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मुश्किल हालात से जूझ रही है भदोही की कालीन

Last Updated- December 05, 2022 | 5:18 PM IST

विश्व बाजार की प्रतिस्पर्धा मे बने रहने के लिए उत्तर प्रदेश के भदोही जिले का विश्व विख्यात कालीन उद्योग आज कई समस्याओ से जूझ रहा है।


अपने शुरुआती दिनों में इस उद्योग ने दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की कर देश और विदेश मे अपने पैर पसार लिए थे लेकिन आज यह उद्योग कुछ ही निर्यातको तक सिमट कर रह गया है।


अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ के अध्यक्ष शौकत अली अंसारी नेबताया कि विश्व विख्यात भदोही कालीन उद्योग के प्रति केन्द्र और राज्य सरकारों की बेरुखी के साथ ही ढांचागत सुविधाओं के अभाव एवं वैट लगाने से छोटी पूंजी वाले कालीन निर्माताओं के सामने गंभीर संकट खड़ा हो गया है जिसके चलते आज निर्यात करने वाला अब ठेकेदार की भूमिका में आ गया है और इसका लाभ विदेशी कंपनियां उठा रही हैं।


उन्होंने बताया कि सरकारों की बेरुखी और ढांचागत सुविधाओं के अभाव तथा आर्थिक संसाधनों की कमी के चलते अब यहां मात्र 100 कालीन निर्यातक रह गए हैं जबकि कभी भदोही में कालीन के 1,200 निर्यातक हुआ करते थे। यहां एक समय 25 लाख कालीन बुनकर काम करते थे लेकिन आधुनिक मशीनों के चलते अब इनकी संख्या 5 लाख ही रह गई है।


अंसारी ने बताया कि वर्ष 1964 में 461 करोड़ रुपये से शुरु हुए कालीन उद्योग का निर्यात वर्ष 2007-08 में 4,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है लेकिन हाथ से बुने जाने वाले कालीन जिसके लिए भदोही की एक अलग पहचान थी वह समाप्त होती जा रही है।


अंसारी ने बताया कि यह निर्यात अब कुछ निर्यातकों तक ही सिमट कर रह गया है। पहले निर्यात के लिए बनने वाली कालीन में 75 प्रतिशत का अंशदान श्रमिक का होता था और 25 प्रतिशत कच्चे माल का उपयोग किया जाता था पर अब मशीनीकरण के कारण 75 प्रतिशत योगदान कच्चे माल का और श्रमिक का अंशदान सिर्फ 25 प्रतिशत रह गया है जिससे इस विधा के कारीगर के सामने संकट की स्थिति पैदा हो गई है।


उन्होंने बताया कि हस्त निर्मित कालीन मे कभी एक परिवार के बच्चे से लेकर बूढे तक काम किया करते थे जिसके चलते इस कुटीर उद्योग ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई थी। लेकिन आज बाल श्रमिक का हौवा खड़ा कर दिए जाने से इस विधा को संजोए रखना मुश्किल हो गया है और यही स्थिति रही तो कल यह कला ही खत्म हो जाएगी।


भारतीय कालीन निर्माता संघ के पूर्व महासचिव रवि पाटोड़िया ने केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार पर खुला आरोप लगाया कि सरकार की सूची में कुटीर उद्योग कही नही दिखाई देता।सरकार केवल बड़े उद्योगों को ध्यान में रखकर ही कोई योजना बनाती है। हस्तशिल्प हस्तकला जैसे उद्योगों को बढ़ावा दिए जाने की जरुरत है न कि निर्यात परक उद्योग पर वैट लगाने की।


उन्होंने कहा कि एक समय कुल कालीन निर्यात का 85 प्रतिशत भदोही से होता था लेकिन अब यह घटकर मात्र 50 प्रतिशत ही रह गया है। इसके लिए सरकार की नितियों को दोषी बताते हुए उन्होंने कहा कि हमें पुनः उस दौर को वापस लाने के लिए ढांचा गत विकास को प्राथमिकता देकर योजना बनानी होगी।


पटोड़िया ने कहा कि पश्चिम के बाजार की शोभा, टफ्टैट , गाने, ट्रन्टो, तिब्बति, मैगी डिजाइन बुनाई करने में कम समय लगता है। इसी का फायदा उठाकर यूरोपीय फर्म काईकिया ने पूरे भदोही पर कब्जा जमा लिया है। भदोही में बनने वाली कालीन पर आधा हिस्सा उसी का होता है। इस फर्म के चलते कई कालीन निर्यातक अब केवल ठेकेदार की भूमिका निभा रहे है।


कालीन निर्यातक वसीम ताहिर ने कहा कि डालर के अवमूल्यन के चलते पूरे विश्व के निर्यात पर इसका असर पड़ रहा है। कालीन उद्योग भी इससे अलग नहीं है। कालीन का सबसे बड़ा खरीदार अमेरिका था पर आज अमेरिका को निर्यात कम होता जा रहा है वहीं यूरोपीय देशों का निर्यात बढ़ रहा है। इंडियन इन्ट्रीटयूट आंफ कार्पेट टेक्नोलाजी के डायरेक्टर के के गोस्वामी का मानना है कि फैशन के बदलते दौर में हर रोज नई डिजाइनें आ रही है निर्यातको को चाहिए कि नई कलात्मक डिजाइनों को बनाने पर भी जोर दे।


कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के सहायक निदेशक विजय कुमार सिंह ने बताया कि भदोही से होने वाले कुल निर्यात का 25 प्रतिशत भारत तिब्बती क्वालिटी कालीन है। वर्ष 2006 07 में पूरे भारत से कालीन का कुल निर्यात 3674 करोड़ 86 लाख रुपए का हुआ इसमें उत्तर प्रदेश का 46.6 प्रतिशत हिस्सा है।


लगभग 400 करोड़ रुपए का भारत तिब्बती कालीन निर्यात किया गया। इस वर्ष 200 से 300 करोड़ रूपए की मांग बढ़ने की पूरी संभावना है। वर्ष 2007 08 में निर्यात 4000 करोड़ रुपए का आकड़ा पार कर जाएगा।

First Published - March 30, 2008 | 10:30 PM IST

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