भारतीय अर्थव्यवस्था फिलहाल दिलचस्प मोड़ पर है। इस समय उत्पादन एक वर्ष पहले की तुलना में कम है लेकिन कई क्षेत्रों में गतिशीलता के कारण आशावाद भी नजर आ रहा है। हम कुछ संकेतकों पर नजर डालेंगे, जिनमें जुलाई-सितंबर तिमाही के आंकड़े या सितंबर और अक्टूबर के मासिक आंकड़े शामिल हैं। इसमें व्यापक नतीजे देखने को मिलते हैं। गैर वित्तीय सूचीबद्ध कंपनियों के कर पश्चात लाभ में 41 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है मगर उपभोक्ताओं के रुझान का स्तर 51 फीसदी ऋणात्मक रहा। अर्थव्यवस्था के जो हिस्से पूरी तरह सक्रिय हो गए हैं उनमें मांग तैयार होगी और उसके संकेत समूची अर्थव्यवस्था में जाएंगे। अनुमान तो यही है कि आने वाले महीनों में तमाम अन्य संकेतक भी सालाना आधार पर सकारात्मक वृद्धि दर्शाएंगे।
महामारी के कारण बीमारी और मौत के शिकार हुए लोगों के आंकड़े देखे जाएं तथा उनकी तुलना फरवरी और मार्च में लगाए गए अनुमानों से की जाए तो कहा जा सकता है कि महामारी के दौरान भारत का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर रहा है। अब यह बात काफी हद तक स्पष्ट है कि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा वायरस की चपेट में आ चुका है और उसमें प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है। बीमारी के संपर्क में आने पर बहुत कम लोगों की मौत हुई या वे गंभीर रूप से बीमार हुए। हमें अब तक पता नहीं है कि कोविड-19 वायरस भारत तथा अन्य गरीब मुल्कों पर उतना घातक क्यों नहीं रहा। हां, यह बात भरोसे से कही जा सकती है कि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर चुका है और दिसंबर तक शायद देश के बड़े हिस्से में प्रतिरोधक क्षमता का विकास हो जाएगा।
गैर वित्तीय सूचीबद्ध कंपनियों के आंकड़े दिलचस्प हैं। उनकी बिक्री में तो 9.2 फीसदी की गिरावट आई मगर मुनाफा 41 फीसदी बढ़ गया। शायद इन कंपनियों ने अपने खर्च में व्यापक कटौती की। शायद उनका अनुमान था कि भारत कोविड-19 से बहुत बुरी तरह प्रभावित होगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और यही वजह है कि चकित करने वाले तथा सकारात्मक नतीजे सामने आए। मुनाफे से जुड़ा यह प्रदर्शन बड़ी कंपनियों के नेतृत्व के लिए भी राहत लेकर आएगा। जहां तक कंपनियों की कुल बिक्री में 9.2 फीसदी गिरावट की बात है तो सरकार के कर संग्रह में 13 फीसदी गिरावट के हिसाब से आंकड़ा सही लगता है। बैंकों की ऋण वृद्धि वास्तविक संदर्भ में नकारात्मक रही लेकिन यह कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा ऋण की मांग में कमी के बजाय 2012 के बाद से देश के बैंकिंग क्षेत्र में चली आ रही दिक्कतों के परिणामस्वरूप भी हो सकती है।
आगे की बात करें तो एक अहम सवाल यह भी है कि आखिर कंपनियां महामारी के दौर के अनुभवों को उत्पादकता में स्थायी सुधार के लिए किस हद तक काम में ला सकती हैं? क्या हम दोबारा पहले की तरह कार्यालयों में जाकर काम करेंगे? क्या हम दुकानों में जाकर खरीदारी करेंगे या कंप्यूटर स्क्रीन ही इसका जरिया बनी रहेगी? घर से काम करने के मोर्चे पर प्रबंधन तकनीक सुचारु रूप ले लेगी तो शायद कई कंपनियां दोबारा काम का पुराना तौर तरीका नहीं अपनाएंगी। कई कंपनियों को शायद अब कम खर्च में ही वर्ष भर पहले का उत्पादन स्तर हासिल हो सकता है। जिन कंपनियों ने सन 2020 में बदली प्रक्रियाओं के मामले प्रगति की है, वे अपने उन प्रतिद्वंद्वियों पर काफी प्रतिस्पर्धी दबाव बनाएंगी जो ऐसा करने में नाकाम रहीं।
यदि यह उच्च मुनाफा स्तर अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में भी बरकरार रहता है तो हम आशा कर सकते हैं कि सन 2021 के आरंभ से ही मनमुताबिक खर्च के मामले में कंपनियों में हालात सामान्य होने शुरू हो जाएंगे। विश्व अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है और भारतीय निर्यातकों को ऑर्डर मिलने शुरू हो चुके हैं। इसके विपरीत निर्यात वृद्धि अभी तक नकारात्मक है। सामान्य तौर पर इस महीने कच्चे माल का आयात अगले महीने के निर्यात में खप जाता है। ऐसे में निर्यात से जुड़ा आयात बेहतर प्रदर्शन का कारक बनता है। परंतु आयात में ऋणात्मकता यह बताती है कि घरेलू मांग में धीमापन बरकरार है और यह बात कुल बिक्री में 9.2 फीसदी की गिरावट से भी साबित होती है।
सितंबर से अक्टूबर के बीच बिजली उत्पादन में सुधार हुआ (4.77 फीसदी से 8.88 फीसदी), पेट्रोलियम उत्पादों की खपत में भी सुधार हुआ और 4.32 फीसदी की गिरावट के बजाय यह 2.5 फीसदी ऊपर आ गई। इसी तरह आयात 12.17 फीसदी की गिरावट से सुधकर 4.59 फीसदी की गिरावट पर रुक गया। अगर यह गति बरकरार रहती है तो अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में उत्पादन काफी बेहतर हो सकता है।
मुनाफे, रोजगार और निवेश के बीच भी आपसी रिश्ता है। कंपनियां पहले लाभ में स्थायित्व हासिल करना चाहती हैं और इसकेबाद वे मौजूदा उत्पादन सुविधाओं में नए श्रमिक लगाती हैं ताकि पहले बिक्री में वृद्धि के भंवर से निजात पाई जा सके। इसके बाद ही वे निवेश की ओर बढ़ती हैं। ऐसा करने से रोजगार में सुधार, निवेश में सुधार से पहले होता है।
इस समय रोजगारशुदा लोगों की तादाद पिछले वर्ष की तुलना में दो फीसदी कम है। कंपनियां आम तौर पर तब तक नई भर्तियों से परहेज करती हैं जब तक उनके पुराने कर्मचारियों का पूरा इस्तेमाल न हो जाए। इसके अलावा वर्ष 2020 में उत्पादकता लाभ का एक पहलू यह भी है कि कम कर्मचारियों की मदद से सन 2019 के उत्पादन स्तर को हासिल किया जा सके। इस पर बहस करने की आवश्यकता है कि जब बिक्री में वृद्धि सालाना आधार पर दोबारा शून्य हो जाएगी तो अर्थव्यवस्था में रोजगार आखिर कितने कम होंगे? ये चिंताएं शायद उपभोक्ताओं के रुझान में भी परिलक्षित हुई हैं। सितंबर में इसका मूल्य पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 58 फीसदी कम था और अक्टूबर में यह थोड़ा सुधरकर 51 फीसदी कम रहा।
उपभोक्ताओं के रुझान में 51 फीसदी गिरावट के बरअक्स मुनाफे में 41 फीसदी वृद्धि की आलोचना करना आसान है लेकिन हमें यह भी ध्यान देना होगा कि बाजार अर्थव्यवस्था के विभिन्न तत्त्व आपस में गहराई से जुड़े रहते हैं। अर्थव्यवस्था में सुधार की इकलौती राह यही है कि मुनाफे में वृद्धि हो और रोजगार में भी इजाफा हो। इसका असर निवेश पर भी पड़ेगा। जुलाई-सितंबर तिमाही की सबसे अच्छी खबर यही है कि गैर वित्तीय सूचीबद्ध कंपनियों का मुनाफा बेहतर रहा है।
(लेखक स्वतंत्र स्कॉलर हैं)
