देश में लंबे समय से भांग एक विवादित क्षेत्र रहा है। इसे एक पवित्र पौधे के रूप में परिभाषित किया गया है, लेकिन साथ ही यह खराब नशे के रूप में बदनाम है। लेकिन भांग के उद्यमियों की नई पीढ़ी के लिए यह उम्मीद का क्षण है। बॉम्बे हेम्प कंपनी (बोहेको), हेम्पकैन सॉल्यूशंस और एवरेस्ट ईको हेम्प जैसी स्टार्टअप शुरुआती अवस्था से गुजर रहे इस उद्योग का हिस्सा हैं। यह उद्योग स्वीकार्यता बढऩे की आहट महसूस कर रहा है। यह चाहता है कि नीति-निर्माता एक चमत्कारी पौधे के रूप में भांग में संभावनाओं के द्वार खोलने के लिए ठोस फैसले लें।
इस उद्योग को संयुक्त राष्ट्र के फैसले से उम्मीद की किरण मिली है, जिसने दिसंबर 2020 में भांग को कम खतरनाक नशीले पदार्थ के रूप में फिर से वर्गीकृत किया है। संयुक्त राष्ट्र की औषध नीति-निर्माण संस्था-मादक पदार्थ आयोग के 53 सदस्य देशों में भारत भी शामिल है, जिसने 1961 के मादक पदार्थ समझौते की अनुसूची चार से भांग को हटाने के पक्ष में मतदान किया। इस समझौते के तहत भांग को उन नुकसानदेह मादक पदार्थों में शामिल किया गया था, जिनका इलाज में मामूली या कोई उपयोग नहीं है। असल में इस मतदान से भांग के दवा या उपचार में इस्तेमाल के गुण को मान्यता देना आसान हो गया है। हालांकि इसे गैर-वैज्ञानिक और गैर-चिकित्सा उद्देश्यों के लिए आगे भी एक नुकसानदेह मादक पदार्थ माना जाता रहेगा।
बोहेको के सह-संस्थापक जहान पेस्टन जेम्स ने कहा, ‘भारत का मतदान उद्योग, शिक्षाविदों और चिकित्सा विशेषज्ञों के लिए एक अत्यधिक सकारात्मक प्रतिक्रिया थी।’ उन्होंने कहा, ‘सबसे अहम प्रभावों में से एक टीएचसी और सीबीडी को लेकर दवा और पौष्टिक औषधीय संस्थानों के साथ संवाद और फूल की खेती एवं उपयोग चिकित्सा उपयोग के लिए बढ़ेगा।’
भारत में स्वापक औषधि एवं मन: प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 भांग के शौकिया इस्तेमाल को अवैध ठहराता है। यह भांग की राल और फूलों के उत्पादन और बिक्री पर रोक लगाता है, लेकिन बीजों एवं पत्तियों को अपने दायरे से बाहर रखता है। इसकी पत्तियों को ड्रग्स ऐंड कॉस्मेटिक्स ऐक्ट, 1940 के तहत आयुर्वेदिक एवं यूनानी दवाओं में इस्तेमाल होने वाले पदार्थ माना गया है।
जेम्स ने कहा कि भांग का बीज भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण द्वारा एक आधिकारिक खाद्य घटक के रूप में वर्गीकृत एवं अधिसूचित किए जाने के अंतिम चरण में है। स्वास्थ्य मंत्रालय की अक्टूबर 2020 की अधिसूचना में कहा गया कि भांग सटीवा पौधे से प्राप्त भांग के बीज और उसके उत्पादों को खाद्य के रूप में बेचा जा सकता या बेचे जाने वाले खाद्य में एक घटक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, बशर्ते उन्हें कुछ निश्चित मापदंडों का पालना करना होगा।
एक औद्योगिक एवं चिकित्सा भांग संगठन बोहेको ने बीते वर्षों में भांग के वाणिज्यिक उत्पाद तैयार किए हैं, जिनमें भांग के कपड़े, भांग के बीज और तेल आधारित खाद्य और पत्ती आधारित स्वास्थ्यप्रद उत्पाद शामिल हैं। इस कंपनी को स्थापित हुए आठ साल हो गए हैं, जिसे रतन टाटा भी वित्तीय मदद दे रहे हैं। कंपनी ने नीति-निर्माताओं और नियामकों के साथ मिलकर एक तंत्र विकसित करने की कोशिश की है ताकि औद्योगिक और चिकित्सा उद्देश्यों के लिए पौधे की खेती एवं अनुसंधान को मंजूरी दी जाए। इसने भारत में अनुसंधान के लिए भांग की खेती के पहले लाइसेंस में से एक प्राप्त करने के लिए उत्तर प्रदेश मेंं वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर)-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के साथ मिलकर काम किया है। इसने सीएसआईआर साझेदारों के साथ एक बीज बैंक के लिए 300 से अधिक किस्में संग्रहीत की हैं। इनका अलग-अलग टीएचसी और सीबीडी स्तरों और रेशे एवं बीज की गुणवत्ता के लिए अध्ययन किया जा रहा है। ा
बोहेको क्लीनिकल परीक्षण और गठिया रोग के इलाज के तेल जैसे लाइसेंसी उत्पादों की बाजार में बिक्री में भी आगे रही है। जेम्स ने कहा, ‘पिछले दो साल के दौरान 15,000 मरीजों को उत्पाद मुहैया कराए हैं और 100 से अधिक डॉक्टरों के साथ काम किया है।’
अमेरिकी की सलाहकार कंपनी ग्रैंड व्यू रिसर्च द्वारा एक साल पहले प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, ‘वैश्विक वैध मैरिजुआना (भांग को इस नाम से भी जाना जाता है) बाजार वर्ष 2027 तक 18.1 फीसदी चक्रवृद्धि सालाना वृद्धि दर से 3.6 अरब डॉलर पर पहुंचने का अनुमान है। भारत में इस क्षेत्र में करीब 10 कंपनियां हैं। यहां भांग के बीज आधारित खाद्य और भांग आधारित स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों का उद्योग सालाना 12 से 14 अरब डॉलर होने का अनुमान है।’ एक ओडिशा स्थित स्टार्टअप हेम्पकैन सॉल्यूशंस ने एक साल पहले बेंगलूरु में पहला भांग क्लीनिक खोला था। संयुक्त राष्ट्र में मतदान के बाद यह सात साल पुरानी कंपनी सकारात्मक नीतिगत बदलावों की उम्मीद कर रही है। इसके संस्थापक सौरभ अग्रवाल ने कहा, ‘हमें देखना होगा कि सरकार का रुख कैसा रहता है और वह इस पौधे पर कितना कड़ा नियंत्रण रखना चाहती है, जो इतना हानिकारक नहीं है जितना माना जाता है।’
उन्होंने कहा कि उनकी कंपनी को अभी तक ठीकठाक प्रतिक्रिया मिली है। एवरेस्ट ईको हेम्प के निदेशक (परिचालन एवं रणनीतिक गठजोड़) दिलशेर सिंह धालीवाल ने कहा कि भांग को संस्कृत में विजय भी कहा गया है क्योंकि इसमें बहुत से चिकित्सकीय गुण हैं। उन्होंने कहा, ‘विडंबना यह है कि हिमाचल प्रदेश की उच्च गे्रड की किस्मों की बिक्री यहां नहीं होती, लेकिन एम्सटर्डम में होती है।’ यह गुरुग्राम स्थित स्टार्टअप और लाइसेंस धारक है। यह 250 एकड़ में भांग उगाती है। इसकी शुरुआत वर्ष 2016 में हुई थी, जिसका मकसद उद्योग को कच्चा माल मुहैया कराना था। यह सरकार में लॉबिइंग कर रही है। लेकिन धालीवाल का कहना है कि अफसर लाल फीताशाही, कड़े नियमों और नकारात्मक धारणा एक प्रमुख बाधा बने हुए हैं। धालीवाल ने कहा कि पिछले साल अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के बाद पैदा हुए बॉलीवुड नशा सिंडिकेट विवाद ने भांग को और बदनाम किया है। धालीवाल ने कहा, ‘सरकार चाहती है कि किसान चावल और गेहूं से इतर फसलें उगाएं और एक नई हरित क्रांति लाएं। इसमें भांग एक अहम भूमिका निभा सकती है।’
