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अनिश्चितता के बीच भारत के समक्ष विकल्प

नए क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने के लिए यह जरूरी है कि सरकार से पूंजीगत मदद मिले और श्रमिकों को नए कौशल सिखाए जाएं तथा उनके आवास की व्यवस्था की जाए। बता रहे हैं

Last Updated- April 29, 2025 | 10:22 PM IST
Donald Trump

टैरिफ को लेकर उभरते नए परिदृश्य की वजह से वैश्विक आर्थिक माहौल में अनिश्चितता का एक नया पहलू शामिल हो गया है। टैरिफ इस समय चल रही द्विपक्षीय वार्ताओं के केंद्र में हैं। ऐसे में यह पड़ताल करना उपयोगी होगा कि भारत पर इसका क्या प्रभाव हो सकता है। हम अर्थव्यवस्था के साथ-साथ राजकोषीय स्तर पर इसके प्रभाव का भी आकलन करेंगे। यहां पर ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल का एक उद्धरण याद करना उचित होगा जिसमें उन्होंने कहा था, ‘एक अच्छे संकट को कभी बेकार नहीं जाने दिया जाना चाहिए।’ क्या भारत इस संकट में अवसर तलाश कर सकता है?

कम दर पर ही सही लेकिन अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाया गया टैरिफ तथा वैश्विक मांग में संभावित कमी देश के निर्यात को नकारात्मक ढंग से प्रभावित करेगी। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से इस नकारात्मक प्रभाव का असर कुछ कम करने में मदद मिलेगी। दूसरी ओर, भारत द्वारा आयात शुल्क में कमी से आयात बढ़ सकता है लेकिन जरूरी नहीं कि इसकी वजह से सीमा शुल्क संग्रहण में भी सुधार ही हो। दूसरे शब्दों में कहें तो चालू खाते की स्थिति बिगड़ेगी और वृद्धि दर में कमी आएगी। विभिन्न एजेंसियों के अनुमान का देखें तो संकेत निकलता है कि भारत की वृद्धि 6 फीसदी से ऊपर बनी रहेगी। राजकोषीय स्थिति की बात करें तो बजट के आंकड़े सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 10.1 फीसदी की नॉमिनल वृद्धि दर पर आधारित हैं। ऐसे में अगर रियल यानी वास्तविक वृद्धि दर 6 फीसदी से कुछ अधिक और मुद्रास्फीति की दर 4 फीसदी के करीब रही तो प्राप्तियों को लेकर बजट अनुमान हकीकत में बदल सकते हैं। व्यय की बात करें तो अच्छे मॉनसून की उम्मीद और बाहरी अनिश्चितताओं से देश की अर्थव्यवस्था को सीमित झटके के अनुमान के बीच निकट भविष्य में सामाजिक-सुरक्षा उपायों के समायोजन की कोई आवश्यकता नहीं होगी।

सरकार आर्थिक नीति पर ध्यान केंद्रित कर सकती है। मौजूदा संकट से उत्पन्न अवसरों का लाभ लेने के लिए एक दोहरी रणनीति पर विचार किया जा सकता है- कारोबारी साझेदारियों का पुनर्गठन करना और इन साझेदारियों का लाभ उठाने के लिए रणनीतिक औद्योगिक नीति विकसित करना। सरकार अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख साझेदारों के साथ व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने में लगी है। वैश्विक आर्थिक माहौल में व्याप्त अनिश्चितताओं को देखते हुए भारत को अपनी गुटनिरपेक्ष देश की छवि को मजबूत करना चाहिए और इसके साथ ही उसे व्यापक साझेदारियों को भी अंजाम देना चाहिए और इसमें चीन के साथ वार्ता को भी शामिल किया जा सकता है। यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि वैश्विक आर्थिक माहौल में व्याप्त अनिश्चितता के बीच पुराने समझौतों को संशय की स्थिति है। पोर्टफोलियो में विविधता लाना मध्यम अवधि में वैश्विक आपूर्ति शृंखला में एकीकरण को टिकाऊ बनाने की दृष्टि से अहम है। कारोबारी संगठन वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर केंद्रित रहेंगे। इस अवसर का अधिकतम लाभ उठाने के लिए विनिर्माण और सेवाओं में आवश्यक कदम एक रणनीतिक औद्योगिक नीति का विकास करना हो सकता है। ऐसी नीति भारत में निवेश से जुड़ी कुछ अहम चुनौतियों को हल कर सकती है। कारोबारी सुगमता और नियामकीय माहौल में सुधार को अक्सर कुछ अहम तत्वों के रूप में उल्लिखित किया जा सकता है। कुछ अन्य पहलुओं पर भी विचार किया जा सकता है:

1. अनिश्चित आर्थिक माहौल में नए निवेश से जुड़े जोखिम को कम करने के नजरिये से सरकार कुछ रणनीतिक क्षेत्रों में अल्पांश हिस्सेदारी के जरिये सहयोग कर सकती है। अक्सर कहा जाता है कि सरकार की आर्थिक गतिविधियों में कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए परंतु बढ़ी हुई अनिश्चितता के समय और अर्थव्यवस्था में नए क्षेत्रों के उभार को मदद पहुंचाने के लिए ऐसे हस्तक्षेपों की आवश्यकता होती है। यह ध्यान देने लायक बात है कि कुछ सफल उद्यमों के साथ सरकार ऐसे निवेश का फायदा उठा सकती है और अन्य उपक्रमों की मदद के लिए संसाधन जुटा सकती है। सरकार के परिसंपत्ति मुद्रीकरण कार्यक्रम भी इसी सिद्धांत पर काम करते हैं। कुछ देशों ने कंपनियों की मदद करने के लिए यही रास्ता चुना जबकि अन्य ने ऋण के माध्यम से मदद दिया है। फिनलैंड की सरकार ने नोकिया की मदद के लिए उसमें हिस्सेदारी ली जबकि ऐपल की मदद के लिए अमेरिकी सरकार ने ऋण दिया। दोनों कंपनियां बहुत कामयाब साबित हुईं लेकिन फिनलैंड की सरकार को मिला प्रतिफल अमेरिका की सरकार की तुलना में अधिक था।

2. उपयुक्त प्रशिक्षण प्राप्त श्रम शक्ति को अक्सर देश में निवेश की एक अन्य चुनौती के रूप में पेश किया जाता है। सरकार ने ‘स्किल इंडिया’ के तहत विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से इसे पूरा करना चाहा है। कौशल की उभरती जरूरतों का अनुमान लगाने तथा उन्हें चिह्नित करने के लिए औद्योगिक साझेदारियां विकसित करके एक प्रभावी कार्यक्रम तैयार किया जा सकता है। तेज तकनीकी बदलाव के बीच हमें बदलते कौशल की जरूरत भी होती है। इन चिंताओं को दूर करने के लिए एक दूरदर्शी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, तभी नए रोजगार तैयार हो सकेंगे और उभरते क्षेत्रों में निवेश को मदद मिल सकेगी। स्वीडन में काफी व्यवस्थित कौशल और पुनर्कौशल कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम में समय-समय पर कौशल मूल्यांकन और पूर्वानुमान, पुनर्कौशलीकरण किया जाता है। साथ ही उद्योग जगत के साथ साझेदारी में व्यावसायिक शिक्षा भी दी जाती है।

3. आवास श्रमिकों की लागत में बहुत अधिक हिस्सेदारी रखता है और श्रम की लागत को प्रभावित करता है। प्रधानमंत्री आवास योजना को नागरिकों को घर दिलाने में मदद करने के लिए तैयार किया गया है। हमें उन क्षेत्रों में श्रमिकों के लिए घरों और फ्लैटों के निर्माण पर ध्यान देना चाहिए जहां विनिर्माण गतिविधियां अधिक होती हैं। कम किराए वाले फ्लैट उनके लिए मददगार हो सकते हैं और श्रम की लागत कम कर सकते हैं। तमिलनाडु की सरकार ने इस चिंता को दूर करने के लिए एक विशेष कंपनी बनाई है जहां औद्योगिक इकाइयां अपने कर्मचारियों के लिए आवासीय परिसर बनाने के लिए पंजीयन करती हैं।

ऐसी पहल करने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि विकसित की गई सुविधाओं को बहाल रखा जाए और लागत को कम रखा जाए। ऐसे हस्तक्षेप के साथ नए क्षेत्रों में निवेश को सरकार मदद पहुंचा सकती है। केंद्र और राज्य, दोनों सरकारें इन पहलों को साझा कर सकती हैं। हालांकि रणनीतिक बदलाव के लिए अवसर की अवधि कम हो सकती है क्योंकि कई देश इस दिशा में काम कर रहे होंगे। ऐसे में गति बहुत महत्त्वपूर्ण है।

(राव इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस ऐंड पॉलिसी की निदेशक हैं और आशरा मैनेजमेंट डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर हैं)

First Published - April 29, 2025 | 10:06 PM IST

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