वह केवल अभिनेता नहीं हैं। वह एक प्रशिक्षित भरतनाट्यम नर्तक, एक गायक, नृत्य निर्देशक और फिल्म निर्देशक हैं। वह इकलौते व्यक्ति हैं जिन्हें 19 फिल्मफेयर पुरस्कार मिल चुके हैं जो किसी भारतीय के सर्वाधिक पुरस्कार हैं। उन्होंने जिन फिल्मों में काम किया उनमें से सात को ऑस्कर की विदेशी भाषा की फिल्म श्रेणी में शॉर्टलिस्ट किया गया था। वह अंग्रेजी और कन्नड़ सहित करीब आधा दर्जन भाषाओं को बोलने में दक्ष हैं। हालांकि, उनकी राजनीति भ्रमित करने वाली है। उनका चुनावी प्रदर्शन भी अपेक्षा से कमजोर है। कमल हासन जल्द ही द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) की सहायता से राज्य सभा सदस्य बन जाएंगे, हालांकि उनकी पार्टी मक्काल नीति माइम (एमएनएम) पूरी तरह विफल साबित हुई है।
वर्ष 2019 के लोक सभा चुनाव में उनकी पार्टी को 3.7 फीसदी मत मिले थे। 2021 के विधान सभा चुनावों में ये मत घटकर 2.6 फीसदी रह गए। हासन खुद कोयंबत्तूर (दक्षिण) सीट से भाजपा की वनति श्रीनिवासन से हार गए। एमएनएम को 2022 में तमिलनाडु के नगर निकाय चुनावों में एक भी सीट नहीं मिली।
तमिलनाडु के कई अन्य अभिनेता राजनेताओं की तरह उनकी कहानी भी राज्य के मतदाताओं के बढ़ते विवेक की परिचायक है। वे उन्हें अभिनेता के रूप में पसंद करते हैं लेकिन राजनेता के रूप में बहुत अधिक नहीं। उनकी पार्टी का प्रदर्शन उस आम धारणा को भी ध्वस्त करता है कि तमिलनाडु में सिनेमा राजनीति पर हावी रहता है। अतीत में भी शिवाजी गणेशन जैसे लोकप्रियता के शिखर पर रहे सितारों को भी जब लगा कि वे सिनेमा से बहुत सहजता से राजनीति में आ जाएंगे तो उनको भी मुंह की खानी पड़ी। जिन लोगों को लगता है कि सितारा हैसियत राज्य की राजनीति पर हावी है, उन्हें यह याद रखने की आवश्यकता है कि वे सभी सितारे जो राजनीति में कामयाब रहे, वे राजनीति में आने से बहुत पहले से उसका हिस्सा थे। तमिलनाडु की राजनीति में केवल खूबसूरत चेहरा ही काफी नहीं है।
हासन ने एमएनएम की शुरुआत 2018 में की थी। क्यों की थी यह स्पष्ट नहीं है लेकिन विजय, सीमन, विजयकांत, रजनीकांत और अपने पहले के अन्य अभिनेताओं की तरह शायद उनको भी लगा कि वह खुद को उन लोगों के सामने एक विकल्प के रूप में पेश कर सकते हैं जो द्रमुक और अखिल भारतीय अन्ना द्रमुक में से किसी को पसंद नहीं करते। अपने आप में यह आंकड़ा छोटा नहीं है। तमिलनाडु की मतदान करने वाली आबादी में करीब 17 से 18 फीसदी दोनों द्रविड़ दलों के खिलाफ मतदान करती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए द्रमुक और अखिल भारतीय अन्ना द्रमुक दोनों छोटे दलों के साथ गठबंधन कर अपना दायरा व्यापक करना चाहते हैं। उदाहरण के लिए सत्ताधारी द्रमुक फिलहाल आठ दलों के साथ गठबंधन में है। इसे चलाना आसान नहीं है।
हासन घोषित रूप से नास्तिक हैं लेकिन ज्यादातर राजनीतिक मुद्दों पर उनका रुख लचीला रहा है। उन्होंने दोनों द्रविड़ दलों की कई नीतियों की आलोचना के साथ शुरुआत की थी लेकिन धीरे-धीरे उनकी यह समझ बनी कि द्रमुक के साथ गठबंधन उनके अनुकूल है। 2024 के लोक सभा चुनाव के दौरान हुए समझौते के तहत उन्होंने चुनावों से दूरी बनाई और खुद को द्रमुक का प्रचार करने तक सीमित रखा। बदले में उन्हें राज्य सभा भेजने का वादा किया गया था। कर्नाटक बनाम तमिलनाडु के मौजूदा गतिरोध में अपने रुख (यह कि कन्नड़ का जन्म तो तमिल से ही हुआ है) से उन्होंने तमिलनाडु में कुछ मजबूती हासिल की है।
द्रमुक के लिए दोनों हाथों में लड्डू जैसी स्थिति है। वह नहीं चाहेगी कि एक भी वोट उससे दूर जाए। जो लोग उसकी नीतियों को स्वीकार नहीं करते उनके लिए वह अपने गठबंधन साझेदार की मदद से थोड़ा हल्का संस्करण पेश करती है। एमएनएम उनमें से ही एक है। जबकि एक कठोर संस्करण का प्रतिनिधित्व करने के लिए मरुमलारची द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम यानी एमडीएमके जैसा दल है जिसका नेतृत्व वाइको कर रहे हैं। वाइको श्रीलंका के तमिल मुक्ति चीतों के तगड़े समर्थक रहे हैं। उन्होंने पार्टी प्रमुख एम करुणानिधि द्वारा स्टालिन का कद बढ़ाए जाने के विरोध में द्रमुक छोड़ दी थी लेकिन बाद में इसके साथ आ गए।
द्रमुक इसे इस तरह देखता है कि एक राज्य सभा सीट हासन द्वारा प्रदत्त कौशल की कीमत की तुलना में बहुत छोटी चीज है। तमिलनाडु में 2026 में विधान सभा चुनाव होने हैं। वहां की जनता ने साबित किया है कि वे हासन को सुनना और देखना तो चाहते हैं (उनकी चुनावी सभाओं में भारी भीड़ उमड़ी) लेकिन चुनाव परिणाम बताते हैं कि उनमें से अधिकांश द्रमुक को वोट देते हैं।
तमिलनाडु की गठबंधन की राजनीति में हर वोट मायने रखता है। द्रमुक के लिए अगले चुनाव अस्तित्व की चुनौती की तरह हैं। अगर पार्टी हर अगले चुनाव में विपक्षी दल को जिताने की राज्य की परंपरा को बदल पाती है तो यह महत्त्वपूर्ण होगा। हासन से इस काम में मदद मांगी जाएगी। कर्नाटक का हालिया विवाद इसमें उनकी मदद करेगा।