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पैकेज में है दम,लेकिन कहीं खुशी कहीं गम

Last Updated- December 05, 2022 | 4:27 PM IST

वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जब बजट में 60,000 करोड रुपये की कृषि कर्ज माफी की घोषणा की, तो इसे ऐतिहासिक करार दिया गया। इसके बाद तो ऐसा माना जाने लगा कि अब किसानों की ऋण संबंधी समस्याएं हल हो जाएगी। लेकिन जब बिजनेस स्टैंडर्ड के संवाददाता ने किसानों से इस ऋण माफी से हो रहे फायदे की पड़ताल की, तो कहीं खुशी, कहीं गम वाली स्थिति दिखी।
उड़ीसा के कुछ किसानों से जब बात की गई तो वे इस बात को लेकर खुश थे कि उनके 5000 का कर्ज माफ हो जाएगा। लेकिन जिन किसानों पर 77,000 रुपये का कर्ज है, वे इस बात से चिंतित हैं कि इस घोषणा के बाद उसके कितने रुपये बतौर कृषि कर्ज माफ होंगे।
जैसा कि इस घोषणा में यह स्पष्ट किया गया है कि वेसै सीमांत और छोटे किसानों के कृषि क र्ज माफ किए जाएंगे, जिनके पास मात्र 2 एकड़ जमीन है। इस वजह 2.5 से 4 एकड़ की जमीन वाले किसान काफी असंतुष्ट हैं। उनका कहना है कि वे भी कई जगहों से कर्र्ज ले चुके हैं और काफी दबाव में हैं, लेकिन इसके बावजूद सरकार को उनकी कोई परवाह नही है।
पंजाब के संगरूर जिले के कनोई गांव के हरविंदर सिंह चार भाई हैं और हरेक के पास मात्र 2 एकड़ जमीन है। लेकिन ये सारी जमीनें उनके पिता के नाम से ली गई थी, इसलिए इसे बतौर एक भूखंड के रुप में चिह्नित किया जाता है। इस लिहाज से उन्हें वह लाभ नही मिल पा रहा है, जो घोषणा के अनुसार मिलना चाहिए। इसके अलावा उसने एक साहूकार से 80,000 का कृषि कर्ज ले रखा है। लेकिन बेचारा उस दायरे में नही आता, इसलिए उसका कर्ज माफ नही हो सकता।
पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के मुताबिक राज्य के 10 लाख किसानों में 80 प्रतिशत ऐसे हैं, जो वित्त मंत्री की घोषणा के मुताबिक कर्ज माफी के दायरे से बाहर हैं। राज्य के किसानों की तरह वे भी अपने राज्य में इस ऐतिहासिक घोषणा से कोई खास अंतर महसूस नही कर रहे हैं। ये घोषणाएं इन किसानों के लिए महज सुनने-सुनाने तक सीमित रह गया है।
बिजनेस स्टैंडर्ड के संवाददाता ने संगरूर जिले की तीन गांवों के 25 किसानों से बात की और पाया कि इनमें केवल 4 किसानों को ही इस घोषणा से फायदा पहुंच रहा है।
छत्तीसगढ़ के कवारदाह जिले के धरमपुरी गांव की भी स्थिति कमोबेश यही है। यह गांव राजधानी रायपुर से 140 किलोमीटर दूर है। यहां भी जमीन ज्यादातर अलग-अलग न होकर एक ही खंड के रुप में है। इस वजह से जोत तो उनके पास 2 एकड़ के करीब ही होती है, लेकिन जमीन के अलग न होने के कारण उन्हें वह फायदा नही मिल पाएगा, जो इस घोषणा में प्रस्तावित है। इस गांव के उप-मुखिया रामू चंद्रवंशी ने कहा कि जब किसानों ने माफी की घोषणा सुनी, तो वे गदगद हो गए थे। लेकिन जैसे ही सरकार ने बड़े और छोटे किसानों के बीच लक्ष्मण रेखा का विभाजन किया, तो वे मायूस हो गए। रामू के पास 20 एकड़ जमीन है और उसने सहकारी बैंक से 45,000 रुपये कर्ज लिया है।
बिरकोनी गांव के भुवनेश्वर चंद्रवंशी के पास 35 एकड़ जमीन है और उसने सहकारी बैंक से 45,000 रुपये कर्ज लिया है। उनके मुताबिक अगर किसानों को भविष्य में इस तरह के फायदे उठाने हैं तो उसे अपनी जमीन को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटना होगा।
हरियाणा के किसानों की स्थिति इस लिहाज से बेहतर है।

First Published - March 5, 2008 | 8:42 PM IST

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