उच्चतम न्यायालय के तीन सदस्यीय पीठ ने सोमवार को फैसला दिया कि पिता की संपत्ति पर बेटियों का जन्म से ही अधिकार है और इस मामले में उन्हें बेटों के समान माना जाए। यहां इस बात की पड़ताल की जा रही है कि इस आदेश के हिंदू अविभाजित परिवार ढांचे के लिए क्या मायने हैं और इसका विशेष रूप से पारिवारिक उद्यमों की उत्तराधिकार योजना पर क्या असर पड़ेगा।
मामला कैसे शुरू हुआ?
मिताक्षरा कानून पर आधारित हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 बेटियों को जन्म से पिता की संपत्ति पर हक का अधिकार नहीं देता है। हालांकि इस कानून में 2005 में संशोधन किया गया और पिता की संपत्ति पर बेटों और बेटियों को समान अधिकार दिया गया। वर्ष 2015 में शीर्ष अदालत ने फैसला दिया कि केवल उन्हीं बेटियों को उत्तराधिकार अधिकार मिलेंगे, जिनके पिता कानून में संशोधन की तारीख तक जीवित थे। इस वजह से बहुत से मामले पैदा हुए। सर्वोच्च न्यायालय के एक अन्य पीठ ने 2018 में इस आदेश से ठीक उलट फैसला दिया और उन बेटियों को भी उत्तराधिकार अधिकार दिया, जिनके पिता की कानून में संशोधन से पहले मौत हो चुकी थी। इस मुद्दे पर देश भर में विभिन्न उच्च न्यायालय अलग-अलग फैसले दे चुके हैं।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि शीर्ष अदालत के ताजा फैसले से यह मामला सुलझ गया है। इस फैसले में साफ किया गया है कि बेटियों को पिता की संपत्ति पर हक जन्म से मिलता है। पिता की संपत्ति में बेटियों को उत्तराधिकार का अधिकार देने में पिता की मृत्यु की तारीख अप्रासंगिक है।
आदेश का हिंदू अविभाजित परिवारों पर क्या असर पड़ेगा?
विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा कोई सार्वजनिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, जो यह दर्शाता है कि आदेश से कितने हिंदू अविभाजित परिवार प्रभावित हुए हैं। हालांकि वे कहते हैं कि कुछ पुराने पारिवारिक उद्यम अब भी परिवार की संपत्ति को बनाए रखने और प्रबंधित करने के लिए हिंदू अविभाजित परिवार ढांचे का सहारा लेते हैं। मुंबई की एक विधि कंपनी एसएनजी ऐंड पार्टनर्स में प्रबंध साझेदार राजेश एन गुप्ता ने कहा कि हालांकि पिछले कुछ वर्षों के दौरान तेजी से हिंदू अविभाजित परिवारों का बंटवारा हुआ है। लेकिन फिर भी हिंदू अविभाजित परिवारों के पास कारोबार सहित बड़ी तादाद में परिसंपत्तियां हैं।
गुप्ता ने कहा कि ऐसी परिसंपत्तियों पर फैसले का बीती तारीख से असर होगा। उद्यमों को गहरी जांच-पड़ताल और सोच-समझकर योजना बनानी होगी। विशेष रूप से उन मामलों में, जहां बेटियां अपनी सहमति के बिना बंटवारे को चुनौती दे सकती हैं। विधि कंपनी सिरिल अरमचंद मंगलदास में पार्टनर ऋषभ श्रॉफ ने कहा, ‘पिछले दशक के आसपास से बहुत से परिवार हिंदू अविभाजित परिवारों को बांट रहे हैं। अब इस नए बदलाव से और परिवारों को ऐसा करना पड़ेगा।’ उन्होंने कहा, ‘इस फैसले में उन परिवारों को कुछ राहत दी गई है, जिनमें अभी हिंदू अविभाजित परिवार ढांचा है। इसमें यह साफ किया गया है कि पिता की संपत्ति पर हक के लिए कैसे अपनी उत्तराधिकार योजना बनाएं।’
यह आदेश कारोबारी परिवारों को अपनी निजी और कारोबारी संपत्ति की उत्तराधिकार योजना बनाने में कैसे प्रभावित करेगा?
विशेषज्ञों का कहना है कि हालांकि यह अहम फैसला है, जिससे भ्रम दूर करने में मदद मिलेगी। लेकिन व्यवहार में इसका इस्तेमाल सीमित है। श्रॉफ ने कहा, ‘हकीकत में मूल्यवान पारिवारिक कारोबारों में स्वामित्व सहित ज्यादातर निजी संपत्ति या तो परिवार के मुखिया/प्रवर्तक के व्यक्तिगत नाम पर होती है या निजी न्यासों या होल्डिंग कंपनियों/एलएलपी में होती है।’ उन्होंने कहा कि अधिकतर कारोबारी परिवार नए अविभाजित हिंदू परिवार ढांचे नहीं बना रहे हैं और ज्यादातर मौजूदा अविभाजित परिवारों को बांटा जा रहा है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि हिंदू उत्तराधिकार कानून में जटिलता लगातार बनी हुई है। इसके नतीजतन ज्यादातर कारोबारी परिवार हिंदू विभाजित परिवार के ढांचे से बच रहे हैं।
महिलाओं के उत्तराधिकार अधिकारों के लिए क्या मायने हैं?
विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले से महिलाओं के उत्तराधिकार अधिकारों का मुद्दा सुर्खियों में आ गया है, जिन पर अमूमन ध्यान नहीं दिया जाता है।