उत्तर प्रदेश में आखिरकार इंजीनियरों की मुहिम रंग ले आई है। राज्य सरकार ने कांशीराम योजना के लिए इंजीनियरों को और मोहलत दे दी है।
अब कांशीराम शहरी आवास योजना के लिए आवास विकास के इंजीनियरों को आवास तैयार कर एक साल में देने होंगे। इसके पीछे एक बड़ा कारण अलग-अलग जिलों में इस योजना के लिए समय से जमीन का उपलब्ध न होना है।
सरकार ने पहले इस योजना के तहत प्रदेश भर के गरीब परिवारों को तीन या चार मंजिला दो कमरों के निशुल्क आवास बना कर पूरा कर देने की आखिरी तारीख 28 फरवरी रखी थी। योजना के लिए कार्यदायी संस्था के रूप में आवास विकास परिषद का चयन किया गया था। इस निर्धारित समय सीमा के भीतर कई जिलों में जमीन ही उपलब्ध नहीं हो सकी।
जमीन देर से मिलने पर इंजीनियरों ने काम को तेजी से पूरा करने में हाथ खड़े कर दिए। इंजीनियरों ने इसी महीने की 12 तारीख को सामूहिक इस्तीफे दे देने का भी ऐलान कर दिया था। इंजीनियरों के अनुरोध को देखते हुए राज्य सरकार ने अब एक नीति बना कर दिसंबर में काम शुरू करने वाले जनपदों को मार्च 2010 तक का समय देने का फैसला किया है।
आवास विकास परिषद के सचिव मिश्रीलाल पासवान के मुताबिक जहां जमीन उपलब्ध कराने में देरी आई है वहां समय दिया जा रहा है। उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि योजना के मकान पूरी गुणवत्ता के साथ बनेंगे और शासन के तय समय सीमा में पूरे कर लिए जाएंगे।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पहली बार 24 जुलाई 2008 को शासनादेश जारी कर कांशीराम शहरी गरीब आवास योजना के तहत 1.01 लाख तीन व चार मंजिले भवनों का निर्माण मार्च 2009 तक पूरा करने को कहा था। आदेश के छह महीने के बाद भी ज्यादातर जिलों में आवास विकास परिषद को भवन बनाने के लिए जमीन ही नहीं उपलब्ध करायी गयी।
आदेश में फेरबदल करते हुए प्रदेश की मुखिया मायावती ने अपने जन्मदिन के मौके पर आवास विकास परिषद और विकास प्राधिकरणों के अधिकारियों को निर्देश दे कर कांशीराम शहरी आवास योजना के 1.01 लाख मकानों को 28 फरवरी तक बना कर आवंटित कर देने को कहा था। उच्च गुणवत्ता के आधार पर बनने वाले इन मकानों को जल्दी से जल्दी आवंटित भी कर देने को कहा गया था।
राज्य सरकार के आदेश के तहत आवास विकास को 50 जनपदों में 71,000 मकान और विकास प्राधिकरणों को 21 जनपदों में 29,000 मकान बनाने थे। कांशीराम शहरी आवास योजना के तहत प्रदेश के बड़े जनपदों में 1,500 और छोटे जनपदों में 1,000 मकान बना कर शहरी गरीबों को दिए जाने हैं।
दो कमरों के इन मकानों की कीमत 1.75 लाख रुपये रखी गयी है और गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को इन्हें निशुल्क दिया जाना है। अभियंताओं का कहना था कि इतनी भारी तादाद में मकान बनाने के लिए कम से कम 12 से 18 महीनों का समय चाहिए। जबकि ज्यादातर जिलों में उन्हें जमीन ही फरवरी के महीने में मिल सकी है।
इंजीनियर एसोसिएशन ने आरोप लगाया था कि अब इस योजना में देर लगने के चलते प्रशासन काम की प्रगति धीमी होने का आधार लेकर अब तक 10 अभियंताओं को निलंबित और 25 को आरोप पत्र जारी कर चुका है। साथ ही करीब 37 इंजीनियरों को चेतावनी दी जा चुकी है।
