क्रिप्टोकरेंसी जैसे नए उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में प्रतिबंध लगाने और प्रतिबंध न लगाने की अनिश्चितता के बीच क्रिप्टोकरेंसी पर प्रभावी प्रतिबंध लगाना संभव नहीं है। ब्लॉकचेन स्टार्टअप ईपीएनएस (एथेरियम पुश नोटिफिकेशन सर्विस) के सह-संस्थापक हर्ष रजत ने कहा, ‘यह टॉरेंट के माध्यम से फाइल साझा करने पर प्रतिबंध लगाने का उम्मीद करने की तरह है। दुनिया भर की सरकारों ने पिछले 20 साल से ऐसा करने की कोशिश की है लेकिन पीयर-टू-पीयर नेटवर्क को रोकना बहुत मुश्किल है।’
वर्तमान में, क्रिप्टो पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों के दो प्रमुख उदाहरण हैं और सबूतों से यह अंदाजा मिलता है कि दोनों सफल नहीं हुए हैं। सबसे पहले, नाइजीरिया के सेंट्रल बैंक ने फरवरी में स्थानीय बैंकों को क्रिप्टोकरेंसी के साथ काम करने से रोक दिया और ‘गंभीर नियामकीय प्रतिबंधों’ और कंपनियों तथा उपयोगकर्ताओं के खातों पर रोक लगाने की चेतावनी भी दी। लेकिन अक्टूबर में रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रतिबंध के बाद देश में क्रिप्टो को अपनाने की रफ्तार में वृद्धि हुई ।
शोध कंपनी चेनालिसिस के मुताबिक मार्च में सेंट्रल बैंक के प्रतिबंध के ठीक बाद नाइजीरिया से भेजी गई क्रिप्टोकरेंसी का डॉलर मूल्य पिछले महीने के मुकाबले 17 फीसदी बढ़कर 13.2 करोड़ डॉलर हो गया। पिछले साल जून महीने की तुलना में इस साल जून में लेनदेन की दर 25 फीसदी अधिक थी।
संयोग की बात यह है कि ऐसा ही प्रतिबंध भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 2018 में भारतीय बैंकों पर लगाया था जिसे पिछले साल उच्चतम न्यायालय ने पलट दिया। एक तकनीकी नीति सलाहकार पॉलिसी 4.0 की संस्थापक तन्वी रत्ना का कहना है, ‘इसके बाद क्रिप्टो निवेशकों ने पीयर-टू-पीयर नेटवर्क और भारतीय रुपये का इस्तेमाल कर लेनदेन को अंजाम दिया जो अन्य भुगतान मंचों पर बदल गया।’
विशेषज्ञों के अनुसार अब नाइजीरिया में भी ऐसा ही हो रहा है। इस साल मई में चीन ने पहले देश में क्रिप्टो माइनिंग परिचालन पर सख्ती बरती और फिर इसके बाद सितंबर में इसके कारोबार समेत क्रिप्टो से जुड़ी सभी गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि, विकेंद्रीकृत वित्त (डीएफआई) मंचों पर गतिविधि बढ़ी है जो ब्लॉकचेन पर काम करती है और जिसका इस्तेमाल बैंकों या मानक क्रिप्टो एक्सचेंजों जैसे किसी भी बिचौलियों के बिना क्रिप्टो में कारोबार करने के लिए किया जा सकता है। चेनालिसिस के आंकड़ों के मुताबिक, जून 2021 तक 12 महीनों में चीन में 256 अरब डॉलर की क्रिप्टो गतिविधि का 49 प्रतिशत हिस्सा पहले से ही डीएफआई मंचों के माध्यम से अंजाम दिया जा रहा था।
यूजर साइन-अप इन मंचों पूरी तरह से गुमनाम हैं और इसमें नाम, ईमेल आईडी या लोकेशन जैसी कोई पहचान नहीं है। भारत में भी इससे जुड़ा जोखिम है। भारत में क्रिप्टो एक्सचेंज के एक संस्थापक नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, ‘भारत सरकार को यह समझना चाहिए कि भारत में शीर्ष क्रिप्टो एक्सचेंज केवाईसी (नो योर कस्टमर) का पालन कर रहे हैं जिसका मतलब है कि पूरे लेन-देन पर निगाहें हैं। अगर देश में लाखों क्रिप्टो उपयोगकर्ता डीएफ आई मंचों को अपनाते हैं, जिनमें कोई केवाईसी बाधाएं नहीं हैं तो क्या यह अधिक खतरनाक नहीं होगा?’
पॉलिसी 4.0 की रिपोर्ट के मुताबिक कई भारतीय डीएफ आई मंच पर मौजूद हैं और इस मंच पर अनुमानत: भारत से करीब 1.25 अरब डॉलर क्रिप्टो का लेन-देन हुआ है और नवंबर में देश के करीब 25 लाख उपयोगकर्ता डीएफ आई की वेबसाइट पर गए हैं।
इसको लेकर सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि क्वाइन स्विच कुबेर, वजीरएक्स या क्वाइन डीसीएक्स जैसे क्रिप्टो एक्सचेंज कंपनियों के सर्वर पर आधारित हैं जबकि विकेंद्रीकृत मंच का नियंत्रण एक सर्वर या समूह सर्वर से नियंत्रित नहीं होता है।
