मौसम विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2022 में मौसम संबंधी घटनाओं के कारण पूरे भारत में करीब 2,770 लोगों की जान चली गई। इनमें से 1,580 मौतें बिजली गिरने और आंधी के कारण हुईं। सबसे ज्यादा मौतों की वजह ये दोनों ही रहीं। लगभग 1,050 मौतें बाढ़ और भारी बारिश के कारण हुईं।
शेष मौतें लू, ओलावृष्टि जैसी अन्य मौसमी घटनाओं के कारण हुईं। मौसमी घटनाओं के कारण सर्वाधिक मौतें उत्तर प्रदेश में हुईं। इसके बाद बिहार, असम, महाराष्ट्र और ओडिशा के लोगों की जानें गईं। मौसम विभाग ने यह भी कहा कि 2022 में दीर्घावधि औसत बारिश का सबसे अधिक अंतर कर्नाटक, राजस्थान और तेलंगाना में दिखा था।
भले ही इस साल गर्मी के शुरुआती दो महीने (मार्च और अप्रैल) लगातार पश्चिमी विक्षोभ के कारण असामान्य रूप से ठंडे रहे हैं, लेकिन आने वाले दिनों में प्रचंड गर्मी पड़ने के आसार हैं। मौसम विभाग ने हाल ही में जानकारी दी है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण पिछले 30 वर्षों में देश के गर्मी वाले क्षेत्रों में हीटवेव की आवृत्ति और अवधि लगभग 2.5 दिन बढ़ गई है।
इसी दौरान शीत लहर की अवधि और आवृत्ति कम हुई है। आसान शब्दों में कहें तो हर साल पृथ्वी गर्म होती जा रही है और इसका सभी चीजों पर चौतरफा असर पड़ सकता है। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने मौसम में हो रहे बदलाव और उसके निपटने के उपायों और तैयारी से संबंधित महत्त्वपूर्ण सवालों का जायजा लेकर देखा है कि मौसम की इस असामान्य घटना का सामना करने के लिए हम कितने तैयार हैं?
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के एक नवीनतम शोध पत्र से पता चला है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिछले 30 वर्षों में देश में गर्मी से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में भीषण गर्मी और लू की दर और इनकी अवधि में लगभग 2.5 दिनों की वृद्धि हुई है। मौसम विभाग ने कहा कि ठीक इसी दौरान न्यूनतम तापमान में वृद्धि के कारण शीत लहरों की आवृत्ति और अवधि में कमी देखी जा रही है।
‘मीटिऑरलाजिकल मोनोग्राफ: हीट ऐंड कोल्ड वेव्स इन इंडियाः प्रोसेसेज ऐंड प्रेडिक्टाबिलिटी’ शीर्षक वाले इस शोध पत्र में कहा गया है कि औसतन, गर्मी की लहर वाले क्षेत्रों में इस मौसम (मार्च से जून) के दौरान गर्मी की दो लहरों का अनुभव होता है, जो पांच से सात दिनों के बीच रहता है। इसमें कहा गया है, ‘हालांकि, लू की आवृत्ति, उनकी अवधि और उनकी अधिकतम अवधि बढ़ रही है जो ग्लोबल वार्मिंग के कारण है।’ यह शोध पत्र हाल ही में जारी किया गया था।
मौसम विभाग, अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने और सामान्य से 4.5 डिग्री अधिक होने पर लू की घोषणा करता है। तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक और सामान्य से 6.5 डिग्री अधिक होने पर भीषण लू की घोषणा की जाती है। गर्मी की लहरें, आमतौर पर मध्य और उत्तर-पश्चिमी भारत (प्रचंड गर्मी वाले क्षेत्र) और आंध्र प्रदेश तथा ओडिशा के तटीय क्षेत्रों में मार्च से जून की अवधि में महसूस की जाती हैं।
इस क्षेत्र में, गर्मी की लहरों की आवृत्ति, उत्तरी भारत की तुलना में थोड़ी कम है। शोध पत्र में यह भी कहा गया कि गर्मी की लहरें दक्षिण भारत में भी फैल सकती हैं, जहां फिलहाल गर्मी की लहरें नहीं हैं।
गर्मी की लहरें और शीतलहर तापमान की चरम स्तर की घटनाएं हैं जो ग्रहों के स्तर पर वायुमंडलीय परिसंचरण में विसंगति के कारण होती हैं और इसमें स्थानीय कारकों का भी योगदान होता है। इसमें कहा गया, ‘यह सर्वविदित है कि ग्लोबल वार्मिंग पूरी दुनिया में गर्मी की लहरों जैसी चरम तापमान जैसी स्थिति बनाती है।’
अध्ययन में भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) से भारतीय परिस्थितियों के हिसाब से तापमान और आर्द्रता में वृद्धि के चलते इसके स्वास्थ्य प्रभावों पर व्यवस्थित तरीके से शोध शुरू करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इसमें कहा गया है, ‘हमें गर्मी और शीत लहरों के लिहाज से विभिन्न तैयारी को सक्रियता से लागू करने के लिए साक्ष्य-आधारित सीमा स्थापित करने की आवश्यकता है।’
भीषण गर्मी और लू के प्रभाव और अनुकूलन पर विभिन्न एजेंसियों के बीच तालमेल बढ़ाने की मांग करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि यह सही समय है कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) भारतीय परिस्थितियों के लिए तापमान और आर्द्रता में वृद्धि से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को देखते हुए व्यवस्थित शोध शुरू करे।
शीतलहरों के बारे में इस शोध पत्र में कहा गया है कि जब शीतलहर आती है तब स्टेशनों पर सामान्य न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक होता है और यह सामान्य से कम से कम 5 डिग्री सेल्सियस कम होता है। यदि स्टेशनों पर सामान्य न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे है, तो विचलन कम से कम 3 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए जिसे शीतलहर कहा जाना चाहिए।
सर्दियों के मौसम के दौरान दिसंबर से फरवरी तक मध्य और उत्तर-पश्चिमी भारत में आमतौर पर शीतलहरें देखी जाती हैं। पहले जो अनुभव किए गए हैं उससे अंदाजा मिलता है कि भारत में शीत लहरों की आवृत्ति और अवधि कम हो रही है और यह संभवतः न्यूनतम तापमान में वृद्धि के कारण है।
भारत में शीतलहरें दो प्रकार की होती हैं। एक ला नीना से जुड़ा हुआ है जिसमें मध्य और उत्तर-पश्चिम भारत, शीतलहरों से प्रभावित होता है। दूसरा, अल नीनो चरण के दौरान होता है लेकिन ऐसी शीतलहरें आमतौर पर भारत के उत्तरी हिस्सों तक ही सीमित होती हैं।
शोध पत्र में कहा गया है कि लघु से मध्यम अवधि के पैमाने पर, गर्मी की लहरों और शीत लहरों का अनुमान 5-7 दिन पहले तक लगाया जाता है और दीर्घावधि के पैमाने (कम से कम दो सप्ताह तक) और मौसमी समय के पैमाने पर गर्मी की लहरों की भविष्यवाणी करना संभव है।
मौसम विभाग के इस पत्र में लिखा गया है, ‘अनियंत्रित तरीके से वैश्विक स्तर पर तापमान में वृद्धि हो रही है जिससे सूखा पड़ने और भीषण गर्मी की लहरों की घटना एक साथ होने के चलते चरम स्तर की मौसमी घटनाओं की संभावना बढ़ती है। जब तक हम कारणों का गहराई से अध्ययन नहीं कर लेते, तब तक भीषण गर्मी को आम लोगों पर पड़ने वाले प्रभावों के लिए जिम्मेदार ठहराना मुश्किल है।’