इस सप्ताह के आरंभ में जब शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल यूरोप में दो सप्ताह की छुट्टियां बिताकर वापस आए तो उन्होंने पार्टी के सबसे महत्त्वपूर्ण जिलास्तरीय नेताओं की बैठक बुलाई। जब वह छुट्टियों पर थे तो ऐसी अटकलें सुनकर चकित थे कि शिअद और भारतीय जनता पार्टी (BJP) दोबारा एक हो सकती हैं। इसके साथ ही ये अटकलें भी लगाई जा रही थीं कि आगामी लोकसभा (Loksabha elections) चुनाव में दोनों दल कितनी-कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और यह भी कि कैबिनेट में कितने पदों की पेशकश की जाएगी।
दोनों दलों के नेताओं की मानें तो अब तक उनके बीच कोई सार्थक बातचीत नहीं हुई है। दोनों चिंतित हैं और समस्याएं बेशुमार हैं। पहली बात तो यह कि शिअद की राजनीतिक स्थिति खासी कमजोर है, हालांकि पार्टी इसे स्वीकार नहीं करना चाहती। हालांकि यह कहना अतिरंजित होगा कि पार्टी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। यह पार्टी गुरुद्वारों पर नियंत्रण रखती है और उसके साथ अत्यंत मुखर प्रवासी समुदाय है। पार्टी को धन की कोई कमी नहीं है।
लेकिन पार्टी 2017 और 2022 में लगातार दो विधानसभा चुनाव हार चुकी है और इस समय विधानसभा में उसके केवल तीन विधायक हैं। जालंधर लोकसभा सीट के लिए हुए हालिया उपचुनाव में उसकी समस्या स्पष्ट रूप से सामने आई: शिअद तीसरे स्थान पर रही जबकि भाजपा चौथे।
दोनों दलों को क्रमश:17.85 फीसदी और 15.19 फीसदी मत मिले थे
दोनों दलों को क्रमश:17.85 फीसदी और 15.19 फीसदी मत मिले। जबकि विजेता आम आदमी पार्टी को 34.05 फीसदी तथा कांग्रेस को 27.85 फीसदी वोट मिले। शिअद और भाजपा को मिलाकर 33.04 फीसदी मत मिले।
परंतु शिअद की अपनी शिकायतें भी हैं। एक समय उसकी मित्र और साझेदार रही भाजपा अब उसे बहुत नुकसान पहुंचा रही है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी (DSGMC) के प्रमुख मनजिंदर सिंह सिरसा, शिअद के पूर्व विधायक दीदार सिंह भट्टी, एसजीपीसी के सदस्य सुरजीत सिंह गढ़ी और कद्दावर अकाली नेता रहे स्वर्गीय गुरुचरन सिंह तोहड़ा के पोते कंवरवीर सिंह आदि सभी को भाजपा ने अपने पाले में कर लिया।
हालांकि भट्टी और कंवरवीर सिंह दोनों को 2022 के विधानसभा चुनाव में लड़ाया गया था और दोनों को पराजय मिली थी। सुरजीत सिंह गढ़ी शिअद की राजनीतिक मामलों की समिति तथा एसजीपीसी के सदस्य थे।
सुखदेव सिंह ढींडसा के शिअद (संयुक्त) का भाजपा के साथ गठबंधन है और शिअद के नेताओं का कहना है कि उनकी पार्टी भी भाजपा की ही देन है। संक्षेप में कहें तो भाजपा शिअद पर लगातार हमले कर रही है। भाजपा के अंदर की बात करें तो शिअद को लेकर दो तरह के विचार हैं।
केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने दोनों दलों के बीच नए सिरे से गठबंधन की संभावना को बार-बार खारिज किया है। जमीन की बात करें तो पंजाब में भाजपा की वृद्धि और विकास तथा उसकी प्रतिष्ठा को शिअद के साथ जुड़ाव के चलते झटका लगा है। कुछ अन्य लोग चिंता जताते हैं कि पंजाब में तथा बाहर भी आधार सिमट रहा है।
ऑस्ट्रेलिया में करीब दो लाख सिख
ऑस्ट्रेलिया में करीब दो लाख सिख हैं और उनकी आबादी देश की जनसंख्या का 0.8 फीसदी है। वहां की जनगणना के अनुसार पंजाबी ऑस्ट्रेलिया में सबसे तेज बढ़ती भाषा है। परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस वर्ष के आरंभ में ऑस्ट्रेलिया में जो आयोजन किया वहां कुल कितने सिख मौजूद थे? केवल छह।
भाजपा नेता कहते हैं कि सिखों की स्मृति बहुत दीर्घकालिक होती है। उन्होंने अभी तक जनरल डायर को माफ नहीं किया है जिसने सन 1919 में जलियांवाला बाग में गोलीबारी का आदेश दिया था। 2020-21 में भाजपा सरकार ने प्रदर्शनकारी किसानों का जिस तरह दमन किया था वह भी उन्हें याद है। ऐसे में भाजपा इन मुश्किल हालात से भी कुछ हासिल कर सकती है और शिअद से दूरी बनाकर रख सकती है लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि शिअद और भाजपा दोनों को एक दूसरे की आवश्यकता है।
भाजपा ने हाल ही में सुनील जाखड़ को पंजाब प्रदेश का अध्यक्ष बनाया है और यह बात इसी हकीकत की स्वीकारोक्ति है। जाखड़ हिंदू हैं और उन्होंने बमुश्किल कुछ महीने पहले भाजपा की सदस्यता ली। भाजपा ने अमरिंदर सिंह या किसी अन्य सिख नेता को यह पद नहीं दिया जो दशकों से पार्टी की सेवा कर रहे हैं। शिअद नेताओं का दावा है कि पार्टी में इस नियुक्ति को लेकर जबरदस्त असंतोष है। भाजपा के तमाम नेता कार्यकर्ता खुद इस पर खामोश हैं।
दोनों पूर्व सहयोगियों के बीच असंतोष के क्षेत्र बढ़ते जा रहे हैं। शिअद समान नागरिक संहिता के खिलाफ है। पुराने मुद्दे भी बने हुए हैं: देशद्रोह और हत्या जैसे मामलों में सजायाफ्ता लोगों मसलन बलवंत सिंह राजोआना की रिहाई पर निर्णय का लंबित होना। राजोआना पर पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या का दोष सिद्ध है उसे 2007 में ही फांसी की सजा का आदेश हो चुका है। गृह मंत्रालय बार-बार उसकी दया याचिका पर निर्णय टालता आ रहा है। कुछ अन्य लोग देशद्रोह के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं और 33 वर्षों से जेल में हैं।
भाजपा का अनकहा एजेंडा….राजनीति को गुरुद्वारों से अलग करना
भाजपा का अनकहा एजेंडा है राजनीति को गुरुद्वारों से अलग करना। फिलहाल वह आम आदमी पार्टी को लेकर संतुष्ट है कि वह उसका ही काम कर रही है। आम आदमी पार्टी ने हरमंदिर साहब यानी स्वर्ण मंदिर से गुरबाणी के प्रसारण को फ्री टु एयर करने का निर्णय लिया है जिसे राज्यपाल की मंजूरी का इंतजार है।
पहले इस पर एक चैनल का एकाधिकार था जो कथित रूप से बादल परिवार का है। भाजपा ने इस निर्णय का समर्थन किया है कि यह प्रसारण एक से अधिक चैनलों पर होना चाहिए लेकिन उसने आप के एसजीपीसी अधिनियम 1925 में संशोधन के निर्णय का यह कहकर विरोध किया है कि यह केवल संसद ही कर सकती है।
शिअद का कहना है कि आखिरकार वार्ता तो होगी लेकिन यह बातचीत ठंडी और भावनारहित होगी। कहा जा रहा है कि सुखबीर सिंह बादल ‘अंग्रेजी बोलने लगेंगे’ और इसमें वह गर्माहट नहीं नजर आएगी जो अटल बिहारी वाजपेयी और प्रकाश सिंह बादल में नजर आती थी। उनका कहना है कि सिखों के लिए आत्मसम्मान सबसे बढ़कर है और इस समय राज्य में अकाली दल की राजनीतिक तकदीर जिस स्थिति में है उसमें अहंकार से बात नहीं बनेगी। इस बीच भाजपा की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है।