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ट्रंप का नया कार्यकाल और बजट निर्माण

अमेरिका में ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद नीतिगत मोर्चे पर भविष्य अनिश्चित नजर आ रहा है। ऐसे में बजट में वृद्धि, रोजगार और शासन के मोर्चे पर संतुलन कायम हो। बता रहें

Last Updated- January 13, 2025 | 11:00 PM IST
Donald Trump

आर्थिक नीति बनाते समय अनिश्चितता को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए। कई बार ऐसे मौके भी आते हैं जब अनिश्चितता बहुत अधिक होती है। हाल के वर्षों में कोविड-19 महामारी सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आई। यह कहना मुश्किल था कि यह कब तक बनी रहेगी। इस पर नीतिगत प्रतिक्रिया एकदम स्पष्ट थी – राजकोषीय और मौद्रिक प्रोत्साहन। दुनिया के तमाम देशों ने भी इसके कारण अलग-अलग स्तर पर प्रोत्साहन दिया।

वित्त वर्ष 2025-26 के बजट के पहले हालात शायद और भी चुनौतीपूर्ण हैं। किसी को नहीं पता कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अपनी योजनाओं को कैसे आगे ले जाएंगे और अन्य देशों की क्या प्रतिक्रिया होगी। यूक्रेन और पश्चिम एशिया के भूराजनीतिक हालात पर उनका रुख भी अभी स्पष्ट नहीं है। ग्रीनलैंड और पनामा नहर के रूप में उन्होंने खुद दो नई भूराजनीतिक समस्या खड़ी कर ली हैं। बस एक बात तय है – विश्व अर्थव्यवस्था को बड़े झटकों के लिए तैयार रहना होगा। आगामी आम बजट में पूरा ध्यान वृद्धि की गति बरकरार रखने पर होना चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था आने वाले किसी भी झटके से निपटने के लिए तैयार रहे।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के हालिया आंकड़ों के मुताबिक हम वित्त वर्ष 2024-25 में 10.5 फीसदी नॉमिनल वृद्धि के लक्ष्य से कुछ पीछे रह जाएंगे। मगर हम राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.9 फीसदी से कम रखने का लक्ष्य पा सकते हैं क्योंकि पूंजीगत व्यय बजट अनुमान से कम रहेगा। अगले वित्त वर्ष में हमारी प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि केंद्र सरकार के व्यय को चालू वित्त वर्ष की तरह जीडीपी का 3.4 फीसदी ही रखा जा सके। मगर इसके लिए सरकारी उपक्रमों का पूंजीगत व्यय कम नहीं किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार का कुल व्यय भी इस वित्त वर्ष के समान 4.5 फीसदी ही रहना चाहिए। इस सूरत में वित्त वर्ष 2026 के लिए राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4.5 फीसदी के उस लक्ष्य से ज्यादा रह सकता है, जो पिछले बजट में बताया गया था। ऐसा होता है तो होने दिया जाए। वास्तविक लक्ष्य है अगले वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि को 6.5 फीसदी के करीब रखना। मौजूदा अनिश्चितता के बीच निजी निवेश में कोई खास इजाफा होता नहीं नजर आता।

वित्त मंत्री ने गत वर्ष अपने बजट भाषण में संकेत दिया था कि वित्त वर्ष 2026-27 के बाद सरकार राजकोषीय घाटे को कम करने के बजाय अपने ऋण-जीडीपी अनुपात में कमी लाने पर ध्यान देगी। साफ कहें तो इसका अर्थ है राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) के तहत 3 फीसदी राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने के लिए दो दशकों से चल रहे निरर्थक प्रयासों को त्याग देना। अब मजबूत राजकोषीय प्रोत्साहन की जरूरत है क्योंकि मौद्रिक सहजता की गुंजाइश शायद उतनी नहीं हो, जितनी विश्लेषकों को उम्मीद थी। समस्या शायद देश के भीतर ऊंची मुद्रास्फीति बने रहने की है ही नहीं। शुल्क के मसले पर ट्रंप का रुख बताता है कि अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ेगी और डॉलर मजबूत होगा। कम से कम निकट भविष्य में तो ऐसा ही होगा। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने संकेत दिया है कि 2025 में दरों में कटौती पहले के अनुमानों से कम होगी। ट्रंप के कार्यकाल के बाद अन्य अर्थव्यवस्थाओं के लिए अपनी नीतिगत दरों को फेड की दरों से अलग करना मुश्किल हो जाएगा।

बजट की दूसरी प्राथमिकता बेरोजगारी की समस्या होनी चाहिए, खास तौर पर शिक्षित बेरोजगारों का मसला। गत वर्ष बजट में तीन योजनाओं की घोषणा की गई थी, जिनका लक्ष्य था निजी क्षेत्र में रोजगार को प्रोत्साहन देना। एक इंटर्नशिप कार्यक्रम की भी घोषणा की गई थी, जिसमें पांच सालों में दो लाख करोड़ रुपये यानी सालाना 40,000 करोड़ रुपये की राशि खर्च करने की बात थी। मगर बजट में केवल 12,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए।

आगामी बजट में हमें यह भी बताया जाना चाहिए कि इन योजनाओं का नतीजा क्या रहा। इस बात की संभावना बहुत कम है कि निजी क्षेत्र रोजगार निर्माण की सरकार की अपेक्षाओं पर खरा उतरा होगा या फिर वह भविष्य में ऐसा करेगा। विनिर्माण अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा है और निकट भविष्य में रोजगार निर्माण के लिए पूरी तरह इस पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है। सेवा क्षेत्र रोजगार तैयार करता है, लेकिन उनमें से काफी रोजगार की गुणवत्ता बहुत खराब होती है।

शिक्षित बेरोजगारी को जल्द से जल्द समाप्त करने के लिए सरकार को खाली पद भरने के लिए पूरा जोर लगाना चाहिए। उन सभी लोगों को वादे के मुताबिक 5,000 रुपये मासिक वृत्ति भी मिलनी चाहिए, जिन्होंने सरकारी पोर्टल के माध्यम से इंटर्नशिप कार्यक्रम के लिए आवेदन किया लेकिन छह माह के भीतर इंटर्नशिप पाने में नाकाम रहे। सरकार के भीतर अनुत्पादक नौकरियों और मुफ्त उपहारों पर भी काफी चिंता जताई जाएगी। आलोचक कहेंगे कि सरकार को इसके बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य और अधोसंरचना क्षेत्र में निवेश बढ़ाना चाहिए क्योंकि ऐसा करने पर वृद्धि दर को 7 फीसदी के पार ले जाने में मदद मिलेगी।

हमने देखा है कि तेज वृद्धि से न तो अपने आप पर्याप्त रोजगार उत्पन्न होते हैं और न ही अच्छी गुणवत्ता वाले रोजगार आते हैं। भारत और दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी ऐसा ही होता है। आबादी के एक बहुत बड़े हिस्से को राहत चाहिए। केंद्र और राज्य दोनों अपने-अपने स्तर पर लोगों को मुफ्त सहायता दे रहे हैं, जिससे हम सार्वभौमिक बुनियादी आय का भारतीय प्रारूप गढ़ रहे हैं। आपको पसंद हो या न हो समूचा राजनीतिक जगत तो इस पर एकमत है। अगर हम विपरीत वैश्विक हालात में भी जीडीपी वृद्धि को 6.5 फीसदी के इर्द-गिर्द रख सके तो निवेशक इसे भारत की बड़ी उपलब्धि मानेंगे। अंत में सरकार को सरकारी उपक्रमों, सरकारी बैंकों के प्रदर्शन के साथ शासन में भी सुधार करना होगा।

अब यह और भी जरूरी है क्योंकि निजीकरण और परिसंपत्ति मुद्रीकरण ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। वित्तीय सेवा संस्थान ब्यूरो (एफएसआईबी) शीर्ष नियुक्तियों के लिए एक अच्छा मॉडल बनकर उभरा है। ब्यूरो में पेशेवर, रिजर्व बैंक का एक प्रतिनिधि और वित्तीय मंत्रालय का एक प्रतिनिधि होते हैं। यह वित्तीय संस्थानों के लिए पूर्णकालिक निदेशकों और गैर कार्यकारी चेयरपर्सन की नियुक्ति करता है। सरकार उसकी सिफारिशों पर निर्णय लेती है। स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति का कम भी इस ब्यूरो को सौंप दिया जाना चाहिए। रिजर्व बैंक ने स्वतंत्र निदेशकों की जवाबदेही बढ़ा दी है। सरकारी बैंकों के स्वतंत्र निदेशकों को दिए जाने वाले पारिश्रमिक को भी बढ़ाने की की आवश्यकता है। बैंक के आकार और प्रदर्शन के अनुसार इस पारिश्रमिक की अलग-अलग श्रेणी तय की जा सकती हैं।

वित्तीय क्षेत्र से बाहर के सार्वजनिक उपक्रमों के लिए यही काम करने वाले सार्वजनिक उपक्रम चयन बोर्ड को भी एफएसआईबी की तर्ज पर ही दोबारा गठित किए जाने की जरूरत है। इसे भी बेहतर शर्तों पर स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति का अधिकार होना चाहिए। सभी सरकारी उपक्रमों में बोर्ड के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए एक अलग पैनल बनाया जा सकता है।
करीब 6.5 फीसदी की वृद्धि दर का लक्ष्य, उच्च सार्वजनिक पूंजीगत व्यय, रोजगार निर्माण पर बढ़ा हुआ सरकारी व्यय, राजकोषीय घाटे के लक्ष्य पर शिथिलता और सरकारी उपक्रमों, सरकारी बैंकों के प्रदर्शन पर अधिक ध्यान देना आकर्षक तो कहीं से नहीं लगता। परंतु ट्रंप के आगमन के बाद बढ़ी अनिश्चितता में यही करने की जरूरत है।

First Published - January 13, 2025 | 10:36 PM IST

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