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अगले बड़े मुद्दे की तलाश में विपक्षी दल

Last Updated- April 10, 2023 | 11:48 PM IST
After the Budget session washout, the Opposition is trying various strategies to unite

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता शरद पवार ने पिछले हफ्ते अदाणी समूह के बचाव में जो बयान दिए थे, उससे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का विरोध कर रहे विपक्ष में घबराहट बढ़ गई। उनकी टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब सरकार और अदाणी के संबंधों की जांच के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति बनाए जाने की मांग जोर पकड़ रही है जिसे सरकार ने खारिज भी कर दिया और इसी कारण से संसद ठप पड़ गई।

पवार ने कहा कि यह मांग गलत थी, खासतौर पर तब जब उच्चतम न्यायालय ने एक समिति गठित कर दी। उन्होंने यह भी कहा कि किसी कारोबारी घराने की गतिविधियों के आधार पर विपक्ष को एकजुट करने और सरकार के खिलाफ खड़ा करने की कोशिशों से विपक्ष की एकता स्थायी रूप से नहीं बन पाएगी। उन्होंने कहा कि विपक्ष को एकजुट रखने की कोशिश विशेष योजना और निश्चित दिशा के साथ ही कामयाब हो पाएगी।

पवार ने कहा, ‘विपक्षी एकता बहुत महत्त्वपूर्ण है, लेकिन मुद्दों पर स्पष्टता होनी चाहिए। आज विपक्षी दलों की अलग-अलग विचारधाराएं हैं और उनके सोचने का तरीका भी अलग है। हमारे जैसे लोग विपक्षी एकता चाहते हैं, लेकिन हमारा जोर विकास पर है। हमारे साथ अन्य लोग भी हैं जो विपक्षी एकता चाहते हैं, लेकिन इस वामपंथी सोच का अलग असर हो सकता है। विपक्षी एकता केवल विशिष्ट योजनाओं और दिशा के साथ ही कारगर हो पाएगी। अगर ऐसा नहीं होता है तब कोई भी विपक्षी एकता देश के लिए फायदेमंद नहीं होगी।’

कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने पवार की टिप्पणी के कुछ घंटे बाद एक बयान में कहा, ‘राकांपा का अपना विचार हो सकता है लेकिन समान विचारधारा वाले 19 दल इस बात से सहमत हैं कि प्रधानमंत्री से जुड़े अदाणी समूह का मुद्दा वास्तविक तौर पर बेहद गंभीर है।’ उन्होंने कहा, ‘राकांपा सहित पूरा विपक्ष, संविधान और हमारे लोकतंत्र को भाजपा के हमलों से बचाने और भाजपा के विभाजनकारी एवं विध्वंसक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक एजेंडे को हराने के लिए एक साथ होगा।’

एक मायने में कांग्रेस इस विचार को देखते हुए अपनी दिशा पर विचार कर सकती है कि सांठगांठ के आरोपों के आधार पर सरकार पर हमला न तो स्थायी हो सकता है और न ही इतना प्रभावी होगा कि बाकी विपक्ष को एक मंच पर लाया जा सके। इसके लिए एक व्यापक योजना के आधार पर एकता बनाने की जरूरत है।

2024 के आम चुनावों से पहले व्यापक एकता के लिए एक मंच पर आने की एक और झलक तब मिली जब सभी विपक्षी दल, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के खिलाफ आवाज उठाते हुए उच्चतम न्यायालय गए। हालांकि विपक्षी दलों के कुछ नेताओं ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को निजी तौर पर यह भी बताया कि दुरुपयोग के आरोप को साबित करना मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा, इस तरह के मुद्दे में बड़े पैमाने पर लामबंदी की गुंजाइश भी काफी हद तक सीमित है।

विपक्षी खेमे को किसी एक मुद्दे पर एक साथ लाने की योजना के तहत ही तमिलनाडु के मुख्यमंत्री मुतुवेल करुणानिधि स्टालिन ने ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस का गठन कर एक शुरुआत की। इसके लिए सभी विपक्षी दलों को भी आमंत्रित किया गया था और जाति आधारित जनगणना की मांग की गई थी जो अपने आप में ही इस बात को लेकर स्वीकृति थी कि सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर होने वाले भेदभाव से लड़ा जाना चाहिए और यह केवल जनगणना के आधार पर किया जा सकता है जिसमें जाति शामिल है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसने भाजपा को भी परेशान कर दिया है और विपक्षी नेताओं को लग रहा है कि यह मुद्दा सत्तारूढ़ पार्टी को और परेशान कर सकता है।

स्टालिन ने कहा कि सवर्ण जातियों में आर्थिक रूप से पिछड़े, गरीब लोगों को दिया जाने वाला आरक्षण देश को 200 साल पीछे ले जाने के बराबर है। बैठक में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के अलावा माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा के महासचिव डी राजा, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और जम्मू कश्मीर नैशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारुख अब्दुल्ला ने भी हिस्सा लिया। दिलचस्प बात यह है कि आम आदमी पार्टी (आप) और तृणमूल कांग्रेस ने भी इसमें भाग लिया। स्टालिन की नजर मंडल जैसे संभावित आंदोलन पर है जो विशेष रूप से जाति-आधारित दलों को एक मंच पर ला सकता है।

लेकिन असीम अली जैसे समाजशास्त्रियों का मानना है कि 2024 के चुनावों से पहले विपक्ष के पास बहुत कम वक्त बचा है। ऐसे में विपक्ष को एकजुट करने के लिए जातिगत भेदभाव को एक अहम बिंदु बनाना इतनी कम अवधि में कारगर नहीं हो सकता है।

उन्होंने कहा, ‘अगर मंडल दलों को राजनीतिक अप्रासंगिकता से नए दौर में वापसी करनी है तब उन्हें प्रासंगिक लक्ष्यों को स्पष्ट करके अपनी वैचारिक सामग्री को फिर से तैयार करने की आवश्यकता होगी। उन्हें अपने दायरे को जातिगत आरक्षण जैसी अतीत की सुलझी हुई लड़ाइयों तक सीमित नहीं रखना चाहिए।’

हालांकि विपक्षी एकता के लिए दिन-प्रतिदिन की चुनौतियां जारी हैं। उदाहरण के तौर पर, जालंधर लोकसभा सीट के लिए आगामी उपचुनाव (10 मई) में केंद्रीय मुद्दा यह बन गया कि जलवायु संबंधी आपदाओं के कारण अपनी फसलों खोने वाले किसानों को कितना मुआवजा दिया जाना चाहिए। आप पार्टी का कहना है कि उसने अब तक का सबसे अधिक मुआवजा दिया है लेकिन शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस का कहना है कि यह पर्याप्त नहीं है।

कांग्रेस विपक्षी दलों की बैठक बुलाने की योजना बना रही है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे नेताओं को बुला रहे हैं ताकि उन्हें इस बात का अंदाजा मिल सके कि उनकी उपलब्धता है या नहीं और उनका झुकाव किस ओर है।

कर्नाटक चुनाव में भी अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है और यह संभव है कि कर्नाटक में त्रिशंकु सदन बनने की स्थिति में सभी संभावनाओं को खुला रखा जाए ताकि विपक्ष फिर से संगठित हो सके। मई महीने में इस तरह के बैठक की गुंजाइश बन सकती है। लेकिन विपक्ष के लिए अगला बड़ा मुद्दा क्या हो सकता है इसको लेकर भी आंतरिक रूप से बहस चल रही है।

First Published - April 10, 2023 | 10:38 PM IST

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