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संवत का फीका अंत, नए का स्वागत

Last Updated- December 08, 2022 | 1:43 AM IST

महंगाई की मार और शेयर बाजार में मचे कोहराम का साफ तौर पर असर इस बार दीपावली की रौनक में देखने को मिल रहा है।


दीपावली के एक महीने पहले से सजने वाले बाजारों में इस बार वह रौनक नहीं है जो पिछले वर्षों में रहा करती थी। मुंबई में परंपरागत रूप से बनाई जाने वाली रंगोली, दीप कैंडल और कारोबारियों द्वारा परंपरागत रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले बही खातों के चोपड़ी बाजार में भी मंदी की मार पड़ी है।

दीपावली के दिन से शुरू होने वाले नए संवत का भारतीय कारोबारियों के बीच बहुत अधिक महत्त्व होता है, इसीलिए इस दिन कारोबारी मुहूर्त टे्रडिंग के रुप में अपने नए साल के कारोबार की नींव रखते हैं। विशेष कर कपड़ा बाजार और लगभग सभी गुजराती एवं मारवाड़ी कारोबारियों द्वारा खरीदे जाने वाले परंपरागत चोपड़ों (बही-खाते) की बिक्री में भी महंगाई छाई रही।

चोपड़ा विक्रेता भवेश के अनुसार चोपड़ा की बिक्री में तो खास फर्क नहीं आए लेकिन हमारे धंधे में फर्क जरुर आया है। हर साल 10 फीसदी की दर से बढ़ने वाले इस परांपरागत व्यापार में इस बार कोई बढ़ोतरी नहीं दिखाई दी। पिछले साल की अपेक्षा ये 25 फीसदी महंगे जरुर हो गए है।

कपड़ा व्यापारी शंकर केजरीवाल के अनुसार हमारे यहां चोपडों का वही महत्त्व है जो कुछ साल पहले था। सभी कारोबारी वित्त वर्ष की शुरुआत तो एक अप्रैल से ही करते हैं लेकिन आज के दिन इन चोपडों की पूजा करके रख दी जाती है और इनमें काम अप्रैल में शुरू किया जाता है।

मुंबई में कैंडल का कारोबार करोड़ रुपये का है और यह दीवाली के मौसम में ही फूलता है। पिछले साल 200 रुपये में मिलने वाली कैंडल इस वर्ष 250 रुपये से नीचे नहीं मिल रही है। कैंडल व्यापारी आलोक के अनुसार सभी चीजों में महंगाई होने की वजह से यहां भी महंगाई है। शायद यही कारण है कि इस बार कैंडल के कद्रदानों की संख्या में कमी दिखाई दे रही है।

First Published - October 27, 2008 | 9:04 PM IST

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