facebookmetapixel
केंद्र सरकार ने चीनी निर्यात पर लगाई मुहर, मोलासेस टैक्स खत्म होने से चीनी मिलों को मिलेगी राहतCDSCO का दवा कंपनियों पर लगाम: रिवाइज्ड शेड्यूल एम के तहत शुरू होंगी जांचें; अब नहीं चलेगी लापरवाहीपूर्वोत्तर की शिक्षा में ₹21 हजार करोड़ का निवेश, असम को मिली कनकलता बरुआ यूनिवर्सिटी की सौगातकेंद्र सरकार ने लागू किया डीप सी फिशिंग का नया नियम, विदेशी जहाजों पर बैन से मछुआरों की बढ़ेगी आयCorporate Action Next Week: अगले हफ्ते शेयर बाजार में स्प्लिट-बोनस-डिविडेंड की बारिश, निवेशकों की चांदीBFSI फंड्स में निवेश से हो सकता है 11% से ज्यादा रिटर्न! जानें कैसे SIP से फायदा उठाएं900% का तगड़ा डिविडेंड! फॉर्मिंग सेक्टर से जुड़ी कंपनी का निवेशकों को तोहफा, रिकॉर्ड डेट अगले हफ्तेDividend Stocks: निवेशक हो जाएं तैयार! अगले हफ्ते 40 से अधिक कंपनियां बांटेंगी डिविडेंड, होगा तगड़ा मुनाफाStock Split: अगले हफ्ते दो कंपनियां करेंगी स्टॉक स्प्लिट, छोटे निवेशकों के लिए बनेगा बड़ा मौकादेश में बनेगा ‘स्पेस इंटेलिजेंस’ का नया अध्याय, ULOOK को ₹19 करोड़ की फंडिंग

कर्नाटक में क्षेत्रीय विषमता व्यापक मानव विकास को कर रही बाधित

सन 1991 के बाद कर्णाटक की तेज वृद्धि human development के रूप में नजर नहीं आई है। अब वक्त आ गया है कि नीतियों में बदलाव किया जाए। बता रहे हैं

Last Updated- July 14, 2025 | 10:55 PM IST
Bangalore flooding

कर्नाटक के हालात में पिछली चौथाई सदी में बहुत बदलाव आया है। 1990-91 में जहां उसकी प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से 19 फीसदी कम थी वहीं अब वह जबरदस्त प्रगति करता हुआ देश के जीवंत प्रौद्योगिकी और नवाचार के केंद्र के रूप में उभरा है। यही नहीं वह आधुनिक सेवा उद्योग का केंद्र भी है। इस समय वह बड़े प्रदेशों में दूसरी सबसे ऊंची रैंकिंग वाला प्रदेश है और उसकी प्रति व्यक्ति आय 2022-23 में देश की औसत प्रति व्यक्ति आय से 80 फीसदी अधिक थी। यह जबरदस्त वृद्धि सेवा क्षेत्र की बदौलत आई है जो कुल मूल्यवर्धन में 68 फीसदी से अधिक योगदान करता है। यह सभी राज्यों में अधिक है। वास्तविक प्रति व्यक्ति आय 2011-12 से 2022-23 के बीच औसतन 6.4 फीसदी सालाना बढ़ी जो केवल गुजरात (6.8 फीसदी) से कम थी।

1991 के उदारीकरण ने विनिर्माण की तुलना में सेवा क्षेत्र में उद्यमिता को अधिक बढ़ावा दिया क्योंकि इसमें कम नियमन थे। राजधानी बेंगलूरु में इस नई मिली स्वतंत्रता का लाभ लेकर तकनीक और नवाचार के केंद्र में उभरने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र पहले से मौजूद था। वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों तथा इन विषयों में कुशल कर्मियों के साथ नैसर्गिक परिवर्तन देखने को मिला। वर्ष 2023 तक देश के 112 यूनिकॉर्न में से 45 कर्नाटक में थे और कुल मूल्य में उनका योगदान 44.6 फीसदी था। वहां 875 से अधिक वैश्विक क्षमता केंद्र यानी जीसीसी थे। वर्ष 2025 में बेंगलूरु वैश्विक स्टार्टअप इकोसिस्टम सूचकांक में 7 स्थानों की छलांग लगाकर 14वें स्थान पर पहुंच गया। वह देश में विदेशी निवेश का सबसे बड़ा केंद्र है और सेवा निर्यात में अग्रणी भी। ऐसा इसलिए है क्योंकि उसकी ज्ञान अर्थव्यवस्था मजबूत है, वहां कुशल श्रमिक हैं, बेहतरीन सरकारी संस्थान हैं, अच्छा मौसम है, सांस्कृतिक विविधता है और मिश्रित आबादी के साथ सक्रिय अफसरशाही भी है। बड़े पैमाने पर कुशल श्रमिकों के आने से शहर एक जीवंत नगर में बदल गया और तकनीकी तथा वैज्ञानिक नवाचारों का केंद्र भी बन गया। हालांकि,राज्य की प्रभावी वृद्धि व्यापक मानव विकास में नजर नहीं आई और वहां व्यापक असमानता  है। राज्य में होने वाला करीब 50 फीसदी मूल्यवर्धन राजधानी और पश्चिमी तट के दो जिलों दक्षिण कन्नड़ और उडुपी से आता है। राज्य औसत से कम वजन वाले बच्चों के मामले में 22वें स्थान पर, ठिगने बच्चों के मामले में 21वें स्थान पर, माध्यमिक स्तर पर स्कूल छोड़ने वाले बच्चों के मामले में 20वें स्थान पर और उच्च माध्यमिक नामांकन और 15 वर्ष से अधिक आयु वालों की साक्षरता के मामले में 17वें स्थान पर है।  

उत्तर कर्नाटक का बड़ा हिस्सा आर्थिक और सामाजिक विकास के मामलों में पीछे है। इससे उन इलाकों में भेदभाव और अलग-थलग होने का एहसास उत्पन्न हुआ है। ऐसे में कर्नाटक विरोधाभासों का राज्य बन गया है। कुछ क्षेत्रों में जबरदस्त विकास हो रहा है तो वहीं अन्य इलाकों में पिछड़ापन और गरीबी है। अधोसंरचना में कमी को उत्तरी कर्नाटक के पिछड़ेपन की वजह बताया जा सकता है लेकिन सबसे अहम कारण क्षेत्र के इतिहास और संस्थानों द्वारा निर्धारित प्रोत्साहन और जवाबदेही के ढांचे में तलाश किए जाने चाहिए। 1956 में जब राज्यों का पुनर्गठन किया गया तो हैदराबाद के निजाम के क्षेत्र के कन्नड़ भाषी इलाकों और बॉम्बे प्रेसिडेंसी के ऐसे इलाकों का मैसूर के शाही घराने के जिलों के साथ विलय कर दिया गया। इसके अलावा मद्रास प्रेसिडेंसी के पश्चिमी तट में स्थित दक्षिण कन्नड़ जिले को इसमें शामिल किया गया। हैदराबाद कर्नाटक यानी कल्याण कर्नाटक और बॉम्बे कर्नाटक यानी किट्‌टूर कर्नाटक को भारी उपेक्षा झेलनी पड़ी।

उन इलाकों को न केवल सामाजिक और भौतिक अधोसंरचना की कमी का सामना करना पड़ा बल्कि वहां  बंधुआ मजदूरी, बाल विवाह, महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव जैसे सामंती व्यवहार पहले से प्रचलित थे। जो क्षेत्र मैसूर शाही परिवार के शासन में था वहां सिंचाई और बिजली की बेहतर सुविधा थी और वहां शैक्षणिक और स्वास्थ्य संस्थान भी अधिक बेहतर थे। हालांकि जैसे-जैसे समय बीतता गया निःशुल्क बिजली और पानी की सुविधा के कारण पानी के ज्यादा इस्तेमाल वाली फसलों को बढ़ावा मिला। इससे मिट्‌टी की उर्वरता में कमी आई और क्षेत्र में एक किस्म का ठहराव आ गया।

पश्चिमी तट पर दक्षिण कन्नड़ जिला राज्य के पुनर्गठन के पहले मद्रास प्रेसिडेंसी का हिस्सा था। यह एक जबरदस्त विकास गाथा पेश करता है। मद्रास प्रेसिडेंसी के हिस्से के रूप में और राजधानी से 700 किलोमीटर दूर पूर्वी तट पर होने के कारण जिले के लोगों को सरकार की मौजूदगी महसूस ही नहीं होती। पुनर्गठन के बाद यह मैसूर राज्य का हिस्सा बन गया जो आगे चलकर कर्नाटक कहलाया। 1997 में इसे दो जिलों दक्षिण कन्नड़ और उडुपी में बांट दिया गया। पश्चिमी घाट को पार करने की चुनौती के कारण राजधानी से उसका संपर्क सीमित बना रहा।

इस क्षेत्र के लोग मुंबई से अधिक संपर्क में हैं। 1998 में कोंकण रेलवे के शुरू होने के पहले भी ऐसा ही था। 1960 के दशक के आखिर तक और 1970 के दशक के आरंभ में भी रोज कम से कम 200 लक्जरी बसें मंगलूरु और मुंबई के बीच चलती थीं। देश का पहला निजी स्ववित्तपोषित मेडिकल कॉलेज उडुपी के पहाड़ी इलाके मणिपाल में स्थापित किया गया। इस क्षेत्र का उच्च जनसंख्या घनत्व, जीवंत मंदिर संस्कृति और बड़े ब्राह्मण समुदाय ने भारी मात्रा में पाक कला में कुशल कामगार तैयार किए। ये देश के अलग-अलग इलाकों में गए और उन्होंने उडुपी फास्टफूड रेस्तरां चेन की शुरुआत की।

अर्द्ध शहरी इलाकों में निजी बैंकों की स्थापना में भी उद्यमिता की भावना नजर आई। पहले दो बैंक केनरा बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक 1906 में स्थापित हुए। 1923 में सिंडिकेट बैंक और 1924 में विजया बैंक की स्थापना हुई। ये सभी बड़े बैंक बने और इनका राष्ट्रीयकरण किया गया। बैंकिंग की लेनदेन लागत कम रखने तथा उपभोक्ताओं के अनुकूल माहौल तैयार करने के लिए बैंकरों ने वित्तीय समावेशन की नवाचारी तकनीक अपनाई और समुदाय की युवा लड़कियों को मैट्रिक के बाद रोजगार दिया। इसके

परिणामस्वरूप एक तरह की सामाजिक क्रांति की स्थिति बनी और महिलाओं का सशक्तीकरण हुआ। 1980 में बैंक अर्थशास्त्रियों के सम्मेलन का उद्घाटन करने के लिए जिले के अपने दौरे पर पहुंचे रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर आईजी पटेल ने कहा था कि यह उनकी बैंकिंग क्षेत्र की ‘तीर्थ यात्रा’ थी।  कर्नाटक के दो तटीय जिलों के अनुभव से समावेशी विकास के कई सबक सीखे जा सकते हैं। इन दोनों जिलों के मानव विकास संकेतक दुनिया के श्रेष्ठतम संकेतकों के बराबर है।

राज्य के विकास में लोक नीति की क्या भूमिका रही है? बेंगलूरु में ऐतिहासिक रूप से उल्लेखनीय वैज्ञानिक संस्थान और शीर्ष सार्वजनिक उपक्रमों ने वृद्धि के लिए अनुकूल माहौल तैयार करने में मदद की। हाल के वर्षों में अत्यधिक अमीर लोग शहर में आए हैं इसके चलते अधोसंरचना पर जबरदस्त दबाव पड़ा। नीति निर्माता मोटे तौर पर जरूरतों पर ध्यान दे रहे हैं बजाय कि विकास की सक्रिय नीति के। दो तटवर्ती जिलों की बात करें तो विकास पूरी तरह निजी क्षेत्र के हवाले रहा और कोई सरकारी पहल नहीं दिखी। चुनावी राजनीति के कारण राज्य ने सब्सिडी और हस्तांतरण में लगातार वृद्धि की है, जिससे पूंजीगत कार्यों और मानव विकास पर खर्च कम हो गया है। राज्य में निरंतर और संतुलित विकास के लिए नीतियों को नए सिरे से तय करना होगा।

(लेखक कर्नाटक क्षेत्रीय असमानता निवारण समिति के अध्यक्ष हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

First Published - July 14, 2025 | 10:31 PM IST

संबंधित पोस्ट