facebookmetapixel
सेबी ने IPO नियमों में ढील दी, स्टार्टअप फाउंडर्स को ESOPs रखने की मिली मंजूरीNepal GenZ protests: नेपाल में क्यों भड़का प्रोटेस्ट? जानिए पूरा मामलाPhonePe का नया धमाका! अब Mutual Funds पर मिलेगा 10 मिनट में ₹2 करोड़ तक का लोनभारतीय परिवारों का तिमाही खर्च 2025 में 33% बढ़कर 56,000 रुपये हुआNepal GenZ protests: प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के बाद राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने भी दिया इस्तीफापीएम मोदी ने हिमाचल के लिए ₹1,500 करोड़ के राहत पैकेज का ऐलान किया, मृतकों के परिजनों को ₹2 लाख की मददCredit risk funds: क्रेडिट रिस्क फंड्स में हाई रिटर्न के पीछे की क्या है हकीकत? जानिए किसे करना चाहिए निवेशITR Filing2025: देर से ITR फाइल करना पड़ सकता है महंगा, जानें कितनी बढ़ सकती है टैक्स देनदारीPower Stock में बन सकता है 33% तक मुनाफा, कंपनियों के ग्रोथ प्लान पर ब्रोकरेज की नजरेंNepal GenZ protests: पीएम ओली का इस्तीफा, एयर इंडिया-इंडिगो ने उड़ानें रद्द कीं; भारतीयों को नेपाल न जाने की सलाह

पिछड़े वर्ग में डिजिटल खाई दूर करती ब्रिजआईटी

Last Updated- December 14, 2022 | 9:05 PM IST

कोरोनावायरस महामारी की वजह से जब लॉकडाउन लगाया गया तब राजस्थान के भरतपुर जिले के एक गांव एकता में लक्ष्मी न केवल अपने गांव बल्कि आसपास के कई गांवों के लोगों को डिजिटल सेवाएं दे रही थीं। वह आर्थिक रूप से पिछड़े और निरक्षर लोगों को सरकार की विभिन्न योजनाओं प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, किसान सम्मान निधि, वृद्धावस्था पेंशन और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) के तहत मिलने वाले पैसे दिलाने में मददगार साबित हो रही थीं। उनके जैसे कुछ और डिजिटल उद्यमियों ने लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण उद्यमियों ने कई बैंकों के साथ जुड़कर गांव में लोगों को बैंकिंग सेेवाएं भी देनी शुरू कर दीं। इन उद्यमियों में एक सामान्य बात यह है कि इन्होंने कुछ साल पहले तक कंप्यूटर कभी नहीं चलाया था और इनका ताल्लुक अति पिछड़े वर्ग से हैं।
सामाजिक और आर्थिक तौर पर हाशिये पर जी रहे, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लोगों को डिजिटल दुनिया से जोड़कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के सपने को टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) कुछ गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ)की मदद से साकार कर रही है जिसमें नैशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित ऐंड आदिवासी ऑर्गनाइजेशंस (नैक्डोर) प्रमुख है। टीसीएस इसके लिए आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग देती है जबकि नैक्डॉर का पूरा काम जमीनी स्तर पर पिछड़े लोगों को प्रशिक्षण देकर उन्हें उद्यमी बनाने का होता है। नैक्डॉर ही अध्ययन और प्रशिक्षण से जुड़ी सामग्री भी तैयार करता है।
कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के तहत टीसीएस ने इस ब्रिजआईटी योजना की शुरुआत 2014 में गरीब एवं बेरोजगार युवाओं के जरिये की जिसका विस्तार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, हरियाणा और राजस्थान में किया जा रहा है और अति पिछड़े वर्ग के बेरोजगार पुरुषों और महिलाओं को डिजिटल उद्यमी बनाया जा रहा है।
टीसीएस के सीएसआर प्रमुख जोसेफ  सुनील नालापल्ली कहते हैं, ‘देश के उत्तर, मध्य और पूर्वोत्तर हिस्से के 10 राज्यों और 30 जिले में उद्यमियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस वक्त कुल 60 क्लस्टर में 466 ग्रामीण डिजिटल उद्यमी काम कर रहे हैं। इनमें से 45 फीसदी उद्यमी महिलाएं हैं जबकि 76 फीसदी एससी एसटी वर्ग से ताल्लुक रखते हैं।’
नैक्डॉर के प्रमुख अशोक भारती कहते हैं, ‘इन उद्यमियों की सामूहिक आमदनी जो साल 2014 में मात्र 20 हजार रुपये थी, वह 2019 में बढ़कर 68 लाख रुपये सालाना से अधिक हो गई जबकि इसी दौरान इनकी व्यक्तिगत औसत आमदनी 4000 रुपये से दस गुना बढ़कर 40,500 रुपये से अधिक हो गई। सकारात्मक बात यह है कि ये उद्यमी खुद भी बहुत ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं और इनके परिवार में यह पहली पीढ़ी है जिसने पढ़ाई करने के साथ-साथ उद्यमी बनने की कोशिश की है।’
ब्रिजआईटी की लाभार्थियों में से एक लक्ष्मी कहती हैं, ‘मैं जब इस योजना से जुड़ी तब मुझे लैपटॉप और बिजनेस किट दिया गया जिसकी किस्त मुझे शुरुआत में देनी पड़ी। अब मैं फॉर्म भरवाने, फोटो स्टेट के अलावा कई डिजिटल सेवाएं देकर 30,000-40,000 रुपये कमा लेती हूं।’
राजस्थान के ही भरतपुर में रहने वाले कमल सिंह की डिजिटल प्रिंटिंग की एक दुकान है और वे लोगों का आधार कार्ड, राशन कार्ड, पैन कार्ड आदि बनाने जैसी सेवाएं भी देते हैं। उन्होंने बताया, ‘संस्था ने जो भी बिजनेस किट दिया उसके लिए उन्हें निरक्षर लोगों को पढ़ाने के साथ-साथ स्कूलों में भी पढ़ाने की जिम्मेदारी दी जाती थी। इसके अलावा मैं प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (पीएमजी-दिशा) के लिए भी काम करता हूं।’ नालापल्ली कहते हैं कि इन उद्यमियों ने पिछले पांच सालों में एक हजार से अधिक सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों को नि:शुल्क कंप्यूटर शिक्षा देने के साथ 9 हजार से अधिक निरक्षर प्रौढ़ महिला-पुरुषों को नि:शुल्क कंप्यूटर के जरिये साक्षर बनाया है।
केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए पीएमजी दिशा के देश में 3,21,902 प्रशिक्षण केंद्र हैं और इसके पंजीकृत उम्मीदवारों की तादाद 3,76,17,998 है। लेकिन ब्रिज आईटी अभियान डिजिटल प्रशिक्षण के जरिये उद्यमी बनाने में भी मददगार साबित हो रहा है और इसमें प्रशिक्षण पा चुके लोगों को पीएमजी दिशा में भी रोजगार मिल जाता है।

क्या है मॉडल
टीसीएस उद्यमियों को लैपटॉप देने के साथ ही दो साल तक भत्ता भी देती है और प्रशिक्षण देकर उद्यम लगाने में भी मदद देती है। इसके बाद तीन सालों तक नैक्डोर ही उनकी जरूरत के हिसाब से समय-समय पर प्रशिक्षण देकर उनके उद्यम के संचालन में मदद देता है। भारती कहते हैं कि इस योजना में 75 फीसदी उम्मीदवारों को एससी-एसटी वर्ग से ही लिया जाता है जबकि 25 फीसदी उम्मीदवार अन्य पिछड़ा वर्ग, सवर्ण या अल्पसंख्यक वर्ग के होते हैं लेकिन एक शर्त इनके साथ भी बनी होती है कि ये आर्थिक रूप से पिछड़े होंगे।  भारती कहते हैं, ‘पहले हम यह देखते थे कि उम्मीदवार को कंप्यूटर आता है या नहीं लेकिन बाद में ऐसा लगा कि इस शर्त से अति पिछड़े लोग इस योजना के लाभ से वंचित हो सकते हैं। इसके अलावा इस योजना के लिए जनगणना के आंकड़ों के आधार पर जिन गांवों में 30-35 फीसदी एससी-एसटी आबादी होती है हम उन्हें ही प्राथमिकता देते हैं क्योंकि इसका मकसद यह भी है कि प्रशिक्षण के बाद जब ये लोग अपना उद्यम शुरू करें तब इन्हें अपने ही तबके के ग्राहक भी मिल जाएं।’ सात उद्यमियों के कामकाज की निगरानी की जिम्मेदारी एक प्रमुख उद्यमी को दी जाती है जिसे क्लस्टर लीड कहते हैं और वह इस संस्था के लिए भी एक तरह से उद्यमी ही होते हैं। उन्हें यह सुनिश्चित करना होता है कि ये सात उद्यमी सफ लतापूर्वक अपना काम करें। ऐसे चार क्लस्टर एक मॉड्यूल बनाते हैं और ऐसे मॉड्यूल के देखरेख की जिम्मेदारी भी एक व्यक्ति पर होती है जिसे मॉड्यूल लीड कहते हैं और इस एक संरचना से 33 लोग जुड़े होते हैं।

First Published - November 20, 2020 | 12:21 AM IST

संबंधित पोस्ट