नगर निकायों के वित्त पर भारतीय रिजर्व बैंक की हालिया रिपोर्ट बताती है कि 50 फीसदी से ज्यादा नगर निगम अपने बल पर आधे से भी कम राजस्व अर्जित कर पाते हैं और 2022-23 में सरकार से उन्हें मिलने वाली रकम 20 फीसदी से भी ज्यादा बढ़ गई।
नगर निकायों को अधिक प्रशासनिक स्वायत्ता तथा वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए स्थानीय प्रशासन का विकेंद्रीकरण बहुत जरूरी है। नगर निकायों का राजस्व बढ़ाना वित्तीय जरूरत नहीं है बल्कि यह प्रभावी शहरी प्रशासन के लिए बुनियादी जरूरत है। नगर पालिकाएं अपने आय के स्रोतों में विविधता लाकर तथा राजकोषीय क्षमताओं को बढ़ाकर अधिक सक्रिय तथा टिकाऊ शहरी प्रबंधन नीतियां तैयार कर सकती हैं।
नगरीय निकायों के प्रभावी वित्तीय प्रबंधन में दोहरा दृष्टिकोण शामिल होता है, जिसके तहत सरकार के उच्चतर स्तरों से वित्तीय अंतरण और स्थानीय राजस्व का अच्छे ढंग से सृजन, उपयोग तथा आवंटन जरूरी होता है। भारत में शहरी स्थानीय निकायों को वित्तीय स्वायत्तता हासिल करने में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्हें सीमित मात्रा में अधिकार और संसाधन मिले हैं।
भारत में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का केवल 0.45 फीसदी हिस्सा वित्तीय अंतरण के तौर पर नगर निकायों को दिया जाता है। इसके उलट ब्राजील, इंडोनेशिया, फिलिपींस और मेक्सिको जैसे देशों में जीडीपी का 1.6 फीसदी से 5.4 फीसदी तक नगर निकायों को मिल जाता है। यूरोपीय देशों में उन्हें जीडीपी का 6 से 10 फीसदी तक आवंटित किया जाता है। इससे पता चलता है कि स्थानीय प्रशासन को सहारा देने के लिए मजबूत अंतरसरकारी राजकोषीय व्यवस्थाएं कितनी जरूरी हैं। इन अंतरराष्ट्रीय मानकों से यह भी पता चलता है कि भारत में नगर निकायों को मिलने वाला धन या वित्तीय अंतरण बढ़ाए जाने की कितनी अधिक जरूरत है। साथ ही यह भी जरूरी है कि नगर निकाय स्वयं राजस्व तैयार करें, जिसमें अभी तक वे बुरी तरह पिछड़ रहे हैं।
इस दूसरे पहलू की बात करें तो देश में नगर निकायों की वित्तीय स्थिति कई चुनौतियों से जूझती है। इसमें राजस्व संग्रह कम रहना, राज्यों और केंद्र से वित्तीय अंतरण पर बहुत अधिक निर्भर होना और म्युनिसिपल उधारी में इजाफा होना शामिल हैं। रिजर्व बैंक की ‘नगर निकायों में राजस्व सृजन के अपने स्रोत: अवसर और चुनौतियां’ शीर्षक वाली इसी साल आई रिपोर्ट में इन चुनौतियों पर नजर डाली गई है।
नगर निकायों ने जीडीपी के 0.6 फीसदी के बराबर ही राजस्व तैयार किया, जबकि राज्य सरकारों ने 14.6 फीसदी और केंद्र सरकार ने 9.2 फीसदी राजस्व सृजित किया। इसके परिणामस्वरूप वित्तीय अंतरण पर निर्भरता बहुत अधिक हो गई। 2022-23 में केंद्र से 24.9 फीसदी और राज्य सरकारों से अंतरण 20.4 फीसदी बढ़ गया। नगर निकायों की उधारी भी सबको चौंकाते हुए 363.06 फीसदी बढ़ गई है। 2019-20 में यह केवल 2,886 करोड़ रुपये थी, जो 2023-24 में बढ़कर 13,364 करोड़ रुपये तक पहुंच गई।
शहरी इलाकों में उच्च गुणवत्ता वाली जन सेवाओं की बढ़ती मांग पूरी करने के लिए रिपोर्ट में भौगलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) से मैपिंग, डिजिटल भुगतान प्रणाली और संपत्ति के बढ़ते मूल्य को सही तरीके से दिखाने वाली बेहतर संपत्ति कर प्रणाली को अपनाने की सिफारिश की गई। ध्यान रहे कि कर राजस्व का सबसे अहम स्रोत संपत्ति कर ही होता है।
स्थानीय निकाय कर से राजस्व नहीं कमा सकते, इसलिए कर के अलावा अन्य स्रोतों से राजस्व बढ़ाना बहुत जरूरी है और उसके लिए रिपोर्ट महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और त्रिपुरा का उदाहरण देकर ‘उपयोगकर्ता शुल्क’ शुरू करने का सुझाव देती है। यह शुल्क जलापूर्ति, सफाई और कचरा प्रबंधन जैसी जरूरी सेवाओं पर लगाया जा सकता है।
हालिया रिपोर्ट ‘म्युनिसिपल परफॉर्मेंस ऑफ इंडियन सिटीज: एन इवैलुएशन बेस्ड ऑन यूओएफ डेटा’ में भारत के शहरी निकायों की चुनौतियां दी गई हैं। आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा जुटाए गए आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए इस अध्ययन में 134 नगर पालिकाओं के प्रदर्शन को कसौटी पर कसा गया है। इसमें पांच अहम अंगों – प्रशासन, सेवा, प्रौद्योगिकी, नियोजन तथा वित्त को 20 क्षेत्रों और 100 संकेतकों पर परखा गया है।
इस आकलन में वित्तीय स्थिति का अध्ययन अहम जानकारी देता है। इसमें नगर पालिकाओं को चार अहम पैमानों – राजस्व प्रबंधन, व्यय प्रबंधन, राजकोषीय उत्तरदायित्व और राजकोषीय विकेंद्रीकरण पर जांचा गया है। राजस्व प्रबंधन की बात करें तो लगभग 50 फीसदी नगर पालिकाएं अपने कुल राजस्व का केवल 23 प्रतिशत स्वयं सृजित करती हैं और कर राजस्व पर बहुत अधिक निर्भर रहती हैं। 22 नगर पालिकाओं का 80 फीसदी राजस्व कर से ही आता है। शायद सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि आधी नगर पालिकाएं राज्य तथा केंद्र सरकार के अनुदान को छोड़कर वित्त के दूसरे वैकल्पिक स्रोत तैयार नहीं कर पा रही हैं।
व्यय प्रबंधन की पड़ताल करने पर नगरपालिकाओं की वित्तीय कुशलता पर और भी बारीक जानकारी मिलती है। केंद्र से मिले अनुदान का इस्तेमाल करने में नगर पालिकाओं की औसत दक्षता दर 59 फीसदी है और राज्य अनुदान के मामले में औसत दर 67 फीसदी है। अधिकतर नगर पालिकाएं कर राजस्व को सबसे पहले वेतन पर खर्च करती हैं, जिससे उनका प्रति व्यक्ति पूंजी व्यय कम रह जाता है।
राजकोषीय जवाबदेही में नगर पालिकाओं के अनुभव उम्मीद जगाते हैं। पिछले तीन साल से नगर पालिकाओं ने 10 फीसदी से अधिक बजट अधिशेष रखा है। इससे संकेत मिलता है कि उन्होंने काफी वित्तीय समझदारी और स्थिरता दर्शाई है। मगर राजकोषीय विकेंद्रीकरण पर मिले निष्कर्ष बड़ी व्यवस्थागत चुनौतियों की ओर इशारा करते हैं। 109 नगर पालिकाओं यानी करीब 81 फीसदी नगर पालिकाओं के पास स्वयं उधारी लेने या निवेश करने के अधिकार नहीं हैं। वित्तीय निर्णयों के लिए उन्हें राज्यों से मंजूरी लेनी पड़ती है। इसने स्थानीय शासन की स्वायत्तता बहुत घट जाती है। ये आकलन नगर निकायों की वित्तीय स्थिति पर रिजर्व बैंक की रिपोर्ट से मेल खाते हैं। इन रिपोर्ट में दी गई जानकारी नए संस्थागत ढांचे की जरूरत बताती हैं, जहां नगर पालिकाएं विकास की रणनीतियों के केंद्र में होनी चाहिए और उनके पास अधिक प्रशासनिक तथा वित्तीय स्वायत्तता भी होनी चाहिए।
भविष्य में दो रणनीतियों की जरूरत है। पहली, केंद्र और राज्यों से वित्तीय आवंटन बढ़ना चाहिए। दूसरी, नगर पालिकाओं को अपने राजस्व स्रोतों में विविधता लानी चाहिए और वित्तीय निर्णय लेने की स्वायत्तता उन्हें मिलनी चाहिए। निजी-सरकारी साझेदारी, लागत के भरपूर इस्तेमाल के लिए डिजिटल समाधान और म्युनिसिपल तथा ग्रीन बॉन्ड जैसे वित्तीय साधनों के जरिये ऐसा किया जा सकता है। इन उपायों से छोटे नगर निकाय खास तौर पर अपनी वित्तीय स्थिति मजबूत कर सकते हैं। जैसा रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में बताया गया है, इन तरीकों से जरूरी शहरी बुनियादी ढांचा तैयार करने, टिकाऊ विकास करने तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद मिलेगी। बेहतर जवाबदेही, वित्तीय लचीलेपन और रणनीतिक संसाधन प्रबंधन के साथ नगर निकायों के संचालन की नई परिकल्पना उनकी विकास की संभावनाओं को पूरी तरह बदल सकती है और जटिल शहरी चुनौतियों का ज्यादा कारगर ढंग से समाधान कर सकती है।