कर्नाटक के मांड्या जिले के पांडवपुरा तालुक में एंगलागुप्पे छत्रा भले ही एक छोटा सा गांव है लेकिन उसे देश को अब तक एक मुख्य न्यायाधीश देने का गौरव प्राप्त है।
सन 1989 में इस गांव के रहने वाले न्यायमूर्ति ईएस वेंकटरमैया छह माह के लिए देश के मुख्य न्यायाधीश बने। अगर सब कुछ ठीक रहा तो उनकी बेटी बेंगलूर वेंकटरमैया नागरत्ना (60 वर्ष) 2027 में देश की मुख्य न्यायाधीश बन सकती हैं। यदि ऐसा हुआ तो वह इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला होंगी। भले ही वह मात्र 36 दिन के लिए इस पद पर रहें लेकिन पहली बार देश में एक पिता और पुत्री इस पद पर पहुंचेंगे।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना पिछले दिनों नोटबंदी से जुड़े निर्णय में असहमति जताकर सुर्खियों में आईं। पांच न्यायाधीशों वाले पीठ में में वह इकलौती थीं जो फैसले से असहमत थीं। उन्होंने कहा कि भले ही नोटबंदी लोगों के हित में थी लेकिन प्रक्रियागत आधार पर यह अवैधानिक कदम था।
उन्होंने इसके बाद एक पीठ के सदस्य के रूप में जन प्रतिनिधियों और सार्वजनिक पदाधिकारियों की अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर भी एक फैसला दिया। उन्होंने अपने आदेश में कहा कि घृणा फैलाने वाले भाषण भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्यों को क्षति पहुंचाते हैं और समाज में विषमता पैदा करते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि जन प्रतिनिधि और सार्वजनिक पदों पर आसीन लोगों को और अधिक जवाबदेह होना चाहिए तथा अपने भाषण में संयम का परिचय देना चाहिए क्योंकि वे अन्य नागरिकों के सामने उदाहरण पेश कर रहे होते हैं।
नागरत्ना के करियर और उनके निर्णयों के गवाह रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कहते हैं कि उनके कट्टर न होने का अनुमान लगाने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। वे कहते हैं कि वे निस्संदेह नियमों की रक्षा करने वाली हैं लेकिन वह रुढि़वादी भी हैं।
एक वरिष्ठ अधिवक्ता जो अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते, के मुताबिक अगर नोटबंदी से जुड़े उनके निर्णय को ही देखें तो उन्हें इस नीति के इरादे पर शक नहीं लेकिन वह प्रक्रिया में कुछ समस्या पाती हैं।
वह कहते हैं कि इस बात को हिजाब मामले में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया के निर्णय के सामने रखकर देखें जहां धूलिया ने कहा था कि अगर कोई लड़की हिजाब पहनना चाहती है और अपनी कक्षा के भीतर भी पहनना चाहती है तो उसे रोका नहीं जा सकता, बशर्ते कि वह अपनी मर्जी से इसे पहन रही हो। ऐसा इसलिए कि शायद उसका रुढि़वादी परिवार केवल इसी शर्त पर उसे घर से बाहर जाने दे रहा हो। अधिवक्ता कहते हैं कि धूलिया की दलील शिक्षा के अधिकार और स्वतंत्रता के नजरिये से है और इस मोर्चे पर नागरत्ना पीछे रह जाती हैं।
नागरत्ना के आदेश में कहा गया है कि नोटबंदी को कानूनी तरीके से अंजाम देना था, न कि गजट अधिसूचना के जरिये क्योंकि संसद को ऐसे अहम मामलों में दरकिनार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि नोटबंदी की कवायद अवैधानिक थी।
आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत केंद्र की शक्तियों को लेकर भी उनका नजरिया अन्य न्यायाधीशों से अलग रहा। उन्होंने कहा कि जब नोटबंदी का प्रस्ताव केंद्र सरकार की ओर से आता है तो यह आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के अधीन नहीं होता। इसे कानून के जरिये अंजाम दिया जाना चाहिए और अगर गोपनीयता की जरूरत हो तो इसे अध्यादेश के जरिये पूरा करना चाहिए।
अधिवक्तागण कहते हैं कि विधि के शासन में नागरत्ना की आस्था पर प्रश्न नहीं किया जा सकता है। हकीकत में इसी बात ने उन्हें दिल्ली से दूर जाकर अधिवक्ता के रूप में काम करने को प्रेरित किया। उनके पिता दिल्ली में थे और वह दिल्ली के जीसस ऐंड मैरी कॉलेज से पढ़ीं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से लॉ किया।
उसके बाद वह बेंगलूरु चली गईं और वहां अधिवक्ता के रूप में काम करने लगीं। सन 2008 में वह अतिरिक्त न्यायाधीश बनीं और दो वर्ष बाद कर्नाटक उच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनीं। उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण ने नामित किया और उन्होंने 31 अगस्त, 2021 को पद संभाला।
अपने विदाई भाषण में शहर बदलने के अपने निर्णय के बारे में उन्होंने कहा, ‘दिल्ली से बेंगलूरु जाकर कर्नाटक बार काउंसिल में पंजीयन कराना मेरे जीवन के बेहतरीन निर्णयों में से एक था। यह न्यायपालिका की उच्च परंपरा के अनुरूप था क्योंकि मैं अपने पिता न्यायमूर्ति ई एस वेंकटरमैया को मिले सरकारी आवास में नहीं रहना चाहती थी। वह सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे।’
उनकी ‘संतुलन’ की समझ उस समय सामने आई जब अपने भाषण में उन्होंने कहा कि ‘देश की विधि व्यवस्था बीते तीन दशकों में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के विकास से निपटने के लिए तैयार हो रही है जबकि इसके साथ ही उन्होंने देश के पूर्ववर्ती नेताओं द्वारा मूल अधिकारों के साथ पढ़े जाने वाले राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों में दर्शाए गए लक्ष्यों को भी दोहराया और संविधान द्वारा स्थापित लोकतांत्रिक संस्थानों की स्वतंत्रता की भी बात की।
कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश के रूप में उनके कुछ आदेश एकदम अलहदा हैं। उदाहरण के लिए विवाह के रिश्ते से बाहर पैदा हुए एक बच्चे के अनुकंपा नियुक्ति के मामले की सुनवाई करते हुए उन्होंने कहा था, ‘अवैध मातापिता हो सकते हैं लेकिन संतान अवैध नहीं हो सकती।’
उन्होंने कहा था कि दुनिया में कोई भी बच्चा बिना माता-पिता के पैदा नहीं होता। बच्चे की उसके जन्म में कोई भूमिका नहीं होती। नागरत्ना के साथ काम कर चुके पी आर रामशेष कहते हैं कि उनमें उत्कृष्ट मानवीय गुण हैं और वह कानून की हिमायत करने वाली हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नागरत्ना के सामने कई विवादित मामले आएंगे। उनमें से एक है एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय यह निर्णय कर रहा है कि वर्तमान चुनावी बॉन्ड योजना राजनीतिक दलों को गुप्त कॉर्पोरेट फंडिंग की राह तो नहीं मुहैया करा रही है और क्या इसे फाइनैंस ऐक्ट के तहत गलत प्रमाणित किया गया। न्यायालय का निर्णय चुनावी चंदे की पारदर्शिता पर असर डालेगा।
एक अन्य मामला टीएमडी रफी बनाम आंध्र प्रदेश का है। इसमें आंध्र प्रदेश के मंदिर परिसरों में गैर हिंदू के पट्टे के अधिकार का निर्णय होना है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का पीठ आंध्र प्रदेश के एक कानूनी की संवैधानिकता तय करेगा जो गैर हिंदू वेंडरों को मल्लिकार्जुन मंदिर परिसर में संपत्ति पट्टे पर देने से रोकता है।
अदालत तय करेगी कि क्या यह कानून मनमाना, गैर हिंदुओं के प्रति भेदभावकारी है और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है?
आदेश चाहे जो भी हों और भले ही कार्यकाल कितना भी छोटा हो लेकिन बी वी नागरत्ना एक मुकाम जरूर हासिल करेंगी। यह बात कम महत्त्वपूर्ण नहीं है।