केंद्रीय बजट के लिहाज से बैंकिंग की बात करें तब चीजें काफी मुश्किल दिखती हैं। उदाहरण के तौर पर, मैं 29 फरवरी 2000 के बजट का जिक्र कर रहा हूं जब तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सबको हैरान करते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी घटाकर 33 प्रतिशत करने की घोषणा की थी।
मैं उनके भाषण का वह हिस्सा यहां पेश कर रहा हूं जो उन्होंने दिया था, ‘पूर्वी एशिया के हाल के संकट के चलते बैंकिंग क्षेत्र को मजबूत करने के लिए सुधारों की अहमियत महसूस की जा रही है। सरकार ने राष्ट्रीय बैंकों में सरकार की न्यूनतम हिस्सेदारी घटाकर 33 प्रतिशत करने के लिए बैंकिंग क्षेत्र में सुधार संबंधी, नरसिम्हन समिति की सिफारिशें स्वीकार करने का निर्णय लिया है। यह सरकारी बैंकों के सार्वजनिक क्षेत्र के चरित्र को बदले बिना किया जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि बैंकों के नए शेयर जनता के हाथों में हों और राष्ट्रीयकृत बैंकों के कर्मचारियों के हित की सुरक्षा की जा सके।’
हालांकि ऐसा नहीं हुआ। इसके बजाय, डेढ़ दशक बाद सरकार ने इस क्षेत्र में विलय के लिए कदम उठाया है जिसके चलते ऐसे बैंकों की संख्या कम हो गई है। अब फरवरी 2021 की बात करते हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा, ‘कोविड-19 के बावजूद हम रणनीतिक विनिवेश की दिशा में काम करते रहे हैं।
बीपीसीएल, एयर इंडिया, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, आईडीबीआई बैंक, बीईएमएल, पवन हंस, नीलाचल इस्पात निगम समेत कई कंपनियों में विनिवेश का काम वर्ष 2021-22 में पूरा हो जाएगा। आईडीबीआई बैंक के अलावा हम वर्ष 2021-22 में दो सरकारी बैंकों और एक सामान्य बीमा कंपनी के निजीकरण का प्रस्ताव करते हैं। इसके लिए विधायी संशोधनों की आवश्यकता होगी और मैं इसी सत्र में संशोधन पेश करने का प्रस्ताव करती हूं।’
पिछले साल के बजट में उन्होंने कहा था, ‘पिछले कुछ सालों में सरकार ने बैंकिंग तंत्र को मजबूत बनाने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। हालांकि, निश्चित तौर पर अधिक निजी पूंजी की आवश्यकता है। इसी वजह से आईडीबीआई बैंक में भारत सरकार की शेष हिस्सेदारी को स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से निजी, खुदरा और संस्थागत निवेशकों को बेचने का प्रस्ताव दिया जा रहा है।’ सरकारी क्षेत्र के दो बैंक और आईडीबीआई बैंक भी निजीकरण की प्राथमिकता में है।
भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) आईडीबीआई बैंक में अपना 30.24 प्रतिशत हिस्सा बेचने के लिए तैयार है, जिससे इसकी हिस्सेदारी घटकर 19 प्रतिशत हो जाएगी। वहीं सरकार की योजना 30.48 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की है जिससे इसकी हिस्सेदारी 15 प्रतिशत हो जाएगी। बिक्री के बाद, एलआईसी और सरकार की संयुक्त हिस्सेदारी 94.72 प्रतिशत से घटकर 34 प्रतिशत हो जाएगी और इस तरह नए हिस्सेदार के पास 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी होगी और इसका वास्तव में निजीकरण हो जाएगा। अगर हां तो कब?
17 मार्च, 2023 को निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) के सचिव तुहिन कांत पांडेय ने ट्वीट किया, ‘मीडिया में जो रिपोर्ट आ रही है उससे संकेत मिल रहे हैं कि आईडीबीआई बैंक का विनिवेश टाला जा सकता है जो भ्रामक, अटकलों पर आधारित और निराधार हैं। कई अभिरुचि पत्र मिलने के बाद के चरण में परिभाषित प्रक्रिया के अनुसार बाकी चीजें सही ढर्रे पर बनी हुई हैं।’
आईडीबीआई बैंक के निजीकरण के बारे में आखिरी बार इसी वक्त चर्चा हुई थी। सवाल यह है कि अभिरुचि पत्र मिलने के बाद का चरण और कितना लंबा होगा? निजीकरण के लिए कौन से दो बैंक होंगे और इसमें कितना वक्त लगेगा, इससे जुड़ा आपका अनुमान भी मेरी तरह ही होगा। चुनाव नजदीक हैं, ऐसे में इस बात की संभावना कम ही है कि अंतरिम बजट में इस पर कुछ कहा जाएगा। सवाल यह है कि बैंकिंग क्षेत्र को इस बजट से क्या उम्मीदें हो सकती हैं?
निश्चित रूप से वित्त मंत्री राजकोषीय घाटे को कम करने की राह पर आगे बढ़ना जारी रखेंगी। पिछले बजट में वित्त वर्ष 2023 के 6.4 प्रतिशत अनुमानित राजकोषीय घाटे के स्तर पर टिके रहने के साथ ही वित्त वर्ष 2024 में राजकोषीय घाटे में 50 आधार अंकों की कटौती कर 5.9 प्रतिशत तक लाने के लिए राजकोषीय दिशा का जिक्र किया गया था। वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष 2026 तक राजकोषीय घाटा 4.5 प्रतिशत से नीचे लाने की अपनी टिप्पणी भी दोहराई।
इस साल अर्थव्यवस्था में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि कम होने, विनिवेश लक्ष्य में चूक और बढ़े हुए सब्सिडी खर्च की भरपाई, उच्च कर राजस्व और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लाभांश से होने की उम्मीद है। चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 5.9 प्रतिशत तक बने रहने का अनुमान है।
वित्त वर्ष 2025 के लिए अनुमानित राजस्व घाटा 5-3.4 प्रतिशत के दायरे में बने रहने की संभावना है। चुनाव के बाद पेश किए जाने वाले बजट में कर राजस्व के आधार पर इसे और घटाकर 5.2 फीसदी तक लाया जा सकता है। हर साल औसतन 70 आधार अंकों की कटौती से वित्त वर्ष 2026 तक राजकोषीय घाटा 4.5 प्रतिशत तक नीचे आने के आसार बन सकते हैं।
बैंकों के कोष प्रबंधक यह जानना चाहते हैं कि सरकार अगले साल कितना उधार लेगी। चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे के आंकड़े को ध्यान में रखते हुए सकल बाजार उधारी 15.4 लाख करोड़ रुपये रहने की उम्मीद है और शुद्ध उधारी 11.8 लाख करोड़ रुपये है जो सरकार का सबसे अधिक ऋण है। अगले वर्ष से यह मामूली रूप से क्रमशः 15.1/2 लाख करोड़ और 11.5 लाख करोड़ रह सकता है।
आरबीआई ने महामारी के दौरान और उसके बाद बड़े पैमाने पर उधारी कार्यक्रम चलाया है। इसने सितंबर 2021 से खुले बाजार में कोई सरकारी बॉन्ड नहीं खरीदा है, जिससे इसकी बैलेंस शीट पर बोझ पड़ा है। साथ ही, इसने बॉन्ड प्रतिफल बढ़ाने की अनुमति नहीं दी जिससे सरकार की उधार लेने की लागत बढ़ी है और बैंकों के मुनाफे को नुकसान पहुंचा।
अगर वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में दरों में कटौती का चक्र शुरू होता है तब हम 10 वर्षीय बॉन्ड प्रतिफल को 7 फीसदी से नीचे जाते हुए देख सकते हैं। पिछले सप्ताह यह 7.17 प्रतिशत के स्तर पर रहा। हालांकि बाजार को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।
वैश्विक सूचकांक में शामिल होने के साथ, सरकार को अब सॉवरिन बॉन्ड के लिए घरेलू खरीदार की आवश्यकता नहीं है। उम्मीद करते हैं कि चुनाव के बाद के बजट में बैंकिंग सुधारों की राह पर फिर से वापस आने के प्रोत्साहन के अपार मौके होंगे।