भारत में आउटप्लेसमेंट एक नई अवधारणा है, जिसके कारण छंटनी के दौर में कर्मचारियों का मनोबल बढ़ा है। आउटप्लेसमेंट के तहत मुश्किल दौर में कंपनी कर्मचारियों को निकालने की जगह बीच का रास्ता अपनाती है।
कर्मचारियों को अवैतनिक या अल्पवैतनिक अवकाश पर भेजा जाता है, उनके वेतन भत्तों को घटा दिया जाता है या फिर उन्हें कोई नया काम सौंप दिया जाता है।
सॉफ्टवेयर फर्म मास्टेक ने अपने 425 कर्मचारियों को दो विकल्प देने का फैसला किया- या तो इस्तीफा दे दीजिए या फिर मामूली भत्ते पर कंपनी में बने रहिए, और ताजा अनुभवों से पता चला है कि लागत घटाने का एक मात्र तरीका कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाना नहीं है।
इन 425 कर्मचारियों में कोई भी इन विकल्पों को खुशी-खुशी नहीं अपनाएगा, लेकिन अनुमान है कि वे प्रबंधन की मजबूरियों को समझेंगे और संभव है कि कंपनी द्वारा ये विकल्प देने के लिए आभार भी व्यक्त करें। कंपनी के लिए अपने आधे ऐसे कर्मचारियों को निकालना आसान था, जो अभी प्रशिक्षु हैं और जो जुलाई 2008 या उसके बाद कंपनी में शामिल हुए हैं।
स्पष्ट है कि मास्टेक को इस कवायद का पूरा फायदा मिलेगा। मास्टेक को भी उम्मीद है कि उसके 425 कर्मचारियों में से करीब 80 प्रतिशत कंपनी में ही बने रहेंगे।
मास्टेक की बाध्यता को समझा जा सकता है क्योंकि उसने जून 2009 को समाप्त हो रहे वर्ष के लिए अपने राजस्व के पूर्वानुमानों में कटौती की है। कंपनी ने कहा है कि मांग में जारी मंदी और विदेशी मुद्रा की प्रतिकूल स्थिति के कारण वह प्रभावित हो सकती है।
मानव संसाधन विशेषज्ञ कहते हैं कि यह मुश्किल वक्त की चुनौतियों से निपटने में भारतीय नियोक्ताओं में बढ़ती परिपक्वता को दिखाता है। कई दूसरी कंपनियां भी इस बात की भरसक कोशिश कर रही हैं कि छंटनी की प्रक्रिया कम से कम दु:खदायी होनी चाहिए।
पूरी कवायद के पीछे मकसद यह है कि इन कर्मचारियों को रोजगार पाने में मदद की जाए, ताकि जब वे मौजूदा संस्थान छोड़कर जाएं तो उनका सर ऊंचा रहे।
टेक का गुबार फटने के बाद साफ्टवेयर कंपनी सिस्को ने सबसे पहले 2001 में इस रास्ते का अनुसरण किया था। कंपनी ने अपने कर्मचारियों को आगे और अध्ययन करने के लिए अवकाश लेने की इजाजत दी जबकि इस दौरान उन्हें एक तिहाई वेतन का भुगतान भी किया गया।
इस दौरान उसने कर्मचारी लाभों, प्रशिक्षण और शिक्षा का पूरा ध्यान रखा। यदि रोजगार के नए मौके आते हैं तो इन कर्मचारियों को बाहरी प्रत्याशियों के मुकाबले तरजीह दी जाएगी।
इतना ही नहीं यदि उनका शिक्षा अवकाश समाप्त हो गया और उन्हें सिस्को में दूसरी नौकरी नहीं मिल सकी, तो उन्हें अगले 60 दिनों तक सिस्को के वेतनमान पर रखा जाएगा ताकि इस दौरान वे दूसरी नौकरी खोज सकें।
कुछ लौटे, कुछ नहीं, लेकिन इस दौरान सिस्को को धन और कौशल फायदा मिला और सबसे महत्त्वपूर्ण रूप से एक नियोजक के तौर पर उसकी प्रतिष्ठा में इजाफा हुआ। तो अगर प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक बार फिर उछाल आया तो अधिक से अधिक लोग वापस सिस्को में आना चाहेंगे।
उदाहरण के लिए स्वीडिश पोस्टल सर्विसेज ने आउटप्लेसमेंट के लिए एक कार्यक्रम की शुरुआत की। इस कार्यक्रम के शामिल सभी भागीदारों को 18 महीने के अंदर नई नौकरी खोजनी थी और 70 प्रतिशत भागीदारों के लिए 10 महीनों के अंदर ही नई नौकरी पकड़ने की शर्त रखी गई।
पेशवरों के सहयोग के कारण पुनर्गठन कार्यक्रम को तेजी से पूरा करने में मदद मिली। भारत में मोटोरोला ने 2006 में अपनी नई इकाई को बंद कर दिया और वह कर्मचारियों 150 कर्मचारियों की छंटनी करना चाहती थी। ऐसे में उसने (कर्मचारियों को दूसरी नौकरी खोजने में मदद करके) आउटप्लेसमेंट का सहारा लिया।
मोटोरोला के कैंपस में एक रोजगार मेले का आयोजन किया गया, जिसमें दूसरी कंपनियां और नियोक्ता शामिल हुए। साक्षात्कार में सफल होने वाले लोगों को दूसरी फर्मों में नौकरी मिल गई।
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वालों को एक और मौका देते हुए उनके लिए एक साल के अतिरिक्त प्रशिक्षण और मूल्यांकन की व्यवस्था की।
इतना ही नहीं टीसीएस ने इन इन कर्मचारियों के रिज्यूम और संपर्क विवरण को अपने बाह्य प्लेसमेंट साझेदारों के पास भेजा, ताकि इन्हें आउटप्लेस किया जा सके। इन्फोसिस ने अपने कर्मचारियों को नया रोजगार खोजने के लिए 1 साल का समय दिया और इनमें से लगभग सभी को नई जगह नौकरी मिल गई।
आईसीआईसीआई बैंक ने भी यह सुनिश्चित किया कि जिन लोगों को आकलन में अच्छे ग्रेड नहीं मिल सके हैं, वे तुरंत सड़क पर न आ जाएं।
बैंक ने उन्हें किसी कठोर फैसले तक पहुंचने से पहले उन्हें पर्याप्त समय, फीडबैक और अतिरिक्त प्रशिक्षण दिया। ज्यादातर मामलों में बैंक द्वारा दिए गए प्रशिक्षण से ज्यादातर लोगों को जल्द ही रोजगार मिल गया।
इस तरह आउटप्लेसमेंट की कार्रवाई के मुख्यत: तीन हिस्से होते हैं। भावनात्मक काउंसलिंग, वित्तीय काउंसलिंग और कैरियर काउंसलिंग। हालांकि आउटप्लेसमेंट की आवधारणा भारत में नई है लेकिन जिन देशों में इसका काफी पहले से प्रचलन है, वहां हुए सर्वेक्षण यह बताते हैं कि आखिर क्यों छंटनी के समय में नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों की परवाह करनी चाहिए।
उदाहरण के लिए इंगलैंड में रीड द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में 66 प्रतिशत शीर्ष प्रबंधकों ने माना है कि आउटप्लेसमेंट से कर्मचारियों के नैतिक मूल्यों, अभिप्रेरणा और कार्यकुशलता में बढ़ोतरी होती है। सर्वेक्षण में पाया गया कि 87 प्रतिशत प्रतिभागी मानते हैं कि आउटप्लेसमेंट से प्रबंधकों पर दबाव कम होता है।
आउटप्लेसमेंट के तहत कंपनी अपने सभी कर्मचारियों को रोजगार की गारंटी तो नहीं देती है, लेकिन इससे एक व्यक्ति की सकारात्मक सोच को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है और एक नियोक्ता के तौर पर कंपनी की प्रतिष्ठा बढ़ती है।
इस कारण कई कंपनियां कार्यपालकों को पदमुक्त करने के पैकेज में आउटप्लेसमेंट को भी शामिल करती हैं। कर्मचारियों के लिए आउटप्लेसमेंट नया रोजगार खोजने के लिए मिली एक छोटी से मदद है। कुछ भी हो, लेकिन नौकरी छूट जाना जीवन की सबसे अधिक दर्दनाक घटनाओं में शामिल है।