गैर-बैंकिंग वित्त कंपनी (एनबीएफसी) क्षेत्र वर्ष 2018 के आईएलऐंडएफएस संकट के बाद से सवालों के घेरे में बना हुआ है और इस उद्योग को हाल के वर्षों में अपनी कुछ बाजार भागीदारी बैंकों के हाथों गवानी पड़ी है। हालांकि उद्योग के मुख्य कार्याधिकारी भारत में एनबीएफसी की दीर्घावधि संभावनाओं को लेकर विश्वस्त बने हुए हैं। यह उद्योग अपनी पहुंच बढ़ाने और बैलेंस शीट मजबूत बनाने में सफल हो रहा है।
देश के सबसे बड़े गैर-बैंकिंग ऋणदाता हाउसिंग डेवलपवमेंट ऐंड फानैंस कॉरपोरेशन (एचडीएफसी) के वाइस चेयरमैन एवं मुख्य कार्याधिकारी केकी मिस्त्री ने कहा, ‘हाल के वर्षों में, एनबीएफसी को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा, लेकिन मजबूत नियामकीय व्यवस्था की वजह से उन्होंने हमेशा मजबूती के साथ वापसी की। 2018 में, आईएलऐंडएफएस को छोड़कर कोई बड़ी एनबीएफसी बंद नहीं हुई। इस उद्योग ने अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और यह ऐसे कई सेगमेंटों में उधारी का प्रमुख स्रोत है, जहां बैंक उधारी देना नहीं चाहते और एनबीएफसी वहां बेहद कुशलता के साथ अपनी सेवा प्रदान करते हैं। मिस्त्री बुधवार को मुंबई में बिजनेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई इनसाइट समिट 2022 में एनबीएफसी पर परिचर्चा में शामिल हुए थे।
‘इज बीकमिंग ए बैंक स्टिल ए ड्रीम फॉर एनबीएफसी’ शीर्षक वाली एनबीएफसी परिचर्चा में अन्य वक्ताओं में श्रीराम फाइनैंस के कार्यकारी वाइस चेयरमैन उमेश जी रेवंकर, महिंद्रा फाइनैंस में वाइस चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक रमेश अय्यर, बिड़ला फाइनैंस के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी राकेश सिंह और टाटा कैपिटल के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी राजीव सभरवाल
शामिल थे।
2018 के आईएलऐंडएफएस संकट और उसकी वजह से कुछ एनबीएफसी को पैदा हुई नकदी किल्लत से उद्योग में बड़ी कंपनियों के लिए आरबीआई से सुरक्षित बैंकिंग लाइसेंस हासिल करने की जरूरत बढ़ी। हालांकि उद्योग के अधिकारियों ने एनबीएफसी द्वारा उधारी की खास प्रवत्ति को देखते हुए बैंकिंग लाइसेंस की जरूरत को नजरअंदाज कर दिया।
श्रीराम फाइनैंस के कार्यकारी उपाध्यक्ष उमेश जी रेवणकर ने कहा, ‘ज्यादातर एनबीएफसी खास परिसपंत्ति वर्ग में वित्तीय सुविधा मुहैया कराती हैं, चाहे वह आवासीय, वाणिज्यिक वाहन या स्वर्ण ऋण हो। चूंकि ऐसी एनबीएफसी इन क्षेत्रों की वृद्धि एवं विकास में खास योगदान देती हैं, और इस तरह की विशेषज्ञता वाणिज्यिक बैंकिंग के तहत संभव नहीं है।’ हालांकि इस उद्योग के अधिकारियों का मानना है कि देयता के मामले में बैंकों के मुकाबले एनबीएफसी में कुछ कमजोरियां हैं और वाणिज्यिक बैंकों की तरह जमाओं तक उनकी पहुंच नहीं होती है, लेकिन यह गैर-बैंकिंग वित्त क्षेत्र के विकास की राह में कोई बड़ी बाधा नहीं है।
महिंद्रा फाइनैंस के वाइस चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक रमेश अय्यर ने कहा, ‘एनबीएफसी ग्राहकों के लिए हैं और इनका रिटेल मॉडल अलग है, जिससे ग्राहक की पहुंच को समझना बेहद महत्वपूर्ण हो गया है। यही वजह है कि एनबीएफसी ने हरेक संकट का हमेशा मजबूती से सामना किया है। यदि हम सिर्फ इस वजह से बैंक बनना चाहते हैं कि हमारा भविष्य नहीं है, तो यह सोचना गलत होगा।’ अन्य मुख्य कार्याधिकारियों का मानना है कि एनबीएफसी ग्राहकों को आसान पहुंच उपलब्ध कराती हैं।
आदित्य बिड़ला फाइनैंस के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी राकेश सिंह ने कहा, ‘हम देश के हरेक कोने तक ऋण मुहैया कराने के लिए प्रयासरत हैं और कई बार उन ग्राहकों को संस्थागत ऋण मुहैया कराने के लिए बैंकों के साथ भी मिलकर काम करते हैं जिनकी बैंकों तक पहुंच नहीं होती। हमारे लिए आगे बढ़ने की व्यापक संभावना है और एनबीएफसी पूरे बैंक ऋण के एक-चौथाई तक आसानी से पहुंच बना सकते हैं।’
उद्योग के अधिकारियों ने उद्योग में वित्तीय दबाव के विचार को भी खारिज किया। टाटा कैपिटल के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी राजीव सभरवाल ने कहा, ‘हाल के वर्षों में हमारे उद्योग की राह में कई तरह के वित्तीय संकट आए और ऐसे हालात में भी कई मामलों में एनबीएफसी के मुकाबले बैंकों पर ज्यादा दबाव देखा गया।’