पर्यावरण का साथ नहीं होने व बारिश की मात्रा में कमी के बावजूद हरियाणा की खरीफ फसलों की पैदावार में बढोतरी दर्ज की गई।
वर्ष 2006 के मुकाबले वर्ष 2007 में खरीफ फसलों का उत्पादन लगभग 5 लाख टन की बढ़ोतरी देखी गई। वर्ष 2006 में यह उत्पादन जहां 44.96 लाख टन था वह बढ़कर 07 में 49.26 लाख टन हो गया। इस राज्य की खेती योग्य 82 फीसदी जमीन पर फसल उगाने का काम किया जाता है। माना जा रहा है कि बेहतर किस्म के संसधानों के इस्तेमाल के कारण पैदावार में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
राज्य सरकार ने अनुबंध खेती के लिए निवेशकों को मौका देने के लिए एपीएमसी कानून में कुछ संशोधन किया है। इस संशोधन से निजी लोगों को यहां अनुबंध के आधार पर खेती करने का मौका मिलेगा। इस संशोधन के बाद सबसे पहले स्कॉल ब्रिवेरिज ने हरियाणा के किसानों के साथ बारली की खेती करने की पहल की है। इस प्रकार के दूसरे कई प्रस्ताव भी पाइपलाइन में है।
हालांकि अभी राज्य सरकार ने इन निजी निवेशकों को अपने तरीके से मार्केटिंग करने का अधिकार नहीं दिया है। उन्हें बाद में इस प्रकार के अधिकारों को दिए जाने की संभावना है। पंजाब सरकार ने इस मामले में पहले ही निजी निवेशकों को इजाजत दे दी है। पंजाब में खेती में निवेश करने वाले निजी लोग अपने मुताबिक वहां बुनियादी सुविधाओं को विकसित कर सकते है। हरियाणा भी भविष्य में पंजाब के नक्शे कदम पर चलने की तैयारी में है।
कृषि को और मजबूती प्रदान करने के लिए हरियाणा सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन व राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की अवधि को भी बढ़ा दिया है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की शुरुआत भारत सरकार ने की है। इन योजनाओं के तहत किसानों को कृषि योग्य मशीनों की खरीदारी के लिए 25 से लेकर 50 फीसदी तक की छूट दी जाती है।
साथ ही कई खरीदारी पर उन्हें शून्य फीसदी तक की छूट दी जा रही है। सरकार द्वारा गेहूं व धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य से किसानों को खेती के तरीकों में जोखिम अपनाने में कोई दिक्कत नहीं होती है। हरियाणा के किसान गन्ने की खेती में अन्य राज्यों के मुकाबले पीछे है क्योंकि यहां के किसानों को गन्ने की खेती से जुड़ी अन्य सुविधाएं नहीं मिलती।
आगामी वित्त वर्ष के बजट में कृषि के लिए योजना व गैरयोजना मदों में 821.28 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। इनमें पशुपालन, मछली पालन जैसी चीजों को भी शामिल किया गया है। हरियाणा के कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 22.10 फीसदी का है। इस राज्य की 71 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है। इन लोगों का मुख्य काम खेती व उससे जुड़े अन्य काम है।
ऐसे में राज्य के जल स्तर व मिट्टी की उर्वरकता में हो रही कमी से सरकार चिंतित नजर आ रही है। यही वजह है कि हरियाणा सरकार इन दिनों खेती को लेकर विशेष योजना बना रही है।हरियाणा को इन दिनों प्रति हेक्टेयर 170 किलोग्राम रासायनिक खाद की जरूरत पड़ रही है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर प्रति हेक्टेयर 96 किलोग्राम रासायनिक खाद की आवश्यकता होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि इस राज्य में एक ही प्रकार की फसल उगाई जाती है।
विभिन्न प्रकार की खेती की इस राज्य में कमी पायी जाती है लिहाजा यहां की मिट्टी की उर्वरकता में विभिन्न प्रकार की खेती करने वाले राज्यों की मिट्टी के मुकाबले कमी आ गई है। यहां के किसानों को इस बात की जानकारी सेमिनार व अन्य माध्यमों से लगातार दी जा रही है। बजट के दौरान सरकार की कर्जमाफी की घोषणा से राज्य के 3 लाख 8 हजार किसानों को फायदा होगा।
पंजाब नेशनल बैंक द्वारा तैयार आंकड़ों के मुताबिक खेती के मामले में दिसंबर, 2007 तक प्रमुख बैंकों का बकाया 4474.99 करोड़ रुपये था। माना जाता है कि फसल की बिक्री के लिए उचित मार्केटिंग की सुविधा का अभाव व सिंचाई के लिए बिजली नहीं मिलने के कारण ही यहां के किसानों को कर्ज लेना पड़ता है।
खेतों की जोत बढ़ने के कारण भी यहां के किसान एक साथ मिलकर खेती करने के तरीकों को अपना रहे हैं। हरियाणा में वर्ष 2006-07 के दौरान दूध का कुल उत्पादन 54.70 मिट्रीक लाख टन था। प्रति व्यक्ति दूध की खपत के मामले में हरियाणा का देश में दूसरा स्थान है।
यहां प्रति व्यक्ति दूध की खपत 660 ग्राम है जबिक राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति दूध की खपत मात्र 232 ग्राम है। राज्य सरकार यहां के किसानों की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए मत्स्य पालन को भी प्रोत्साहित कर रही है। चालू वित्त वर्ष के दौरान राज्य सरकार ने 61000 टन मछली पालन का लक्ष्य रखा है। मछली की बिक्री के लिए गुड़गांव व बहादुरगढ़ में दो केंद्र के निर्माण की योजना है।