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विमान निर्माण में हमारी सीमा

एक गहन प्रश्न यह पूछा जा सकता है कि भारत विदेशों से विमानों का इतना बड़ा खरीदार कैसे बन गया?

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- June 21, 2023 | 8:55 PM IST

भारत की सस्ती विमानन सेवा इंडिगो ने घोषणा की है कि वह यूरोप की विमानन कंपनी एयरबस से 500 विमान खरीदेगी। इसे किसी भी कंपनी द्वारा दिया गया भारतीय विमानन उद्योग का अब तक का सबसे बड़ा ऑर्डर माना जा रहा है। संभवत: ये विमान एयरबस 320 नियो होंगे और इंडिगो द्वारा एयरबस से खरीदे जा चुके या ऑर्डर किए जा चुके 830 ए320 और ए321 विमानों के अतिरिक्त हैं।

इनमें से कई पुराने ऑर्डर की आपूर्ति अभी होनी शेष है। इनमें 70 ए321 एक्सएलआर विमान शामिल हैं जिनका इस्तेमाल इंडिगो शायद बड़े अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में करेगी। इससे पहले इस वर्ष एयर इंडिया ने 470 विमानों का ऑर्डर दिया था लेकिन इंडिगो के उलट अब टाटा के स्वामित्व वाली एयर इंडिया, एयर इंडिया एक्सप्रेस, विस्तारा और एयर ए​शिया के पास वि​भिन्न कंपनियों के अलग-अलग विमान हैं।

इंडिगो की मूल कारोबारी योजना लागत को कम रखने की थी तथा उसने किफायती अंदाज में तथा समय पर उड़ान पूरी करने में कामयाबी हासिल की क्योंकि वह एक जैसे विमान होने के कारण उनकी अदला-बदली कर सकती है। कंपनी ने 100 ए320 सीईओ लीज पर लेकर शुरुआत की थी जिसमें से करीब 20 अभी भी उड़ान भर रहे हैं।

कंपनी ने अपने दूसरे ऑर्डर में जो 320 ए320 नियोस विमान खरीदे थे उनमें से 166 अभी भी संचालित हैं। 2020 से अब तक कंपनी के करीब 100 विमानों का संचालन बंद हो चुका है लेकिन एयरबस से निरंतर आपूर्ति की बदौलत उसके बेड़े का आकार एयर इंडिया की तुलना में दोगुना हो चुका है।

इन बड़े ऑर्डरों से दो तरह का असर होता है। पहला, जब इसे इस वर्ष मई में गो फर्स्ट के दिवालिया होने के साथ जोड़कर देखते हैं तो एक वास्तविक चिंता यह नजर आती है कि भारत का घरेलू विमानन क्षेत्र दो कंपनियों के कारोबार तक सिमट सकता है।

दूसरी बड़ी कंपनी का नाम है स्पाइसजेट। नई कंपनी आकाश एयर को अभी अपनी जगह बनानी है, हालांकि कंपनी ने कुल मिलाकर 76 बोइंग 737 का ऑर्डर दिया है। प्रभावी ढंग से कारोबार का दो कंपनियों तक सिमट जाना यात्रियों के लिए अच्छी खबर नहीं है। दिल्ली-मुंबई के बीच की उड़ानों की टिकट कीमतों को लेकर चिंता तो बस शुरुआत है। जाहिर है इसका उत्तर टिकट कीमतों को नियंत्रित करना नहीं होना चाहिए ब​ल्कि अधोसंरचना में सुधार तथा बड़े केंद्रों पर उड़ान के विकल्प बढ़ाकर इसका जवाब दिया जाना चाहिए।

एक गहन प्रश्न यह पूछा जा सकता है कि भारत विदेशों से विमानों का इतना बड़ा खरीदार कैसे बन गया? करीब 1,000 से अ​धिक विमानों का ऑर्डर लंबित होने का अर्थ कि भारत में इनकी मांग तो है लेकिन इनकी घरेलू आपूर्ति की दिशा में कोई खास प्रयास नहीं किए गए हैं।

नि​श्चित तौर पर विमानन क्षेत्र एक जटिल क्षेत्र है जहां नित नई चुनौतियां सामने आती हैं। परंतु बोइंग और एयरबस के अलावा ब्राजील और चीन ने भी अपने-अपने देश में किफायती घरेलू विमानन बाजार तैयार किया है। यह समझने का प्रयास किया जाना चाहिए कि भारत में ऐसा क्यों नहीं हुआ। निर्माताओं के लिए उत्पादन को स्थानांतरित करना आसान नहीं है यही वजह है कि तमाम प्रयासों के बावजूद रक्षा क्षेत्र में उत्पादन संबंधी वास्तविक सौदे अभी भी कठिन बने हुए हैं।

ब्राजील जैसे उदाहरणों से हमारी सरकार को क्या सबक लेना चाहिए? उसके पास लड़ाकू विमानों के लिए भी घरेलू व्यवस्था मौजूद है। स्वीडिश मूल के ग्रिपेन लड़ाकू-बमवर्षक विमान अब ब्राजील में बन रहे हैं। इसके साथ ही वह घरेलू यात्री विमान भी बना रहा है। इस उद्योग का नेतृत्व एंब्रेयर के पास है जो क्षेत्रीय उड़ानों के लिए छोटे विमान बनाने में प्रवीण है।

आयात और निर्यात को लेकर खुलापन तथा बौद्धिक अ​धिकारों का समुचित संरक्षण ऐसी ​स्थितियां बनाने की पूर्व शर्त है। परंतु भारत के घरेलू विमानन बाजार के विकास को देखते हुए यह परखने की को​शिश की जानी चाहिए कि आ​खिर विमानों की कुछ मांग को घरेलू स्तर पर क्यों नहीं पूरा किया जा सकता। दुनिया के सबसे बड़े नाग​र विमानन बाजारों में से एक को हमेशा आयात पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।

First Published : June 21, 2023 | 8:55 PM IST