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Opinion: चुनाव पर मंडराता डीपफेक का खतरा

Threat of deepfake: वर्ष 2024 के आम चुनाव के लिए डीपफेक एक बड़ा खतरा है और अगर इस पर अंकुश नहीं लगा तो 2024 चुनाव की प्रतिष्ठा पर आंच आ जाएगी। बता रहे हैं अजय कुमार

Last Updated- March 04, 2024 | 9:09 PM IST
चुनाव पर मंडराता डीपफेक का खतरा, Opinion: Threat of deepfake looms over elections

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत आम चुनाव के लिए कमर कस रहा है। पिछले 75 वर्षों से भी अधिक अवधि में भारतीय चुनाव तंत्र ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। देश का यह तंत्र राज्य एवं केंद्र स्तर पर सरकारें स्थापित करता आया है। वर्तमान समय में कई चुनौतियां भी सामने आई है परंतु इनसे बेअसर भारतीय निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने विभिन्न उपायों के जरिये- सचित्र मतदाता पहचान पत्र, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, मतदान के तत्काल बाद मतदाता द्वारा सत्यापित किए जाने वाले विशिष्ट पत्र और चुनाव पर्यवेक्षक एवं चुनावी व्यय पर नजर रखने वाले तंत्र के जरिये अपना काम संजीदगी से किया है। मतदाताओं को जागरूक बनाने के लिए आयोग ने सोशल मीडिया का भी सहारा लिया है।

2024 का आम चुनाव निर्वाचन आयोग के लिए एक और नई चुनौती लेकर आया है और वह है डीपफेक (भ्रमित करने वाले वीडियो एवं सामग्री) के कारण पैदा होने वाले खतरे। यह चुनौती साधारण नहीं है क्योंकि इसके कई घातक एवं दूरगामी नतीजे हो सकते है।

इसका कारण यह है कि डीपफेक लोगों की निर्णय लेने की शक्ति प्रभावित करते हैं और मूल तथ्य एवं मनगढंत सामग्री के बीच अंतर समाप्त कर देते हैं। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) के एक रूप जेनेरेटिव एडवर्सियल नेटवर्क्स (जीएएन) की मदद से तेजी से डीपफेक प्रसारित किए जा सकते हैं। इस हथकंडे से चतुर लोग भी धोखा खा सकते हैं।

उपयोगकर्ताओं के लिए इस्तेमाल में सहज जीएएन ऑनलाइन माध्यम में कुछ ही डॉलर में उपलब्ध है जिससे यह पूरा मामला और पेचीदा हो जाता है। अब तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के डीपफेक भी आने लगे हैं जो इस बढ़ते खतरे की गंभीरता का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।

हाल के वर्षों में सोशल मीडिया का इ्स्तेमाल भी कुछ लोग हथियार के रूप में कर रहे हैं। यहां पर भी शाब्दिक स्तर पर बदलाव या छेड़-छाड़ की हुई तस्वीरों के माध्यम से भ्रामक सूचनाएं प्रसारित की जा रही हैं। भ्रामक ऑडियो-वीडियो सामग्री से तथ्यों के साथ छेड़-छाड़ की आशंका और बढ़ जाती है। चुनाव के संदर्भ में बात करें तो डीपफेक चुनाव प्रक्रिया की प्रामाणिकता के लिए गंभीर चुनौती पेश करते हैं।

डीपफेक तैयार करने वाले लोग मतदान केंद्रों पर कब्जे की दुखद घटनाओं की याद दिलाते हैं। मगर डीपफेक बूथ पर कब्जा जमाने से भी अधिक खतरनाक हैं। ऐसे वीडियो तैयार करने वाले लोगों के पास कई हथकंडे होते हैं जिनमें विभिन्न मकसद के लिए संदर्भ आधारित फर्जी वीडियो भी शामिल हैं।

इन वीडियो को खरीदने वाले लोगों में विदेशी शक्तियों से लेकर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी आदि शामिल होते हैं। डीपफेक का इस्तेमाल कर विदेशी शक्तियां चुनावी प्रक्रिया में बाधा डालती हैं और चुनावी संप्रभुता को नुकसान पहुंचाती हैं। खासकर, वे देश ऐसा करने की ताक में लगे रहते हैं जो भारत को एक मजबूत सरकार चुनते हुए नहीं देखना चाहते हैं।

तकनीकी हस्तक्षेपों जैसे वॉटरमार्किंग, ब्लॉकचेन या क्रिप्टोग्राफी मतदाताओं की धारणा प्रभावित करने वाले डीपफेक पर अंकुश लगाने में कारगर नहीं होते हैं। भ्रामक खबरों का प्रसार अधिक होने की स्थिति में मानव की सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित होती है जिसका असर यह होता है कि प्रामाणिक खबरों पर सनसनी पैदा करने वाली फर्जी सामग्री का दबदबा बढ़ जाता है। हालांकि, यह भी सच है कि डीपफेक का कोई पुख्ता इलाज नहीं है मगर तकनीक, नियमन एवं संचालन चुनावों पर इनके असर को कम कर सकता है।

एक प्रभावी तरीका यह हो सकता है कि सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाली सामग्री पर लगातार नजर रखी जाए और जब भी कोई फर्जी खबर या सामग्री सामने आए उन्हें तत्काल समय रहते हटा दिया जाए। ऑडियो-वीडियो सामग्री में छेड़-छाड़ पकड़ने के लिए एआई तकनीक मौजूद हैं मगर असल चुनौती सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में प्रकाशित होने वाली सामग्री की वैधता की पहचान वास्तविक समय में करने की है।

एक व्यावहारिक कदम यह हो सकता है कि ऐसी पोस्ट पर नजर रखी जाए जो असाधारण तेजी से अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच रही हैं। निर्वाचन आयोग ऐसी संदेहास्पद पोस्ट की पहचान के लिए एक निश्चित सीमा तय कर सकता है। चुनाव से पहले इस रणनीति की पहचान के लिए आयोग अग्रणी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) की मदद ले सकता है।

आयोग फर्जी सामग्री की जांच करने वाली तकनीक (फेककैचर टेक्रनोलॉजी) उपयोग में लाने की संभावनाएं भी तलाश सकता है। यह तकनीक वास्तविक समय में फोटोप्लेथिमोग्राफी का इस्तेमाल कर भ्रामक एवं फर्जी वीडियो की पहचान कर सकता है।

डीपफेक के खिलाफ अभियान तेज करने के लिए, खासकर चुनावों के संदर्भ में, नियामकीय खामियों को दूर करना महत्त्वपूर्ण है। सूचना-प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम में अप्रैल 2023 में हुए संशोधन के अनुसार केंद्र सरकार सोशल मीडिया एवं मध्यस्थों को भ्रामक वीडियो या आपत्तिजनक सामग्री हटाने का निर्देश दे सकती है।

निर्वाचन आयोग भ्रामक वीडियो की पहचान करता है और इन्हें केंद्र सरकार को इसे हटाने के लिए कहता है तो सरकार के लिए यह आग्रह मानना अनिवार्य है। मगर इसे लेकर कोई निश्चित समयसीमा नहीं होने से देरी होती है और इस दौरान सोशल मीडिया पर भ्रामक या आपत्तिजनक सामग्री का तेजी से प्रसार हो सकता है।

एक ठोस कदम के रूप में सोशल मीडिया कंपनियों को आदेश देने का सीधा अधिकार निर्वाचन आयोग को देने के लिए आईटी नियमों में संशोधन किए जा सकते हैं। ये उपाय संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत चुनाव प्रक्रिया पर निगरानी, इस संबंध में आवश्यक निर्देश देने और पूरी प्रक्रिया पर नियंत्रण रखने के निर्वाचन आयोग के अधिकारों के अनुरूप बैठते हैं।

नियामकीय सुधार के अलावा भ्रामक एवं आपत्तिजनक सामग्री और वीडियो बनाने वालों के लिए जवाबदेही तय की जाना चाहिए। वर्तमान आईटी नियमों में ऐसी सामग्री हटाने का प्रावधान है मगर इन्हें बनाने वालों के लिए जुर्माने या दंड का प्रावधान नहीं है। भारतीय न्याय संहिता भ्रामक वीडियो बनाने वालों को उस स्थिति में जिम्मेदार मानता है जब उनकी गलत मंशा साबित हो जाती है। यानी यह सिद्ध करने की जिम्मेदारी अभियोजन पक्ष की बन जाती है।

इन घटनाओं में तेजी और इनके दायरे को देखते हुए किसी व्यक्ति की मंशा साबित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। लोगों को मूल सामग्री में बदलाव करने की सृजनात्मक एवं वैज्ञानिक आजादी दी जा सकती है मगर उन्हें ऐसी सामग्री में उनके द्वारा किए गए बदलाव की स्व-उद्घोषणा भी करनी चाहिए। इसका अनुपालन नहीं करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाना चाहिए। इससे भ्रामक वीडियो के प्रसार पर अंकुश लग सकता है।

इसके अलावा कानून में विदेश में बैठी इकाइयों द्वारा भारत के हितों को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ भी कदम उठाने का प्रावधान होना चाहिए। चुनौती इसलिए भी बढ़ जाती है कि ज्यादातर डीपफेक गुप्त पहचान वाली इकाइयां विदेश से अपलोड करती हैं। इसे रोकने के लिए एक वैश्विक गठबंधन पर काम शुरू हो चुका है। मगर भारत की भू-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए उन देशों से इस संबंध सहयोग की उम्मीद करना बेकार है जो ऐसी गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं।

एक अधिक व्यावहारिक समाधान यह हो सकता है कि डीपफेक अपलोड करने, इनकी जांच में सहयोग और आपत्तिजनक सामग्री त्वरित हटाने के लिए वैश्विक प्लेटफॉर्म के साथ सहयोग किया जा सकता है। एक अधिक कड़ा कदम यह हो सकता है कि आम चुनाव समाप्त होने तक जीएएन की उपलब्धता समाप्त कर दी जाए।

वर्ष 2024 के आम चुनाव के लिए डीपफेक एक बड़ा खतरा हैं। अगर इन्हें अपलोड करने से और इनका प्रसार नहीं रोका गया तो 2024 चुनाव पर डीपफेक का ठप्पा लग जाएगा। निर्वाचन आयोग के समक्ष कड़ी चुनौती है मगर इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसके पास उन कई देशों के लिए मिसाल बनने का अवसर है जहां इस साल चुनाव होने जा रहे हैं।

(लेखक पूर्व रक्षा सचिव और आईआईटी कानपुर में अतिथि प्राध्यापक हैं)

First Published - March 4, 2024 | 9:09 PM IST

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