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व्यक्तिगत आय कर संग्रह में वृद्धि उत्साहजनक, लेकिन टिकाऊपन पर संशय

Personal income tax में निरंतर वृद्धि इस बात पर निर्भर करेगी कि करयोग्य आर्थिक गतिविधियों का विस्तार स्थायी रूप से होता रहे। बता रही हैं

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आर कविता राव   
Last Updated- July 03, 2025 | 11:31 PM IST

गत 19 जून तक के प्रत्यक्ष कर संग्रह से संबंधित हालिया प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक संग्रह में नरमी आई है। जानकारी के मुताबिक विशुद्ध कर संग्रह पिछले वित्त वर्ष के कर संग्रह की तुलना में 1.39 फीसदी कम है। यह कमी कॉरपोरेशन कर संग्रह में कमी की बदौलत आई है। क्या यह अल्पावधि का उतारचढ़ाव है या इसमें कुछ अन्य कारक भी शामिल हैं? तीन प्रमुख करों कॉरपोरेट आय कर (सीआईटी), गैर कॉरपोरेशन या व्यक्तिगत आय कर (पीआईटी) और केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (सीजीएसटी) की राजस्व वृद्धि में वार्षिक बढ़ोतरी को ध्यान में रखें तो सीआईटी और सीजीएसटी से हासिल होने वाले राजस्व संग्रह की रफ्तार में कमी स्पष्ट रूप से देखने को मिली है।

सीआईटी में वृद्धि 2022-23 के 15 फीसदी से कम होकर 2024-25 में 8 फीसदी रह गई और समान अवधि में सीजीएसटी की वृद्धि 21 फीसदी से कम होकर 10 फीसदी रह गई। पीआईटी का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर रहा और इसमें क्रमश: 20 फीसदी और 17 फीसदी वृद्धि हुई। तिमाही कर-जीडीपी अनुपात में भी यह अंतर नजर आता है। इस लिहाज से देखें तो आंकड़े बताते हैं कि कॉरपोरेशन कर संग्रह में अस्थिरता है और इसमें करीब 3 फीसदी का उतार-चढ़ाव आता है। पीआईटी में सुधार का रुझान नजर आता है हालांकि उसमें भी कुछ अस्थिरता या मौसमी उतार-चढ़ाव देखा जा सकता है। इसकी तुलना में केंद्रीय जीएसटी से हासिल होने वाला राजस्व मामूली इजाफा दर्शाता है जबकि पिछली कुछ तिमाहियों में साफ तौर से इनमें वृद्धि की रफ्तार सुस्त पड़ी है।  

इन रुझानों से क्या समझ में आता है? पीआईटी में असमानुपातिक सुधार एक सकारात्मक घटना है जिसे समझने की जरूरत है। आयकर की बुनियाद में अभी भी वेतन, कारोबारी आय और पूंजीगत लाभ शामिल हैं। आकलन वर्ष 2023-24 की सालाना आय की रिपोर्ट बताती है कि कुल घोषित आय में वेतन की हिस्सेदारी 53.9 फीसदी है जबकि कारोबारी आय की हिस्सेदारी 29.7 फीसदी है। हालांकि बाद के वर्षों के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन आय की इन दो श्रेणियों में संभावित रुझानों को समझना जरूरी है।

डब्ल्यूटीडब्ल्यू सैलरी बजट प्लानिंग रिपोर्ट के वेतन संबधी रुझानों की जानकारी बताती है कि वर्ष 2021 में वेतन 8.5 फीसदी बढ़े, 2022 में 9.8 फीसदी, 2023 में 10 फीसदी और 2024 में 9.5 फीसदी। वर्ष 2025 का सर्वेक्षण बताता है कि वेतन में औसतन 9.5 फीसदी का इजाफा देखा जा सकता है। वेतन में यह वृद्धि भी पीआईटी में इजाफे के लिए जिम्मेदार है। अगर 2025 में वेतन में वृद्धि के अनुमान सही साबित होते हैं तो कर राजस्व को कोई भी जोखिम रोजगार में कमी से ही उत्पन्न होगा। यानी यह कारोबारी वृद्धि से भी जुड़ा है।  कारोबारी आय की बात करें तो मध्यम अवधि के एक कारक पर विचार करने की आवश्यकता है और वह है जीएसटी का प्रभाव। दो संभावित स्थितियां बन सकती हैं। पहली, जीएसटी की शुरुआत के कारण आर्थिक गतिविधियों का औपचारीकरण हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप आय कर के राजस्व संग्रह में सुधार हो सकता है। इसे स्तर सुधार के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि अब अनौपचारिक आय अब औपचारिक अर्थव्यवस्था में शामिल हो रही है। एक बार प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद राजस्व में उच्च वृद्धि के लिए प्रोत्साहन कम हो जाएगा।

इसके अलावा अर्थव्यवस्था में उच्च वृद्धि कर ढांचे को युक्तिसंगत बनाए जाने के बाद बेहतर कार्य कुशलता का नतीजा हो सकती है। इसे पीआईटी में सुधार के अलावा जीएसटी संग्रह में सुधार में भी नजर आना चाहिए भले ही जीएसटी और पीआईटी के साथ जीडीपी के अनुपात में ज्यादा बदलाव न आए। कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा आयकर रिटर्न में उल्लिखित कारोबारी आय को मिलाकर देखें तो आकलन वर्ष 2021-22 से आकलन वर्ष 2023-24 के बीच इसमें 12-13 फीसदी का सुधार हुआ। इससे संकेत मिलता है कि जीएसटी राजस्व और व्यावसायिक आय के रुझान एक दूसरे के अनुरूप ही हैं और जीडीपी की नाममात्र की वृद्धि की तुलना में मामूली रूप से अधिक हैं। इसके उलट सीआईटी के लिए कर-जीडीपी अनुपात में मामूली गिरावट देखी गई है।  

इन आकलन के आधार पर पीआईटी में टिकाऊ वृद्धि कर योग्य आर्थिक गतिविधियों के टिकाऊ विस्तार पर निर्भर करेगी। इससे रोजगार में इजाफा होगा, वेतन संबंधी आय में मदद मिलेगी और कारोबारी आय में भी इजाफा होगा। हालांकि, इस मोर्चे पर उभरने वाली कुछ चुनौतियों का जिक्र आवश्यक है:

1. वैश्विक आर्थिक माहौल में अनिश्चितता बरकरार है और वह समय-समय पर बढ़ती रहती है। अमेरिका की शुल्क संबंधी बातों ने वैश्विक मांग और आपूर्ति श्रृंखला के संभावित पुनर्गठन को लेकर अनिश्चितता का माहौल बनाया है। अल्पावधि में ये बदलाव उथलपुथल पैदा कर सकते हैं भले ही मध्यम अवधि में इससे अवसर तैयार हों। इजरायल और ईरान के बीच हालिया संघर्ष अनिश्चितता का एक नया पहलू जोड़ता है। पिछले सप्ताह के दरमियान हम बढ़ी हुई अनिश्चितता की स्थिति से असहज शांति की ओर बढ़ रहे हैं। यह भी स्पष्ट नहीं है कि युद्ध विराम कायम रहेगा या नहीं। ऐसे संघर्ष का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। इसका असर कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और मुद्रास्फीति में इजाफे के माध्यम से होगा।

2. भारतीय रिजर्व बैंक ने रीपो दर में 50 आधार अंकों की तथा नकद आरक्षित अनुपात में 100 आधार अंकों की कमी की है। उम्मीद है कि ये बदलाव अर्थव्यवस्था में निवेश को बढ़ावा देंगे। हालांकि, मुद्रास्फीति संभावनाओं में कोई भी बदलाव पुनर्विचार को बल देगा।

3. केंद्र और राज्य सरकारों ने कई नीतिगत पहल की हैं। इनमें नि:शुल्क भोजन, स्वास्थ्य सेवा, नि:शुल्क बिजली और कुछ राज्यों में बस पास तक शामिल हैं। इसके अलावा बड़े पैमाने पर नकदी हस्तांतरण योजनाएं भी शुरू की गई हैं। ऐसी पहलों के साथ उम्मीद है कि उपलब्ध आय का इस्तेमाल अन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जा सकेगा जिससे कर योग्य वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ेगी। बहरहाल जीएसटी राजस्व में स्थिर गति से हो रही वृद्धि ऐसे किसी प्रोत्साहन का प्रमाण नहीं देती है। इसके अलावा अगर इनमें से कुछ योजनाओं की समीक्षा की जाए और कुछ वर्षों में उन्हें वापस ले लिया जाए तो इसका जीएसटी राजस्व पर नकारात्मक असर हो सकता है।

4.आखिर में, चालू वित्त वर्ष में व्यक्तियों के लिए रियायत की सीमा बढ़ाई गई है। अब 12 लाख रुपये तक की आय वाले लोगों को आय कर नहीं चुकाना होगा। इसके अलावा पुरानी कर व्यवस्था और नई व्यवस्था के तहत देनदारियों का अंतर बढ़ गया है। पुरानी व्यवस्था से अगर बड़ी संख्या में लोग नई व्यवस्था में गए तो आय कर संग्रह में कमी आएगी। दूसरे शब्दों में कहें तो व्यक्तिगत आय कर संग्रह की वृद्धि में धीमापन आना निश्चित है।

(लेखिका एनआईपीएफपी, नई दिल्ली की निदेशक हैं। ये उनके निजी विचार हैं)  

First Published : July 3, 2025 | 11:16 PM IST