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पश्चिम बंगाल में दीदी की दमदार वापसी

Last Updated- December 12, 2022 | 5:17 AM IST

दो मई की तारीख को हमेशा ममता बनर्जी के साथ जोड़कर देखा जाएगा। यह वह तारीख है जब उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने तमाम विपरीत परिस्थितियों को पछाड़कर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में आसान जीत दर्ज कर ली। पार्टी ने गत विधानसभा चुनाव में 211 सीटों के अपने आंकड़े में सुधार करते हुए इस बार 216 सीटों पर जीत दर्ज की। हालांकि ममता बनर्जी खुद नंदीग्राम से मात खा गईं मगर उनकी पार्टी के प्रदर्शन पर पर उन्हें देश भर के विपक्षी दलों से सराहना मिली है।
केरल में माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेतृत्त्व वाला वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) भी शानदार प्रदर्शन करने में कामयाब रहा और उसे पिछली विधानसभा की 91 सीटों के बजाय इस बार 99 सीटों पर जीत हासिल हुई। इससे यह संकेत भी निकला कि सत्ताधारी दल को भी चुनाव में लाभ मिल सकता है। तमिलनाडु में सत्ताधारी अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) गठबंधन ने तगड़ा मुकाबला करते हुए 80 सीटें जीतीं लेकिन वह सरकार नहीं बचा सका। विपक्षी दल द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) को 153 सीटों पर जीत मिली। द्रमुक के नेता एमके स्टालिन पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बनेंगे। प्रदेश में कांग्रेस द्रमुक की साझेदार है।
असम में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 75 सीटों पर जीत के साथ अपनी सरकार बरकरार रखी है। कांग्रेस 2016 की 51 सीटों से फिसलकर अब 50 सीटों पर आ गई है। भाजपा को पुदुच्चेरी में एन आर कांग्रेस के साथ मिलकर 11 सीटों पर जीत मिली है जबकि कांग्रेस को छह सीटें मिल रही हैं। वहां बहुमत के लिए 15 सीटों पर जीत जरूरी है। त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में तीन स्वतंत्र विधायक और कांग्रेस से बगावत करने वालों की मदद से ही एनआर कांग्रेस और भाजपा गठबंधन की सरकार बन सकती है। वहां राज्यपाल की मदद ली जा सकती है।
इन विधानसभा चुनावों में भाजपा को सिर्फ नुकसान नहीं हुआ है। बंगाल में पार्टी ने पिछली विधानसभा की तीन सीटों में जबरदस्त सुधार करते हुए इस बार 76 सीटों पर जीत दर्ज की। मध्य प्रदेश में जहां आक्रामक भाजपा ने कांग्रेस की सरकार को गिरा दिया था वहीं पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की बढ़त इतनी अधिक है कि वहां ऐसा कोई प्रयास सफल होने की संभावना नहीं है।

First Published - May 2, 2021 | 10:54 PM IST

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