यदि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) इस सप्ताह नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रखने का निर्णय करती है तो इसके लिए कोविड-19 वायरस के नए रूप ओमीक्रोन को दोष दिया जा सकता है। एक पखवाड़े पहले तक सबको यकीन था कि एमपीसी की इस सप्ताह होने वाली बैठक में रिवर्स रीपो दर में इजाफा किया जाएगा। चर्चा का विषय यह था कि यह इजाफा कितना होगा: क्या 40 आधार अंक इजाफे के साथ इसे 3.75 फीसदी किया जाएगा ताकि रीपो और रिवर्स रीपो दर के अंतर को कम किया जा सके? या फिर इसे दिसंबर और फरवरी 2022 में दो चरणों में बढ़ाया जाएगा और फिर अगले वित्त वर्ष में रीपो दर में इजाफा किया जाएगा?
रीपो दर वह दर है जिस पर आरबीआई व्यवस्था में नकदी डालता है और रिवर्स रीपो दर वह है जिसके माध्यम से वह नकदी निकालता है। रीपो दर नीतिगत दर है लेकिन नकदी अधिशेष की स्थिति में रिवर्स रीपो दर भी नीतिगत दर बन जाती है। रिवर्स रीपो दर में कोई भी बदलाव एमपीसी के दायरे में नहीं आता। अप्रैल 2020 से आरबीआई ने कम से कम 100 उपाय अपनाए जिनमें एमपीसी की बैठक से परे रिवर्स रीपो दर में कटौती भी शामिल रही।
दुनिया इस समय कोविड-19 वायरस के नए रूप से जूझ रही है ऐसे में आरबीआई शायद दरों में इजाफा न कर सके। आर्थिक सुधार के लिए सहयोगात्मक रहते हुए भी आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने बार-बार कहा है कि सामान्यीकरण की प्रक्रिया चरणबद्ध होगी और उसके आकलन के साथ अंजाम दिया जाएगा। यह सच है कि अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है लेकिन किसी को नहीं पता कि ओमीक्रोन कितना गंभीर है। मेरा मानना है कि दास सतर्कता बरतेंगे और फिलहाल दरों को नहीं बदलेंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि नीतिगत दरें अपरिवर्तित रहेंगी और रुख भी समायोजन वाला रहेगा।
आरबीआई पहले ही अतिरिक्त शिथिल मौद्रिक नीति को समेटना शुरू कर चुका है। यह प्रक्रिया अगस्त में आरंभ हुई जब केंद्रीय बैंक ने 14 दिन के वैरिएबल रेट रिवर्स रीपो (वीआरआरआर) नीलामी का आकार दो गुना कर दिया। इसका आकार दो लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर चार लाख करोड़ रुपये किया गया। अक्टूबर में इसे फिर से बढ़ाना शुरू किया गया और दिसंबर में एमपीसी की बैठक के पहले तक इसे तीन गुना बढ़ाकर छह लाख करोड़ रुपये कर दिया गया। वीआरआरआर नीलामी ने व्यवस्था से अतिरिक्त नकदी निकाली और आरबीआई ने अक्टूबर में अपना द्वितीयक बाजार का सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (जी-सैप) समाप्त कर दिया। यह क्वांटिटेटिव ईजिंग का भारतीय स्वरूप था। अप्रैल और सितंबर के बीच यानी चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में आरबीआई ने जी सैप के जरिये 2.37 लाख करोड़ रुपये डाले और गत वित्त वर्ष में मुक्त बाजार गतिविधियों की मदद से 3.1 लाख करोड़ रुपये डाले।
रिवर्स रीपो दर भले ही 3.35 फीसदी है लेकिन आरबीआई औसतन 3.85 फीसदी की दर से नकदी निकाल रहा है। यही वजह है कि आरबीआई के पास फरवरी तक प्रतीक्षा करने का अवसर है ताकि दरों में इजाफे को औपचारिक रूप दिया जा सके। एमपीसी की अक्टूबर में आयोजित बैठक से अब तक क्या बदला है?
दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने दरों में इजाफा शुरू कर दिया है और जिन्होंने अब तक ऐसा नहीं किया है उन्होंने अपना रुख आक्रामक किया है। ब्राजील, रूस, दक्षिण अफ्रीका, पोलैंड और न्यूजीलैंड समेत कम से कम 10 केंद्रीय बैंकों ने दरें बढ़ाई हैं।
नवंबर के मध्य में अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 120 अरब डॉलर के मासिक परिसंपत्ति खरीद कार्यक्रम 15 अरब डॉलर की कमी की। दिसंबर के मध्य में यह इसमें इतनी ही कमी और करेगा। ऑस्ट्रेलिया के केंद्रीय बैंक ने भी महामारी के दौरान शुरू विस्तारवादी रुख को कम किया।
ऐसे में इस सप्ताह आयोजित होने वाली एमपीसी बैठक में रिवर्स रीपो दर में इजाफे की आशा थी। कोविड-19 में ताजा इजाफे के बाद हालात बदल गए हैं। इस बीच भारतीय अर्थव्यवस्था ने तेज वृद्धि हासिल की और जुलाई-सितंबर तिमाही में यह 8.4 फीसदी की अप्रत्याशित गति से विकसित हुई। यह लगातार चौथी तिमाही है जब सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई। इससे पहले वर्ष 2021की दो शुरुआती तिमाहियों में गिरावट देखने को मिली थी। जीडीपी के ताजा आंकड़े बताते हैं कि निजी खपत में भी सुधार हुआ है लेकिन सेवा क्षेत्र की वृद्धि पिछड़ी रही। इस बीच वायरस के नए रूप के सामने आने के बाद यात्रा और गतिविधियों पर प्रतिबंध सेवा क्षेत्र को प्रभावित करते रहेंगे।
खुदरा मुद्रास्फीति सितंबर के 4.35 फीसदी से बढ़कर अक्टूबर में 4.48 फीसदी हो गई। यह आरबीआई के दायरे में है लेकिन खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें चिंता का विषय हैं। पेट्रोल और डीजल पर केंद्र द्वारा उत्पाद शुल्क और राज्यों द्वारा मूल्यवद्र्धित कर में कमी करने से कुछ राहत मिलेगी लेकिन ईंधन कीमतों में बढ़ोतरी का प्रभाव फिलहाल तो महसूस हो रहा है। मूल मुद्रास्फीति जिसका संबंध गैर खाद्य और गैर तेल वस्तुओं से है, वह नवंबर में बढ़कर 5.8 फीसदी हो गई। अगस्त और सितंबर में वह 5.6 फीसदी पर स्थिर थी। ओमीक्रोन के आगमन के बाद कच्चे तेल की कीमतों में कमी का मुद्रास्फीति पर सकारात्मक असर होना चाहिए लेकिन हमें नहीं पता कि इसका लाभ उपभोक्ताओं को कब और कैसे मिलेगा? कुल मिलाकर आरबीआई के लिए मुद्रास्फीति को अस्थायी करार देना मुश्किल होगा। अक्टूबर की नीति में आरबीआई ने वर्ष के मुद्रास्फीतिक अनुमान को 5.7 फीसदी से कम करके 5.3 फीसदी कर दिया था लेकिन कई लोग इस अनुमान को जोखिम भरा मानते हैं। इसके बावजूद फिलहाल तो यही लग रहा है कि आरबीआई मौजूदा दरों के साथ यथास्थिति बरकरार रखेगा और महामारी की उभरती तस्वीर पर भी निगाह जमाए रखेगा। यदि तीसरी लहर नहीं आती है तो फरवरी में दरों में इजाफा तय है।
(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक, लेखक एवं जन स्मॉल फाइनैंस बैंक के वरिष्ठ परामर्शदाता हैं)
