब प्रजनन दर घट रही है और चिंता हो रही है कि अमीर बनने से पहले ही भारत कहीं बूढ़ा न हो जाए।

Last Updated- December 23, 2024 | 10:46 PM IST
India's growth story: population explosion or population decline? भारत की विकास गाथा: जनसंख्या विस्फोट या आबादी में गिरावट?

पिछले कुछ महीनों में राजनीतिक, व्यावसायिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हलकों की कुछ बड़ी हस्तियों ने भारत की जनसंख्या के कई पहलुओं पर बात की है। उद्योग जगत की एक जानी-मानी शख्सियत ने बढ़ती आबादी पर फिक्र जताई है तो कई दूसरे लोग प्रजनन दर में गिरावट से चिंता में पड़े हैं। उनकी बातें देश में जनसंख्या से जुड़े उन तमाम पहलुओं को दर्शाती हैं, जो हाल में सामने आए हैं और जिनका असर सदी के बाकी हिस्से पर दिखता रहेगा।

सदी का पहला दशक देखें तो जनगणना के मुताबिक 2001 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार घटकर 17.70 फीसदी रह गई, जो इससे पिछले दशक में 21.54 फीसदी थी। इसका मतलब साफ है कि 2001 से 2011 वाले दशक में देश की आबादी में कुछ कम इजाफा हुआ। वास्तव में यह इजाफा उससे पहले के छह दशकों में सबसे कम थी।

इससे पहले 1951 में आबादी केवल 13.31 फीसदी बढ़ी थी। इसकी वजह भारत की कुल प्रजनन दर थी, जो 2001 से 2011 के दशक में घटकर 2.2 रह गई। इसका मतलब है कि देश में हर दंपती के औसतन 2.2 संतानें हुईं, जबकि यह दर 1991 से 2000 के दशक में 2.5 थी। 2001-2011 का आंकड़ा 2.2 के रीप्लेसमेंट स्तर से मामूली अधिक था। रीप्लेसमेंट स्तर वह आंकड़ा होता है, जितनी संतानें किसी मां को जनसंख्या स्थिर रखने के लिए चाहिए होती हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों से पता चलता है कि कुल प्रजनन दर 2015-16 में भी 2.2 ही रही मगर 2019 से 2021 के दौरान घटकर 2 रह गई, जो रीप्लेसमेंट लेवल से कम है। इसका मतलब है कि देश की आबादी में अब गिरावट आएगी। संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग (यूएन डीईएसए) के अनुमानों से पता चलता है कि 2025 से वृद्धि दर सालाना 1 फीसदी के दायरे में रहने पर भी भारत की आबादी में गिरावट 2062 से पहले नहीं दिखेगी।

यूएन डीईएसए के अनुमान के बावजूद कि भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 2025 में घटकर 0.9 फीसदी रह जाएगी। इसके बावजूद उस साल आबादी 1.31 करोड़ बढ़ जाएगी। यह भारत की जनसंख्या पर आधारित है जो वर्ल्डोमीटर के अनुसार 16 दिसंबर तक 1.46 अरब थी। वर्ल्डोमीटर ने चीन की जनसंख्या 1.42 अरब बताई है।

यह वृद्धि 2001 से 2011 के दशक में औसतन सालाना 1.82 करोड़ लोगों की वृद्धि के मुकाबले काफी कम होगी। इसके बावजूद 2025 में भारत की आबाद में ऑस्ट्रेलिया की लगभग आधी आबादी जितनी वृद्धि होगी जो वर्ल्डोमीटर के अनुसार 16 दिसंबर, 2024 तक 2.68 करोड़ थी।
अगर है तो जानेमाने लोग अधिक बच्चे पैदा करने की सलाह क्यों दे रहे हैं? मुख्य रूप से इसके दो कारण हैं।

मगर संयुक्त राष्ट्र में आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग (यूएन डेसा) का अनुमान है कि भारत की आबादी 2062 से पहले घटना शुरू नहीं होगी। हां, 2025 के बाद से इसकी वृद्धि दर घटकर 1 फीसदी के भी नीचे चली जाएगी। फिर भी हर साल देश की आबादी 1.31 करोड़ बढ़ती रहेगी।

अगर ऐसा है तो प्रमुख हस्तियां लोगों से अधिक संतानें पैदा करने के लिए क्यों कह रही हैं? इसकी दो वजहें नजर आती हैं।

पहला कारण: भारत की कुल प्रजनन दर 2019 से 2021 के बीच रीप्लेसमेंट स्तर से नीचे चली गई थी। ऐसे में चिंता है कि देश की आबादी जल्द ही बूढ़ी हो सकती है। इससे युवा आबादी वाला फायदा खत्म हो जाएगा। यूएनडेसा के मुताबिक 2024 में भारत की 68.7 फीसदी आबादी की उम्र 15 से 64 वर्ष के बीच थी। मगर कौशल और मौकों की कमी के कारण आबादी के इस पहलू का पूरा फायदा अभी तक नहीं उठाया जा सका है। आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण के मुताबिक जुलाई 2023 से जून 2024 के बीच रोजगारयाफ्ता लोगों में से करीब 20 फीसदी के पास नियमित कमाई या वेतन वाली नौकरी थीं।

आबादी बूढ़ी होने का डर इसलिए हो रहा है कि लोग लंबी जिंदगी जी रहे हैं और कुल प्रजनन दर घट रही है। उदाहरण के लिए 2024 में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा बढ़कर 71 वर्ष और महिलाओं की जीवन प्रत्याशा बढ़कर 74 वर्ष हो गई यानी पुरुष औसतन 71 साल तक तथा महिलाएं औसतन 74 साल तक जी रही थीं। 2011 में पुरुषों के लिए आंकड़ा 64.6 साल और महिलाओं के लिए 67.7 साल था।

लेकिन हो सकता है कि ये आशंकाएं गलत हों। 2021 में बुजुर्गों (60 साल से अधिक उम्र के लोगों) की आबादी देश की कुल आबादी की 10.1 फीसदी थी, जो 2035 तक बढ़कर 15 फीसदी होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

अहमदाबाद की एलजे यूनिवर्सिटी के मानद प्रोफेसर और विकास अर्थशास्त्री अमिताभ कुंडू कहते हैं, ‘हमें घबराना नहीं चाहिए। अगले 15 साल तक हमारे सामने युवा आबादी का फायदा गंवाने का खतरा नहीं है।’ उन्होंने कहा कि 2040 के बाद इसमें गिरावट आएगी, लेकिन अभी इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है।

विशेषज्ञों भी मान रहे हैं कि भारत या कम से कम इसके कुछ राज्य अमीर बनने से पहले ही बूढ़े हो सकते हैं। इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस्ड स्टडीज इन कॉम्प्लेक्स चॉइसेज के प्रोफेसर और सह-संस्थापक अनिल के सूद कहते हैं कि भारत को अभी तो युवा आबादी का फायदा मिल रहा है मगर 2019 से 2021 के बीच कुल प्रजनन दर घटकर 2 रह जाने से लगने लगा है कि देश अमीर होने से पहले ही बूढ़ा हो जाएगा।

यहां तेलंगाना, कर्नाटक और हरियाणा जैसे सबसे अमीर राज्य भी 4,500 से 14,000 डॉलर प्रति व्यक्ति आय के साथ उच्च-मध्य आय वर्ग के निचले छोर पर आते हैं। इसलिए सूद का कहना है कि वैश्विक औसत आय के साथ ही धनी देश कहलाने की न्यूनतम आय सीमा भी बढ़ती जाएगी। इसलिए भारत को बाकी दुनिया के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ना होगा।

सूद यह भी कहते हैं कि भारत सालाना 10 फीसदी की दर से बढ़ा और न्यूनतम सीमा 5 फीसदी चढ़ गई तौ तेलंगाना जैसे अमीर राज्य को भी धनी आय वर्ग के सबसे निचले पायदान तक पहुंचने में 25 साल लग जाएंगे। वह समझाते हैं, ‘बतौर देश वहां तक पहुंचने में और भी ज्यादा वक्त लग जाएगा। इसलिए कुछ राज्यों में हमें करीब एक दशक में ही बड़ी संख्या में कम आय वाले बुजुर्गों के भरण-पोषण की चुनौती झेलनी होगी।’

दूसरा कारण इसके परिणाम हैं: अब राज्यों में लोगों से अधिक बच्चे पैदा करने की आवाजें उठने लगी हैं। विशेषकर दक्षिणी राज्यों में बिहार और उत्तर प्रदेश के मुकाबले कुल प्रजनन दर (टीएफआर) कम है।  कुंडू कहते हैं कि भारत उन देशों में शामिल हैं, जहां वृद्ध आश्रित आबादी कम है, लेकिन, दक्षिण राज्यों में यह निर्भरता दर (कामकाजी लोगों की आबादी में वृद्धों का अनुपात) अधिक है।

उनका मानना है कि कम प्रजनन दर वाले राज्यों में इस समस्या से निपटने के लिए देश के भीतर कहीं भी रहने को खुली छूट देनी चाहिए। यद्यपि संविधानिक रूप से तो देश में प्रवासन पर कोई रोक नहीं है, लेकिन हालिया वर्षों में कुछ राज्यों ने इस पर कुछ प्रतिबंध थोपे हैं।

इन प्रतिबंधों का सबसे बड़ा नुकसान निजी क्षेत्र को होता है। इसका उदाहरण कोविड के दौरान देखने को मिला जब हालात पटरी पर लौटे तो केरल जैसे एक छोर पर बसे राज्य से श्रमिकों को लाने के लिए बसें बिहार तक आईं। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि देश में महिला कामगारों की हिस्सेदारी दर बहुत कम है।

रोजगार के अवसर तो बढ़ रहे हैं, लेकिन अच्छी गुणवत्ता की नौकरियां नहीं मिल रही हैं। कुंडू ने सुझाव दिया कि बेहतर गुणवत्ता वाली नौकरियों के लिए कार्यबल को कुशल और प्रशिक्षित करने की जरूरत है। साथ ही महिला कार्यबल की भागीदारी भी बढ़ाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि कार्यबल को कुशल बनाने पर ध्यान दिया जाए तो देश में अगले 40 वर्षों तक श्रमिकों की कमी नहीं होगी।

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2023-24 (जुलाई से जून) के बीच महिला श्रमबल हिस्सेदारी दर 41.7 प्रतिशत और पुरुषों की हिस्सेदारी 78.8 प्रतिशत आंकी गई थी। कुंडू युवा आबादी पर वृद्ध आश्रित जनसंख्या का भार कम करने के लिए 60 से अधिक उम्र के लोगों को विभिन्न क्षेत्रों में दोबारा प्रशिक्षित करने की जरूरत पर बल देते हैं।

सूद कहते हैं कि यदि लंबे समय के लिए इस समस्या का हल चाहते हैं तो परिवार की कमाने और बचत करने की क्षमता को बढ़ाना होगा। साथ ही शिक्षा और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं पर निवेश बढ़ाना होगा। उन्होंने कहा, ‘यह जानते हुए कि अभी कोविड 19 से हुए नुकसान की भरपाई भी नहीं हो पाई है, असफल या बेकार परियोजनाओं में निवेश रोक कर पैसे को ऐसे संसाधन जुटाने पर खर्च करना होगा जहां भारतीयों की कमाने एवं बचत करने की क्षमता का विकास हो।’

विशेषज्ञ कहते हैं कि जिन लोगों ने अल्पसंख्यकों की बढ़ती आबादी के जवाब में धार्मिक आधार पर बहुसंख्यक समुदाय को अधिक बच्चे पैदा करने की सलाह दी, वे तथ्यों से वाकिफ नहीं हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2015-16 के मुकाबले 2019-20 में सिख और जैन समुदायों को छोड़ दें तो अन्य सभी समुदायों की प्रजनन दर घटी है।

यद्यपि मुसलमानों की प्रजनन दर अभी भी प्रतिस्थापन स्तर (प्रति महिला लगभग 2.1 बच्चों की कुल प्रजनन दर) से अधिक है। वर्ष 2015-16 में यह 2.62 जो वर्ष 2019-21 की अवधि में घटकर 2.36 पर आ गई। अन्य सभी समुदायों में प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है। यहां तक कि सिख और जैन समुदायों में जहां इस अवधि में प्रजनन दर बढ़ी थीं, वहीं वर्ष 2019-20 के दौरान यह क्रमश: 1.61 और 1.6 पर दर्ज की गई।

कुंडू कहते हैं कि धार्मिक अल्पसंख्यक समूह के प्रभावी होने की मौजूदा बहस निरर्थक ही है, क्योंकि ऐसा कभी नहीं होगा। वह इसका कारण भी बताते हैं, ‘मुसलमानों की प्रजनन दर भी कम हो रही है।’ वह यह भी कहते हैं अधिक बच्चे पैदा करने की बात कोई समुदाय मानने वाला नहीं है। वह कहते हैं, ‘देश बचाने के लिए कोई पुनरुत्पादन नहीं करता।’

सूद कहते हैं, ‘अधिक बच्चे पैदा कर जनसांख्यिकीय लाभ लेने की जो बात समझाई जा रही है, वह पूरी तरह गलत है, क्योंकि आज भी देश में बहुत बड़ी आबादी ऐसी है, जिसके पास बेहतर कमाई के अवसर उपलब्ध नहीं हैं।

First Published - December 23, 2024 | 10:46 PM IST

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