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गांवों की ओर भी बहने लगी है आउटसोर्सिंग की हवा

Last Updated- December 11, 2022 | 3:36 AM IST

गांवों में भी शुरू हो रही बिजनेस प्रोसेस आइटसोर्सिंग यानी बीपीओ संस्कृति युवाओं को काफी आकर्षित कर रही है।
सामाजिक व्यवसाय के तहत शुरू हो रहे ग्रामीण बीपीओ से उन लोगों को रोजगार मिल सकेगा, जिन्होंने नौकरी की आस छोड़ दी है। पिछले साल 26 साल के कार्तिक ने अमेरिका से अर्थशास्त्र में स्नातक की उपाधि लेने के बाद भारत की ओर रुख किया।
उन्होंने अपने दो दोस्तों के साथ मिलकर राजस्थान के झुंझुनु में बागड़ गांव में ग्रामीण बीपीओ खोलकर एक नई शुरुआत की। शुरुआत में उन्होंने 10वीं से लेकर स्नातक तक की 10 महिलाओं को इसमें शामिल किया और उन्हें डाटा डालने और उनकी प्रोसेसिंग करने जैसे कामों में प्रशिक्षित किया।
पीरामल फाउंडेशन की छत्रछाया में शुरू किए गए इस बदलाव की बयार में जल्द ही 30 और लोग शामिल हो गए। सभी 3500 रुपये से लेकर 7000 रुपये तक कमा लेते हैं। कार्तिक का कहना है कि वे इसे गांवों से लेकर राजस्थान के अन्य  छोटे- छोटे कस्बों तक फैलाना चाहते हैं। उन्होंने 2012 तक लगभग 1000 लोगों की भर्तियों का लक्ष्य रखा है।
इनके ग्राहकों की संख्या भी काफी है जिनमें प्रथम नाम का गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सबसे प्रमुख है। बीपीओ भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईइआई) के लिए उनके सदस्यों के वास्ते संपर्क प्रमाणीकरण योजना पर भी कार्य कर रही है।
गौरतलब है कि दक्षिण भारत में बीपीओ संस्कृति बहुत जोरों से पनप रही है। फिलहाल वहां 30 बीपीओ काम कर रहे हैं और बहुत सारे शुरू होने के रास्ते पर हैं। इसकी शुरुआत एक साल पहले तमिलनाडु के कृष्णागिरि जिले में किए एक अनूठे प्रयोग से हुई और धीरे-धीरे ज्यादातर बीपीओ के लिए यह प्ररेणास्रोत बन गया।
एक साहसी जिला कलेक्टर और त्रिवेंद्रम मेडिकल कॉलेज से चिकित्सा में स्नातक संतोष बाबू के मन में भी अपने जिले के लिए कुछ करने का ख्याल आया। उन्होंने गांव में एक बीपीओ की शुरुआत की तथा गांव के उन लोगों को प्रशिक्षित किया और नौकरी दी जो किसी कारणवश स्कूल की शिक्षा पूरी नहीं कर पाए थे।
आज ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ाई छोड चुके लोगों के लिए राज्य सरकार इस मुहिम को आगे बढाना चाहती है। राज्य सरकार ने संतोष बाबू को तमिलनाडु इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन(एल्कॉट) का प्रबंध निदेशक नियुक्त किया है ताकि वह अपने इस प्रयोग को आगे बढ़ा सकें और राज्य के सभी 30 जिलों में बीपीओ की स्थापना कर सकें।
निजी सार्वजनिक भागीदारी के अंतर्गत इस मुहिम के द्वारा पढ़ाई बीच में ही छोड़ चुके लोगों को व्यापार और नौकरी मुहैया करायी जाएगी। तमिलनाडु के इस पहले बीपीओ में 100 लोगों की जगह है। इसकी शुरुआत जिला ग्रामीण विकास एजेंसी (डीआरडीए) के ग्रामीण विकास फंड से  20 लाख रुपये का ऋण लेकर की गई।
कर्ज की अदायगी बीपीओ को चलाने के लिए बनाई गई एक संस्था करती है। यह एक पूर्ण स्वायत्त संस्था है जिसमें सरकार का किसी भी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं है। संस्था के ग्राहको में भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल), होसुर इंडस्ट्री एसोसिएशन, स्मॉल इंडस्ट्री एसोसिएशन है शामिल हैं।
आज संस्था के ग्राहकों में न केवल भारत बल्कि अमेरिका की कंपनी अमेरिका स्टेट इंश्योरेंस भी शामिल हो चुकी है जो संस्था के लिए गर्व का विषय है। तमिलनाडु में शुरू किए गए बीपीओ के प्रयोग की सबसे बडी विशेषता यह है कि इससे उन लोगों को रोजगार मिलता है जो 10वीं फेल हैं या ऐसे ग्रैजुएट हैं जिनके पास नौकरी की कोई आस नहीं। पर अब वह महीने में 5000 रुपये तक कमा सकते हैं।
बाबू का कहना है कि हम उन लोगों को नौकरी देते हैं जिन्हे किसी कारणवश अपनी पढ़ाई बीच में ही छोडनी पड़ी और जिन्हें नौकरी की कोई आस नहीं होती। हमारा लक्ष्य हमें हर एक सीट से 300 डालॅर प्राप्त हो सके तभी हम इसे लाभदायक बना सकते हैं।
एल्कॉट ने 30 जिलों में रूरल फिनिशिंग स्कूल की भी शुरुआत की है जिसमें अबतक अलग- अलग गांवों के 7000 ऐसे लोगों को प्रशिक्षित किया जा चुका है जो अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। उनका यह भी विचार है कि चुनाव के बाद वह सभी जिलों में एक-एक  बीपीओ के फ्रैंचाइजी के लिए टेंडर के लिए आवेदन निकालेंगे। प्रशिक्षित लोगों द्वारा इसकी रूपरेखा तैयार की जाएगी।
इस मुहिम में नैसकॉम और फॉस्टेरा के साथ एडवेंटिटी नाम की एक निजी कं पनी भी संस्था का साथ देगी। बाबू का कहना है कि जिनकी नियुक्ति टाइपिंग में 15 शब्द प्रति मिनट की रफ्तार पर हुई थी उन्हें अब 25 शब्द प्रति मिनट का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उन्हें अंग्रेजी सीखने केलिए तीन महीने का क्रैश कोर्स भी कराया जाएगा।
बाबू का यह भी कहना है कि क्वालिटी के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। तमिलनाडु का यह बीपीओ पडोसी राज्य कर्नाटक और केरल के लिए एक रोल मॉडल बन चुका है । पड़ोसी राज्यों ने भी ग्रामीण बीपीओ शुरू करने के लिए पहले ही फंड अलग रख दिया है। बाबू का यह भी कहना है यहां कोई आर्थिक सहायता या उपकार नहीं है।
यह शुद्ध व्यापार है और फ्रैंचाइजी को इसे आकर्षक करने के लिए लाभ कमाना ही होगा। उन्होंने कहा कि आगे आने वाले समय में बीपीओ को और भी काम सौंपे जा सकते हैं पर इसके लिए फ्रैंचाइजी को अच्छा काम करना होगा।
गांवों में जिन संस्थाओं का निर्माण किया जाएगा उन्हें फ्रैंचाइजी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने पडेंग़े और लाभ को आपस में बांटना भी पडेग़ा। इस बीच कृष्णागिरि में 25 ग्रामीण बीपीओ कार्यरत हैं जो अकेले व्यक्ति या संस्था द्वारा शुरू किए गए हैं। इसके साथ ही गुजरात के आदिवासी इलाके और आंध्र प्रदेश के  तीन इलाकों में बाईराजू फाउंडेशन द्वारा भी बीपीओ खोले गए हैं।
बाबू बीपीओ के विषय में अतिशयोक्ति मे बात नहीं करते। उनका कहना है कि बीपीओ का विस्तार तभी संभव है जब यह लाभदायक रूप से काम करे और गांव में यह रोजगार का अकेला साधन नहीं हो सकता।

First Published - April 28, 2009 | 7:58 PM IST

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