भारत के पहले ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह का सपना गुरुवार की सुबह मूर्त रूप लेने जा रहा है। अदाणी समूह का विझिंजम इंटरनैशनल बंदरगाह परीक्षण के तौर पर मैर्स्क से अपना पहला कंटेनर वेसेल, एमवी सैन फर्नांडो की आगवानी करने को तैयार है।
विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के मुताबिक गेटवे कंटेनराइज्ड कॉर्गो के लिए विझिंजम की प्रतिस्पर्धा कोच्चि और तूतीकोरिन से होगी। वहीं कंटेनर ट्रांसशिपमेंट ट्रैफिक के लिए श्रीलंका में कोलंबो, ओमान में सलालाह और सिंगापुर जैसे अंतरराष्ट्रीय बंदरगाहों के साथ प्रतिस्पर्धा होगी।
पहले चरण के दौरान विझिंजम बंदरगाह की क्षमता 10 लाख 20 फुट इक्विवैलेंट यूनिट (टीईयू) हैंडल करने की होगी। बाद में इसमें 62 लाख टीईयू क्षमता और जुड़ेगी।
एमवी सैन फर्नांडो, चीन के शियामेन पोर्ट से आ रहा है। इसकी कुल क्षमता 8,000 से 9,000 टीईयू की है। यह करीब 2,000 कंटेनर अनलोड करेगा और विझिंजम में 400 अन्य कंटेनरों को रीअरेंज करेगा।
परियोजना लागतः 7,525 करोड़ रुपये
अब तक अदाणी समूह द्वारा किया गया निवेशः 4,500 करोड़ रुपये
फेज-2 और फेज-3 के लिए कंपनी द्वारा निर्धारित राशिः 9,500 करोड़ रुपये
परियोजना पूरी होने का संभावित वर्षः 2028
विझिंजम इंटरनैशनल बंदरगाह इंटरनैशनल शिपिंग चैनल से महज 11 नॉटिकल मील दूर है। वैश्विक माल ढुलाई की कुल आवाजाही की करीब 30 फीसदी ढुलाई इस अंतरराष्ट्रीय शिपिंग मार्ग से होती है। यह भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय गहरे पानी का ट्रांस शिपमेंट बंदरगाह होगा।
बंदरगाह का नैचुरल ड्राफ्ट 18 मीटर से अधिक है, जिसे 20 मीटर तक बढ़ाया जा सकता है। इसकी वजह से यह दुनिया के सबसे बड़े कंटेनर जहाजों को भी अपने यहां रखने में सक्षम है।
भारत के ट्रांसशिप्ड कॉर्गो के करीब 75 फीसदी का परिचालन कोलंबो, सिंगापुर, सलालाह (ओमान), जेबेल अली (दुबई), तानजुंग पेलेपास (मलेशिया) और क्लांग (मलेशिया) बंदरगाहों से होता है। ट्रांसशिपमेंट केंद्र चालू होने के बाद इनका परिचालन भारत से होगा।
इस बंदरगाह की वजह से सालाना करीब 2,500 करोड़ रुपये का आर्थिक लाभ होगा।