इस साल अगस्त में सिम्फनी गु्रप के संस्थापक रोमेश वाधवानी ने अपने पुराने इंस्टीटयूट भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई (आईआईटी-बी) को बायो-साइंस सेंटर के लिए 50 लाख डॉलर यानी लगभग 25 करोड़ रुपये का तोहफा दिया था।
उस समय आईआईटी संस्थानों में यह धारणा थी कि धीरे धीरे उनके पास भी इस तरह मिलने वाले दान से भारी भरकम कोष जमा हो जाएगा जैसा कि उनके जैसे अमेरिकी संस्थानों में होता है। लेकिन दो महीने से भी कम समय में ही वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण अब इन आईआईटी को लग रहा है कि इस तरह के दान में कमी आ सकती है।
आईआईटी खड़गपुर के उप कुलसचिव टी के घोषाल ने कहा, ‘जो भी दान आईआईटी के पूर्ववर्ती छात्रों या कंपनियों से मिलता है, उनका इस्तेमाल विशेष परियोजनाओं में किया जाता है। हर साल अक्टूबर से दिसंबर के बीच इस तरह की दानराशि संस्थानों को प्राप्त होती है।उन्होंने कहा कि हालांकि आर्थिक मंदी की वजह से मौजूदा परियोजनाओं पर तो असर नहीं पड़ेगा, लेकिन नई परियोजनाओं पर थोड़ा असर पड़ सकता है।’
आईआईटी कानपुर को हर साल 5 से 6 करोड़ रुपये की दान राशि प्राप्त होती है। लेकिन आर्थिक मंदी से इस साल इस राशि में कमी आने की संभावना है। आईआईटी कानपुर के सहायक कुलसचिव मोहम्मद शकील ने कहा, ‘इस साल अक्टूबर से दिसंबर के समय में विदेशों से आने वाले फंडों में 5 से 10 फीसदी की कमी देखी जा रही है।’
दान राशि में कमी की मुख्य वजह यह है कि ज्यादातर राशि अमेरिका से ही आती है और वहां आर्थिक मंदी बुरी तरह हावी है। विदेशों में रहने वाले 23000 आईआईटी छात्र में से 5000 छात्र आईआईटी कानपुर के हैं। इनमें ज्यादातर छात्र अमेरिका में ही रहते हैं।