क्या दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों के लिए समय पर तैयार हो सकेगी? तेजी से समय बीतने और लागत बढने से उपजी समस्याओं के मद्देनजर यह सवाल हमने दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव राकेश मेहता से प्रमुखता से पूछा।
इस सवाल के जवाब में उनका यह कहना था कि तय समय सीमा के मुकाबले तेजी से काम हो रहा है, हालांकि होटलों की कमी अभी भी चिंता की प्रमुख वजह बनी हुई है। पेश है वंदना गोम्बर की उनसे खास बातचीत:
राष्ट्रमंडल खेल शुरू होने में अब करीब 800 दिन बाकी रह गए हैं, ऐसे में क्या तैयारियां पटरी पर हैं?
हां। तैयारी तय समय सीमा के मुताबिक है। हम अक्टूबर 2010 में खेलों का आयोजन के लिए अच्छी तरह से तैयार हैं। आयोजन समिति, भारतीय खेल प्राधिकरण और दिल्ली विकास प्राधिकरण सभी तैयारियों को अंजाम दे रहे हैं और दिल्ली सरकार शहर के ढांचागत विकास में लगी है।
आपने बताया कि तीन मुख्य संगठन आयोजन का जिम्मा संभाले हैं। लेकिन जैसे मैंने देखा है कि कुछ और भी पक्ष इसमें शामिल हैं और समन्वय को लेकर भी कुछ मुद्दे हैं।
मैं इसे इस तरह नहीं कहूंगा। खेलों की निगरानी विभिन्न स्तर पर की जा रही है। उच्चतम स्तर पर खेलों की निगरानी मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह की अध्यक्षता वाला मंत्रियों का समूह कर रहा है। इसके बाद एक समिति है जिसका गठन हाल में खेल मंत्री द्वारा किया गया है। इसके अलावा उपराज्य पाल अध्यक्षता वाली एक और समिति है जो दिल्ली विकास प्राधिकरण की भूमिका को देख रही है।
कैबिनेट सचिव की अध्यता वाली एक और समिति है जो नौकरशाही के स्तर पर मसलों की समीक्षा कर रही है। इसके बाद एक अधिकार प्राप्त समिति है जो सड़क, पुल, फ्लाईओवर, प्रशिक्षण स्थल, पानी, बिजली, परिवहन जैसे शहर की ढांचागत सुविधाओं के विकास में लगी है। इस तरह इस सभी समितियों का एजेंडा एकदम साफ है और ये एक दूसरे के काम में हस्तक्षेप नहीं कर रही हैं।
उन लोगों के बारे में क्या कहेंगे जो यह कह रहे हैं कि जोगियों की संख्या बढ़ गई है..?
हर कोई अपना काम कर रहा है। वे लोग एक ही काम नहीं कर रहे हैं। कोई भी विरोधाभास नहीं है। सब कुछ स्पष्ट है। हमें पता है कि किसको क्या करना है।
तैयारियों के लिहाज से जुलाई 2008 तक क्या लक्ष्य थे। हम उन्हें हासिल कर सके हैं या कुछ परियोजनाओं में देरी हो रही है?
खेल गांव और स्टेडियम की जहां तक बात है तो उसमें कोई देरी नहीं हे और शहर के ढांचागत विकास से जुड़ी ज्यादातर परियोजनाएं तय समय से आगे चल रही हैं।
समय से पहले। लेकिन दूसरे स्रोत तो कुछ और ही कह रहे हैं…
कौन कह रह है? मुझे नहीं लगता कि यह सही है क्योंकि हम प्रत्येक महीने समीक्षा कर रहे हैं। बात यह है कि कुछ ऐसी परियोजनाएं हैं तो वास्तव में राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़ी नहीं हैं लेकिन हम उसे भी जल्द से जल्द पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। उदाहरण के लिए हवाई अड्डे तक सड़क संपर्क परियोजना जिसमें देरी हो रही है।
क्या खेलों से राजस्व के संदर्भ में कुछ सकारात्मक होगा, जैसा की बोली दस्तावेज में कहा गया है?
हम खेलों पर जो कुछ भी खर्च करते हैं, उसे प्रायोजकों, विज्ञापन और टिकट की बिक्री के जरिए जुटाया जाता है और यह धन वापस भारत सरकार को सौंप दिया जाएगा। खेल आयोजन समिति को सरप्लस की उम्मीद है क्योंकि उन्हें विज्ञापन से काफी आमदनी की उम्मीद है। उन्होंने 750 से 780 करोड़ रुपये तक की कमाई कर ली है जबकि खेलों को शुरू होने में अभी ढाई साल का समय बाकी है।
क्या होटलों को लेकर चिंता है?
हां ऐसा है। इस समस्या से निपटने के लिए राष्ट्रीय राजधानी में होटलों का विकास करना होगा। इसके अलावा उद्योगों में ढांचागत बदलाव और सार्वजनिक निजी साझेदारी को बढ़ावा देना होगा। हमने ब्रेड एंड ब्रेकफास्ट योजना की शुरुआत की है। हमें उम्मीद है कि इस योजना के तहत 5,000 कमरे उपलब्ध हो सकेंगे।