बैंकों की गैर निष्पादित आस्तियों को घटाने और ऐसे मामलों के तेजी से निपटारे के लिए केन्द्र सरकार द्वारा गठित ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) बैंकरों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं।
बैंकरों की मानें तो डीआरटी भी सामान्य अदालतों की तरह ही काम कर रहे हैं जबकि इनसे तेजी की अपेक्षा की जाती है।उल्लेखनीय है कि डीआरटी का गठन बकायेदारों से परेशान बैंकों के लिए किया गया था लेकिन अब ऋण नहीं चुका पाने वाले कर्जदार ही राहत पाने के लिए डीआरटी का दरवाजा खटखटाने लगे हैं। बकायेदार वित्तीय परिसंपत्तियों के पुनर्गठन और प्रतिभूतिकरण और सरफेसी कानून के क्रियान्वयन से बचने के लिए डीआरटी में मामले को ले जाते हैं।
इस कानून के तहत बैंक बकायेदार को नोटिस देने के 60 दिनों के बाद बंधक प्रापर्टी की नीलामी कर सकते हैं।उत्तर प्रदेश में दो डीआरटी हैं। इनमें से एक लखनऊ में और दूसरा इलाहाबाद में है। लखनऊ डीआरटी के कार्यक्षेत्र में उत्तराखंड भी शामिल हैं। डीआरटी लखनऊ के सचिव और पंजीयक आर बी गुप्ते ने बताया कि लखनऊ न्यायाधिकरण में इस समय 650 से अधिक मामले लंबित पड़े हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र के प्रमुख बैंक के एक वरिष्ठ वसूली अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि डीआरटी डीआरटी के वसूल अधिकारियों की नियुक्ति डेपुटेशन पर की जाती है और इस कारण न्यायाधिकरण से उनके जुड़ाव का अभाव होता है। उन्होंने कहा कि अवधारण के तौर पर डीआरटी फास्ट ट्रैक कोर्ट (एफटीसी) हैं लेकिन उनके कामकाज की गति सामान्य अदालतों जितनी धीमी हैं।
अधिकारी ने कहा कि डीआरटी में सुनवाई की प्रक्रिया काफी लंबी होती है और कई बार तो मामले के निपटारे में महीनों और सालों का समय लग जाता है। उन्होंने कहा कि मामले के निपटारा होने तक डिफाल्टर को काफी समय मिल जाता है और इसकी कीमत बैंकों को एनपीए के तौर पर चुकानी पड़ती है। बैंकर्स ने और अधिक डीआरटी की स्थापना और नियमित वसूली अधिकारी की नियुक्ति करने की मांग की है ताकि मौजूदा स्थितियों से निपटा जा सके।
निजी क्षेत्र के एक अन्य बैंकर ने कहा कि हालांकि डीआरटी का मूल मकसद बैंकों के हितों की रक्षा करना है लेकिन सुनवाई की प्रक्रिया काफी धीमी है और इसका नुकसान बैंकों को उठाना पड़ता है। केन्द्र सरकार ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों के कर्ज वसूली के लिए संसद में कानून पारित कर इस न्यायाधिकरण की स्थापना की थी। बैंकों और वित्तीय संस्थानों के एनपीए को घटाने के उपाए सुझाने के लिए केन्द्र ने तीन समितियों का गठन किया था।
इस समितियों की सिफारिशों के आधार पर बैंक और वित्तीय संस्थानों के ऋणों की वसूली अध्याधेश, 1993 के तहत न्यायाधिकरण की स्थापना का रास्ता तैयार हुआ। बाद में इस विधेयक की जगह बैंक और वित्तीय संस्थानों के बकाया ऋण की वसूली कानून ने ले लिया। इस कानून के तहत एकल न्यायिक मंच के जरिए निलामी करने सहित सभी मामले का निपटारा करने का प्रावधान किया गया।
इस कानून से पहले याचिकाकर्ताओं को अलग-अलग अदालतों में मामले दर्ज कराने पड़ते थे। केन्द्र सरकार अभी तक कुल 29 डीआरटी और 5 ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना कर चुकी है। डीआरटी की अध्यक्षता एक पीठासीन अधिकारी करना है। इसके अलावा एक पंजीयक, एक सहायक पंजीयक और दो वसूली अधिकारी होते हैं।
यदि किसी बैंक या वित्तीय संस्थाना को बकायेदार से ऋण की वसूली करनी होती है तो वह उस व्यक्ति के खिलाफ न्यायाधिकरण में आवेदन करना है। उक्त कानून के प्रावधान 10 लाख रुपये के कम के ऋण पर लागू नहीं होते हैं।