भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति इस सप्ताह जब नए वित्त वर्ष की पहली बैठक में मिलेगी तो उसे मुद्रास्फीति से जुड़े अनुमानों और नीतिगत प्रतिक्रिया का समायोजन करना होगा।
अपनी पिछली बैठक में एमपीसी ने अनुमान जताया था कि जनवरी-मार्च तिमाही में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर 5.7 फीसदी रही। बहरहाल, अब तक इसके नतीजे चौंकाने वाले रहे हैं और दरें एक बार फिर तय दायरे के ऊपरी स्तर से भी ऊपर निकल गई हैं।
इस तिमाही का औसत भी पूर्व अनुमानित स्तर से अधिक होने का अनुमान है। मुद्रास्फीति के हालात को देखते हुए और निरंतर इजाफे को ध्यान में रखते हुए बाजार इस बात पर भी नजर रखेगा कि केंद्रीय बैंक चालू वित्त वर्ष के लिए अपने मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान को किस प्रकार समायोजित करता है। फिलहाल उसे उम्मीद है कि 2023-24 में औसत मुद्रास्फीति की दर 5.3 फीसदी रहेगी।
चूंकि मुद्रास्फीति के वास्तविक नतीजे अनुमान से अधिक रहे हैं इसलिए एमपीसी को नीतिगत दरों को समायोजित करना होगा। बड़ी तादाद में अर्थशास्त्री और विश्लेषक यह मान रहे हैं कि दरें तय करने वाली समिति रीपो दर में 25 आधार अंकों का और इजाफा करेगी।
समिति ने चालू चक्र में अब तक दरों में 250 आधार अंकों का इजाफा किया है और एक और इजाफे की पर्याप्त वजह मौजूद है क्योंकि मुद्रास्फीति की दर एक बार फिर तय दायरे की ऊपरी सीमा पार कर चुकी है। ऐसे में केंद्रीय बैंक के लिए अपनी लड़ाई जारी रखना आवश्यक है। शीर्ष दर के अलावा मूल मुद्रास्फीति भी अडिग बनी हुई है और वह भी केंद्रीय बैंक को चिंतित कर रही है।
इसके अलावा हालांकि पिछले अनुमान में 2023-24 में मुद्रास्फीति की दर के 5.3 फीसदी रहने की बात कही गई थी। दरों के पहली तिमाही के 5 फीसदी से बढ़कर चौथी तिमाही में 5.6 फीसदी हो जाने का अनुमान जताया गया था। यह दर 4 फीसदी के लक्ष्य से बहुत अधिक है।
वैश्विक कारकों की बात करें तो मिलाजुला परिदृश्य नजर आता है। यूरो क्षेत्र में मुद्रास्फीति की दर फरवरी के 8.5 फीसदी से कम होकर मार्च में 6.9 फीसदी हो गई। ऐसा मोटे तौर पर इसलिए हुआ कि ईंधन कीमतों में गिरावट आई। बड़े तेल उत्पादकों के उत्पादन में कमी करने के ताजा निर्णय के बाद यह स्थिति उलट भी सकती है। मूल मुद्रास्फीति भी 5.7 फीसदी के नए उच्चतम स्तर पर पहुंच रही है। इससे कीमतों के दबाव की प्रकृति का अंदाजा मिलता है और यह भी कि यूरोपीय केंद्रीय बैंक को दो फीसदी के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए किस प्रकार के प्रयास करने होंगे।
इस बीच अमेरिका में बैंकिंग जगत में मची उथलपुथल के बावजूद फेडरल रिजर्व ने मार्च में नीतिगत दरें बढ़ाने का निर्णय लिया। इससे संकेत गया कि वह मुद्रास्फीति और बैंकिंग क्षेत्र की समस्याओं से अलग-अलग निपटेगा। बहरहाल, बैंकिंग व्यवस्था की दिक्कत आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है और यह मौद्रिक नीति सख्ती की आवश्यकता को सहज करेगी। आधिकारिक अनुमान बताते हैं कि फेडरल रिजर्व इस वर्ष नीतिगत दरों में 25 आधार अंकों का इजाफा कर सकता है।
फेडरल रिजर्व द्वारा अनुमान से कम मौद्रिक सख्ती के कारण मुद्रा बाजार पर दबाव कम होगा और भारत जैसे देशों को बाहरी खाते के बचाव में मदद मिलेगी। चालू खाते के घाटे में कमी के साथ ही इससे रिजर्व बैंक को मुद्रास्फीति पर नियंत्रण कायम करने पर ध्यान देने में मदद मिलेगी।
मुद्रास्फीति के इस परिदृश्य में इस सप्ताह एमपीसी द्वारा दरों में इजाफा किया जाना संभव नजर आता है। बाद में वह वृहद मौद्रिक स्थितियों के आधार पर इजाफा रोककर उसके असर का आकलन कर सकता है। वर्तमान और अनुमानित स्तर 4 फीसदी के लक्ष्य से काफी ऊपर हैं।