फेडरल रिजर्व केपूर्व चेयरमैन एलन ग्रीनस्पैन का मानना है कि हम लोग मंदी के कगार पर पहुंच चुकेहैं और तेल की कीमते सबंधी 50 फीसदी समस्याएं इस वजह से पैदा हो रही हैं।
सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी सऊदी आर्मको का मानना है कि कच्चे तेल की कीमतों में उछाल की वजह मांग में बढ़ोतरी, सप्लाई में बाधा संबंधी चिंता, दुनियाभर में हो रही आर्थिक हलचल आदि हैं। इसके अलावा सब-प्राइम संकट का असर भी दुनियाभर के बाजारों पर पड़ा है।
साथ ही, दुनिया की प्रमुख मुद्राओं में हो रहे उतार-चढ़ाव ने समस्या को और गंभीर बना दिया है। तेल की मांग और ओपेक और गैर-ओपक देशों के सप्लाई में हो रहे बदलाव की वजह से कच्चे तेल की कीमतों का चक्र कुछ वर्षों तक जारी रह सकता है। भूराजनीतिक घटनाक्रमों और वित्तीय बाजारों की हलचल तात्कालिक तौर पर भले ही तेल की कीमतों को प्रभावित कर रही हैं, लेकिन लंबे समय में मांग और पूर्ति का बुनियादी सिध्दांत ही तेल की कीमतों को तय करेगा।
बाजार में इस बात को लेकर काफी चिंता है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में पैदा हुए संकट की वजह से तेल की मांग प्रभावित हो सकती है। गौरतलब है कि ज्यादा तेल खपत करने वाले देशों ने ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों मसलन प्राकृतिक गैस और दूसरे संसाधनों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इसके मद्देनजर भविष्य में कच्चे तेल की कीमतों में कमी होने के आसार हैं।
भूराजनीतिक हलात में जारी अनिश्चितता, डॉलर के गिरते मूल्य और कमॉडिटी कारोबार में सटोरियों की बढ़ती दिलचस्पी की वजह से कच्चे तेल की कीमतों के भविष्य में भी अस्थिर रहने के आसार हैं।कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई है। यह पिछले एक दशक पहले की कीमत से 10 गुना ज्यादा है। 2016 तक डिलिवरी के लिए तेल की भविष्य की कीमतें भी 100 डॉलर को पार कर चुकी हैं।
इन संकतों से साफ है कि कच्चे तेल की ऊंची दर भविष्य में कम नहीं होगी और वह ऊंचाई पर बरकरार रहेगी। कच्चे तेल की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी बाजार के सूरत-ए-हाल में हुए बुनियादी बदलाव की तरफ साफ इशारा करता है।पिछले कुछ समय में अमेरिका समेत कई विकसित देशों ने इसकी मांग बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। वर्तमान में भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भी कच्चे तेल की मांग में भारी बढ़ोतरी हुई है।
कुल मिलाकर जहां तेल की मांग में भारी बढ़ोतरी का अनुमान है, वहीं दूसरी ओर पूर्ति को मांग के स्तर पर बरकरार रखना काफी मुश्किल हो रहा है। मेरी राय में भूराजनीतिक हालात में जारी अनिश्चितता, डॉलर के गिरते मूल्य और कमॉडिटी कारोबार में सटोरियों की बढ़ती दिलचस्पी की वजह से कच्चे तेल की कीमतों के भविष्य में भी अस्थिर रहने के आसार हैं।