भविष्यवाणी करना खतरे से खाली नहीं होता, वह भी तब जबकि चारों ओर उथल पुथल मची हो।
फिर भी यह गौर फरमाने लायक है कि जब अधिकांश भारतीय भविष्यवक्ता (सरकार के भीतर भी और बाहर के लोग भी) कह रहे थे कि मौजूदा वित्त वर्ष में विकास दर 8 फीसदी से ऊपर रहेगी, उसी समय कई अंतरराष्ट्रीय भविष्यवक्ताओं ने यह अनुमान लगाना शुरू कर दिया था कि विकास दर 7 फीसदी से ऊपर ही रह सकती है।
हाल के हफ्तों में प्रधानमंत्री ने आर्थिक हालात पर जो बयान दिए हैं, वे काफी हद तक सही साबित हुए हैं। उन्होंने ही हाल में यह संभावना व्यक्त की है कि मौजूदा वर्ष में विकास दर 7 से 7.5 फीसदी के बीच रह सकती है। पहली बार किसी भारतीय ने विकास दर इतनी कम रहने का अनुमान व्यक्त किया है।
वहीं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा फंड ने एक महीने के अंतराल में ही अगले वर्ष के लिए विकास दर को 6.9 फीसदी से घटाकर 6.3 फीसदी कर दिया है। भविष्यवक्ता जिस तेजी के साथ विकास दर के अनुमान को कम करते आ रहे हैं उससे तो यही लगता है कि भारतीय भविष्यवक्ता सच्चाई जानते हैं पर उसके बाद भी उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है। पर शायद समय आ गया है कि हम बुरी खबर को स्वीकार करने का दम दिखाएं।
वित्तीय संकट ने अमेरिका में 2007 में ही दस्तक दे दी थी, पर 15 सितंबर 2008 को जब लीमन ब्रदर्स धराशायी हुआ तो इस संकट के स्पष्ट संकेत मिल गए। भारत में तो पहली चार तिमाहियों (जुलाई 2007 से जून 2008) में इस वित्तीय संकट को लेकर कोई खास हो हल्ला नहीं मचा और जो खबरें आ रही थीं, वे उत्साहजनक ही थीं (अप्रैल-जून तिमाही में विकास दर 7.9 फीसदी थी) और अगर कोई मुद्दा सबसे अधिक परेशान कर रहा था तो वह महंगाई था।
उसके बाद अचानक से बदलाव आया: अगस्त में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में गिरावट दर्ज की गई, जुलाई-सितंबर अवधि में कारोबारी मुनाफे में 35 फीसदी की जोरदार गिरावट दर्ज की गई। और इसके साथ ही मटियामेट हुआ कारोबारी विश्वास। कच्चे तेल की कीमतें जुलाई में उफान पर थीं और फिर तीन महीनों में ही इसमें 60 फीसदी की गिरावट आ गई।
शायद याद होगा कि जुलाई में ही आरबीआई ने मौद्रिक नीतियों की घोषणा के दौरान ब्याज दरों को आश्चर्यजनक रूप से ऊपर कर दिया था। पर अक्टूबर के हालात को देखकर लगता है कि जुलाई-अगस्त-सितंबर के दौरान स्थितियां फिर भी ठीक ठाक थीं। ज्यादातर ऑटोमोबाइल कंपनियों के बिक्री के आंकड़े बिगड़ चुके हैं।
रिलायंस अपनी नई रिफाइनरी की शुरुआत करने में कोई हड़बड़ी नहीं दिखा रही है और टेक्सटाइल से लेकर हीरे की कटिंग करने वाली कंपनियों, ट्रक से लेकर एयरलाइंस कंपनियों और निवेश बैंकों से लेकर अचल संपत्ति क्षेत्र में छंटनी का दौर शुरू हो चुका है। म्युचुअल फंडों के वित्त प्रबंधन में 20 फीसदी की गिरावट आ चुकी है, होटलों के कारोबार में भी 20 फीसदी की गिरावट आ चुकी है।
हालांकि वास्तविक स्थिति इससे कहीं बदतर हो सकती है। जहाज भाड़ा करीब 90 फीसदी तक गिर चुका है और अचल संपत्ति क्षेत्र में कारोबार आधे से भी कम हो चुका है। वित्तीय महकमे में एक हल्की आंधी से जिस संकट की शुरुआत हुई थी अब वह इस अर्थव्यवस्था के लिए झकझोर कर रख देने वाला झंझावात बन चुका है।
अगर आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो इस साल के पहले 5 महीनों में औद्योगिक विकास दर केवल 5 फीसदी रही थी, जबकि एक साल पहले यह 10 फीसदी थी। अगर बचे हुए 7 महीनों में हालात नहीं सुधरते हैं तो औद्योगिक विकास और गिर सकता है।
कृषि विकास दर भी 3 फीसदी से अधिक रहने की संभावना नहीं है। याद रहे कि इन दोनों क्षेत्रों का देश की अर्थव्यवस्था में करीब 45 फीसदी का योगदान रहता है और इस साल जीडीपी के विकास में इनकी हिस्सेदारी 2 फीसदी से भी कम रहेगी। पर अगर समग्र विकास दर 7 फीसदी रहनी है तो इसके लिए सेवा क्षेत्र में 9 फीसदी की विकास दर जरूरी होगी।
पर परेशानी यह है कि सभी महत्त्वपूर्ण सेवा क्षेत्रों (होटल, कारोबार, परिवहन, दूरसंचार, सूचना तकनीक, बीमा, वित्तीय सेवा और निर्माण) में मंदी का रुख है। वेतन आयोग के वरदहस्त की वजह से केवल सरकारी सेवा क्षेत्रों में विकास की संभावना दिख रही है। कुल मिलाकर ऐसे माहौल में प्रधानमंत्री ने विकास दर का 7 से 7.5 फीसदी का जो निचला दायरा रखा है, उसे पा लेना भी मुश्किल लगता है।
चाहे हम जितने भी आशावान बन लें पर इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि हो सकता है आईएमएफ ने अगले साल के लिए जो भविष्यवाणी की है वह इस साल ही पूरी हो जाए।