सभी की निगाहें फिलहाल भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के इस निर्णय पर जमी हैं कि वह टाटा संस को सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध होने के लिए कहता है या नहीं। इस्पात से सॉफ्टवेयर तक का कारोबार करने वाले टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस के बाजार में कदम रखने की नियामक द्वारा तय समयसीमा 30 सितंबर को समाप्त हो गई। पिछले हफ्ते मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक समाप्त होने के बाद संवाददाता सम्मेलन में भी टाटा संस को लेकर कौतुहल दिखा। आरबीआई गवर्नर से अन्य सवालों के साथ-साथ टाटा संस की सूचीबद्धता को लेकर भी सवाल पूछा गया। टाटा संस को सूचीबद्धता से छूट दी गई है या नहीं इस सवाल पर कुछ बताए बिना गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बस इतना कहा कि जिस इकाई के पास पंजीकरण है वह इसके रद्द होने होने तक कारोबार कर सकती है।
लेकिन, क्या टाटा संस का भविष्य वास्तव में इस बात पर निर्भर करता है कि आरबीआई से उसे सूचीबद्धता पर रियायत मिलती है या नहीं? लगता तो ऐसा ही है क्योंकि सभी की निगाहें केंद्रीय बैंक फैसले पर टिकी हुई हैं। हालांकि, वास्तविकता इतनी सरल नहीं है। पहले इस मामले से संबंधित घटनाक्रम की समयसीमा पर विचार करते हैं। ठीक तीन साल पहले अक्टूबर 2022 में आरबीआई ने टाटा संस को ऊपरी स्तर की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी के रूप में वर्गीकृत किया था और इसे इस साल सितंबर के अंत तक सूचीबद्ध होने का निर्देश दिया था।
समयसीमा नजदीक आते देख टाटा संस ने अपनी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी-कोर इन्वेस्टमेंट कंपनी का पंजीकरण सौंपने के लिए आवेदन कर दिया। इसके बाद पिछले साल अगस्त में अपना पूरा ऋण चुका दिया जो गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी-कोर इन्वेस्टमेंट कंपनी की श्रेणी से बाहर आने की शर्त है। वर्ष 2024 में टाटा संस ने सूचीबद्धता से छूट पाने के लिए यह कदम उठाया था। इससे संबंधित आवेदन आरबीआई के पास लंबित है।
अगर आप इसे बारीकी से देखें तो वर्ष 2022 से 2025 तक की अवधि टाटा समूह के इतिहास में लंबी साबित हुई है और इन वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। उदाहरण के लिए 2022 में संभावित सूचीबद्धता टाटा संस के लिए एक बड़ी चिंता थी और 2024 में वह इससे बचने के तरीके तलाश रही थी मगर अब इस संभावना के प्रति उसका झुकाव दिख रहा है।
टाटा संस के सबसे बड़े शेयरधारक टाटा ट्रस्ट्स में सूचीबद्धता के मुद्दे पर मतभेद उभर आए हैं और इसके न्यासी यह तय करने के लिए मतदान का सहारा ले रहे हैं कि टाटा संस के निदेशकमंडल (बोर्ड) में टाटा ट्रस्ट के नामित व्यक्ति कौन होंगे और किन्हें बदला जाना चाहिए। इस पृष्ठभूमि में टाटा संस स्वयं को टाटा ट्रस्ट्स से बचाना चाहेगी क्योंकि वह (टाटा ट्रस्ट्स) समूह की होल्डिंग कंपनी पर निगरानी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। टाटा ट्रस्ट्स की टाटा संस में लगभग 66 फीसदी हिस्सेदारी है।
आखिर अक्टूबर 2022 से ऐसा क्या बदल गया है जब सूचीबद्धता के संबंध में आरबीआई का आदेश आया था या मार्च 2024 से जब टाटा संस ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी-कोर इन्वेस्टमेंट कंपनी के पंजीकरण लाइसेंस लौटाने के लिए नियामक को आवेदन सौंपा था? रतन टाटा के कार्यकाल में टाटा ट्रस्ट्स (जिसके वह चैयरमैन थे) में मतभेद होने का कोई संकेत नहीं था इसलिए अक्टूबर 2024 में उनके देहांत तक सबसे बड़े शेयरधारक टाटा ट्रस्ट्स और होल्डिंग कंपनी टाटा संस के विचार सूचीबद्धता पर समान रहे होंगे यानी एक निजी इकाई बनी रहना और सार्वजनिक सूचीबद्धता से जुड़ी जटिलताओं से बचना। इन चीजों को परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए टाटा संस ने हाल के महीनों में सूचीबद्धता पर कोई बयान नहीं दिया है। हालांकि, टाटा ट्रस्ट्स ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह इस तरह की सूचीबद्धता के खिलाफ है और एक प्रस्ताव के माध्यम से टाटा संस को इस मामले में सलाह भी दी है।
रतन टाटा के कार्यकाल में टाटा ट्रस्ट्स एक सुर में बात कर रहा था मगर टाटा समूह के मानद चेयरमैन के रूप में उनके कार्यकाल में 400 अरब डॉलर के बाजार पूंजीकरण वाले समूह ने 2016 में साइरस मिस्त्री को टाटा संस के अध्यक्ष पद से हटाने को लेकर एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। यह कॉरपोरेट जगत में सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक थी और इसका कारण मिस्त्री के कार्यकाल में समूह में कथित कुप्रबंधन और दोनों पक्षों (टाटा और शापूरजी पालोनजी समूह) के बीच विश्वास की कमी थी। मिस्त्री ( जिनकी 2022 में एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी) टाटा संस में दूसरे सबसे बड़े अंशधारक शापूरजी पालोनजी समूह के उत्तराधिकारी थे। शापूरजी पालोनजी समूह टाटा संस की सूचीबद्धता का पुरजोर समर्थन करता है क्योंकि इससे उसे अपनी हिस्सेदारी (वर्तमान में 18 फीसदी) कम कर अपना कारोबार पुनर्जीवित करने में मदद मिल सकती है।
अगर टाटा संस वास्तव में सूचीबद्धता का विकल्प चुनती है तो इस बात की पूरी गुंजाइश है कि वह अपने सबसे बड़े शेयरधारकों के नियंत्रण के प्रयासों को रोकने में सक्षम होगी। बेशक, यह अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि टाटा संस के सूचीबद्ध होने की स्थिति में कौन कितना हिस्सा कम करेगा या क्या इसके बाजार में आने के रास्ते में कानूनी उलझनें होंगी या नहीं मगर यह जानना अहम है कि चेयरमैन एन चंद्रशेखरन के नेतृत्व में टाटा संस क्या चाहती है। सूचीबद्धता पर टाटा संस के रुख पर स्थिति साफ होने से आरबीआई के रुख से इतर समूह के भविष्य को बेहतर ढंग से परिभाषित करने में मदद मिलेगी। फिलहाल, गेंद आरबीआई के पाले में है और सबकी नजरें उसी पर टिकी हुई हैं।