पिछले साल इस वक्त भारत में इन तौर-तरीकों पर चर्चा हो रही थी कि कैसे कोविड टीकाकरण अभियान को शुरू किया जाए क्योंकि कुछ देशों ने अपनी आबादी को तत्काल टीका लगाने के लिए अभियान शुरू कर दिया था। इसके एक महीने बाद 16 जनवरी को भारत में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया गया। अब देश में एक साल से भी कम समय में आधे से अधिक अपनी वयस्क आबादी को टीके की दोनों खुराक दे दी गई है और अब बूस्टर शॉट को लेकर चर्चा चल रही है और साथ ही यह सवाल उठने लगा है कि क्या इस वक्त बूस्टर शॉट (टीके की तीसरी खुराक) दी जानी चाहिए? इस बीच, लगभग 60 देश पहले से ही वायरस के दो नए स्वरूप डेल्टा और ओमीक्रोन के खतरे को देखते हुए अपनी आबादी को टीके की तीसरी खुराक दे रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुरूप भारत का रुख बूस्टर शॉट के बारे में सोचने से पहले टीके की पहली और दूसरी खुराक को प्राथमिकता देने का रहा है।
वैज्ञानिक समुदाय के लिहाज से जब तक प्रतिरोधक क्षमता में कमी का समर्थन देने के सबूत न हों और न सिर्फ ऐंटीबॉडी बल्कि दोबारा संक्रमण के गंभीर मामले में कमी के बावजूद बूस्टर के विचार को स्थगित रखा जाना चाहिए। तिरुवनंतपुरम के राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी ई श्रीकुमार ने कहा, ‘हमारे पास सुरक्षा के लिए जरूरी ऐंटीबॉडी टाइटर कट ऑफ नहीं है।’
उन्होंने कहा, ‘एक अतिरिक्त खुराक का जोखिम लाभ विश्लेषण किया जाना चाहिए। इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र में एईएफ आई (टीकाकरण के बाद प्रतिकूल घटनाओं) के स्पष्ट दस्तावेज की भी आवश्यकता होती है।’
हालांकि सरकार की विशेषज्ञ समितियां इस मुद्दे का आकलन कर रही हैं लेकिन भारत की बहु-प्रयोगशाला, बहु-एजेंसी, पैन-इंडिया नेटवर्क जो भारत के जीनोमिक्स पर आधारित सार्स-कोव-2 कंसोर्टियम (इन्साकॉग) है, वह कोविड के कारण वायरस में जीनोमिक विविधताओं की निगरानी करेगा और उसने 29 नवंबर को अपने साप्ताहिक बुलेटिन में इस पर बयान दिया, ’40 वर्ष या इससे अधिक उम्र के लोगों के लिए बूस्टर खुराक के जरिये सबसे ज्यादा जोखिम वाले लोगों या संक्रमण की चपेट में ज्यादा आने वाले लोगों पर विचार किया जा सकता है।’ लेकिन एक सप्ताह बाद इसे वापस ले लिया गया। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के चेयरपर्सन जयप्रकाश मुलियिल का कहना था, ‘पढ़े-लिखे लोगों के डर की वजह से बूस्टर खुराक को लेकर विचार चल रहा है। टीकाकरण की वजह से गंभीर हालात की स्थिति में कमी आनी थी और लोगों की मौत को रोकना था और यह सब अच्छे तरीके से किया गया। इसके अलावा आप किसी भी साहित्य, प्राकृतिक संक्रमण को देखिए जो सुरक्षा देता है।’ मुलियिल भारत में संक्रमण की उच्च दर का जिक्र कर रहे थे, विशेष रूप से डेल्टा की वजह से आई कोविड की दूसरी लहर को लेकर जो राष्ट्रीय सीरोसर्वे में भी जाहिर हुआ था।
बूस्टर खुराक को लेकर टीकाकरण से जुड़े राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह में विपरीत विचारों की बात है हालांकि कुछ वैज्ञानिक, बूस्टर खुराक के पक्ष में हैं। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा, ‘हमें सबूत के जरिये ऐसा करना होगा और इसका निर्देश प्रतिरोधक विज्ञान की समझ के जरिये मिलेगा। ज्यादा जोखिम वाले लोगों के बीच या बुजुर्ग लोगों में संक्रमण की चपेट में आने का ज्यादा जोखिम हो सकता है और ऐसे लोगों को ही बूस्टर खुराक की आवश्यकता हो सकती है।’ इन्साकॉग के वैज्ञानिक अनुराग अग्रवाल ने हाल ही में एक ट्वीट में कहा था कि बूस्टर शॉट से मदद मिलती है। उन्होंने 11 दिसंबर को ट्वीट किया, ‘निष्क्रिय वायरस टीके पाने वाले ज्यादा जोखिम वाले लोगों को पहले प्राथमिकता दी जा सकती है।’
अस्पतालों और महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों ने भी केंद्र को पत्र लिखकर स्वास्थ्यकर्मियों के लिए बूस्टर खुराक की अनुमति देने का आग्रह किया था जिन्हें साल की शुरुआत में टीका लगाया गया था। केंद्र ने भी खुद टीकाकरण से जुड़ी राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह को बताया है कि टीकों की वजह से प्रतिरोधक क्षमता एक साल तक रहती है। हालांकि इसमें मेमरी सेल मसलन टी सेल्स और बी सेल्स के जरिये लंबी अवधि की प्रतिरोधक क्षमता पर गौर नहीं किया जाता है। लेकिन इस प्रतिरोधक क्षमता को मापना ज्यादा खर्चीला हो सकता है और इसमें अधिक समय लग सकता है। बूस्टर से जुड़े अध्ययन की शुरुआत संयुक्त रूप से आईसीएमआर और नैशनल इंस्टीट्यूट फॉर एपिडेमियोलॉजी करेगी।
बीबीसी की रिपोर्ट में ब्रिटेन के एक वैज्ञानिक का हवाला देते हुए कहा गया है कि कोविड टीके की दो खुराक किसी व्यक्ति को ओमीक्रोन स्वरूप से बचाने के लिए पर्याप्त नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘तीसरी बूस्टर खुराक 75 फीसदी लोगों को कोई कोविड लक्षण होने से रोकती है।’ भारत में विषय विशेषज्ञ समिति सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के आवेदन का परीक्षण कर रही है ताकि कोविशील्ड को बूस्टर खुराक के तौर पर अनुमति मिल जाए और इसने पुणे की टीका निर्माता कंपनी से अधिक डेटा मांगा है। भारतीय वैज्ञानिक अन्य देशों द्वारा बूस्टर खुराक के पक्ष में लिए गए फैसलों पर क्या राय रखते हैं? वैज्ञानिकों का कहना है कि डेल्टा लहर ने पश्चिमी देशों और उनके टीकाकरण अभियान को कई महीने तक प्रभावित किया जबकि भारत में जब दूसरी लहर आई तब टीकाकरण अभी शुरू ही हुआ था।
इसके अलावा, कई लोगों को लगता है कि मौजूदा टीका कोरोनावायरस के चिंताजनक स्वरूप से बचाव में ज्यादा कारगर नहीं होगा। श्रीकुमार कहते हैं, ‘समान टीके से एक तरह की ऐंटीबॉडी ही मिल पा रही है जिसकी वजह से इन स्वरूपों पर असर नहीं होता है। आप ऐंटीबॉडी नहीं बदल रहे हैं। आप 10 बूस्टर दे सकते हैं लेकिन इससे समस्या दूर नहीं होगी। तीसरी खुराक के लिए एक सीमित क्लीनिकल परीक्षण होना चाहिए। तीसरी लहर को लेकर कोई आपात स्थिति नहीं है कि हम बूस्टर खुराक अपनाने के लिए हड़बड़ी में हैं।’ टीका दोबारा संक्रमण से नहीं बचा सकता है लेकिन इससे गंभीर बीमारी से बचाव हो सकता है।
